Gurdjieff Thoughts: ओशो ने सभी प्रबुद्ध पुरुषों को बहुत प्रेम किया है, लेकिन उनमें से गुरजिएफ और कृष्णमूर्ति करीब-करीब उनके समकालीन थे। ओशो ने अपने हर चौथे प्रवचन में गुरजिएफ और कृष्णमूर्ति का जिक्र किया हुआ है। तो काफी लोगों को उनकी जीवनी के बारे में जानने की उत्सुकता है। प्रस्तुत है गुरजिएफ के जीवन का एक संक्षिप्त परिचय।
गुरजिएफ अप्रैल 1870 में पैदा हुए और अक्टूबर 1949 में इनका निधन हो गया था। वे दक्षिण रूस
में ‘एलेक्सोंर्द्पोल’ नाम के एक छोटे गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता एक ग्रीक आदमी थे और मां अर्मेनियाईन थी। उनके शिक्षक एक ईसाई पादरी थे। जब वह छोटे थे, उनके इन शिक्षक का उनके मन पर बहुत प्रभाव था। गुरजिएफ के पिताजी भी अप्रत्यक्ष रूप से उनके शिक्षक थे। वह अपने पिता को बहुत ह्रश्वयार करते थे। इसलिए उनके पिताजी ने भी उनके जीवन में महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला। ये दोनों लोग ही गुरजिएफ के जीवन को आकार देने के लिए जिम्मेदार थे। गुरजिएफ बचपन से ही हमेशा यही सवाल पूछा करते थे कि ‘हम यहां क्यों
हैं…? और ‘जीवन क्या है और मौत क्या है …? वह अपनी जवान बहन की मृत्यु के समय उपस्थित थे। वह अपनी बहन को बहुत चाहते थे, लेकिन वह कुछ भी नहीं कर सके, और उनके मन में काफी सवाल उठे, कि ये मृत्यु क्या है…? उन्होंने अपनी पुस्तक, ‘मीटिंग विद रिमार्केबल मेन’ में वार्णित किया है। उन्होंने एक लकवाग्रस्त आदमी जो चलने में असमर्थ था वह भी अपने विल पॉवर से, संत की कब्र पर चलते-चलते पहुंचता हुआ देखा था।
गुरजिएफ ज्योतिषियों से या भविष्य बताने वालों से बहुत प्रभावित होते थे। उन्होंने दूसरे लोगों के ऊपर कैसे सम्मोहन किया जाए, इसका अभ्यास किया और सम्मोहन की विद्या में बाद में उस्ताद बन गए।
गुरजिएफ धीरे-धीरे समझने लगे कि उनके शिक्षकों को भी सभी विषयों की स्पष्ट समझ नहीं है।
गुरजिएफ ने न्यूरोसायकॉलोजी और रसायन शास्त्र का अभ्यास किया और ईसाई शास्त्रों का भी अभ्यास किया। फिर वह एक चिकित्सक और ईसाई पादरी बनने में समर्थ हो गए। गुरजिएफ को शरीर विज्ञान और मनोविज्ञान में बहुत दिलचस्पी थी। वह जो देख रहे थे या ढूंढ रहे थे, वह पुस्तकालय की किताबों में नहीं था। उन्होंने सोचा कि दुनिया में जरूर कहीं कुछ वास्तविक ज्ञान
या सत्य होना चाहिए। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि ‘उन्होंने कई गुप्त ज्ञान जानने वाले समूह और धार्मिक समूहों के साथ संपर्क बनाने की कोशिश की थी। उन्होंने इस तरह के कई धार्मिक, दार्शनिक, मनोगत और रहस्यवादी समूह और उनके ठिकाने का पता लगाया। उन्होंने सब धर्म के सांस्कृतिक और धार्मिक आंदोलनों में हिस्सा लिया। वे ईसाई, असीरियन, अर्मेनियाई, इस्लामी और पारसी धर्म के मूल की परंपराओं के रीति-रिवाज और उनके संगीत से बहुत प्रभावित थे।
गुरजिएफ का जन्म एक ऑर्थोडॉक्स ईसाई परिवार में हुआ था। उन्होंने ईसाई धर्म के गूढ़ ज्ञान और उनके अनुष्ठानों को भी सीखा। फिर भी वह पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थे। फिर भी वह अपने बुनियादी सवाल को समझ नहीं सके और इसे हल नहीं कर सके और वह ज्ञान की खोज में बाहर निकल
गए। गुरजिएफ एक सत्य शोधक समूह में शामिल हो गए जिसमें 15 या 20 पुरुष और एक महिला थी। वे सभी सत्य की तलाश में थे। वे सब सत्य शोधक एक-साथ या अलग-अलग समूहों में या कभी-कभी अकेले यात्रा करते थे। वे मिस्र, क्रेत, सुमेरियन, अश्शूर और पवित्र भूमि में प्राचीन सभ्यताओं की खोज के लिए गए। उन्होंने मठों और समारिया का दौरा भी किया। आगे जाके उनको बुद्धिमान पुरुषों के प्राचीन भाईचारे,’द सरमन ब्रदरहुड’ के बारे में पता चला, तो उनसे भी संपर्क किया। उन्होंने मध्य एशिया के केदिरी दरवेश का दौरा भी किया। उन्होंने ज्ञान की खोज में किसी भी तरह से साइबेरिया के उत्तरी घाटियों का भी दौरा किया। कैसे भी किसी भी तरह से, जहां भी सुना कि कुछ सत्य है या किसी के पास सत्य है, वहां सब जगह वो भागे, जहां भी थोड़ी भी ज्ञान पाने
की संभावना थी वहां पहुंच गए।

गुरजिएफ अभ्यास करके एक विशेषज्ञ हिह्रश्वनोटिस्ट बन गए थे। उन्होंने यह भी सीख लिया था कि मानव शरीर में जो ऊर्जा है, उसको कैसे ध्यान में रूपान्तरित किया जाए। उनकी किसी भी व्यक्ति की संभव चेतना की स्थितियों में और उसके विकास में ज्यादा रुचि थी। उन्होंने चेतना को संशोधित करने के लिए और मनुष्य को ध्यान में ले जाने के लिए संगीत, कला, मुद्रा और भाव की मदद ली।
प्राचीन सभ्यताओं में और उनकी स्टडी में उनकी गहरी दिलचस्पी थी। वह बेबीलोन गए। वहां के लोग दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं को जानते थे और समझते थे, उनके साथ गुरजिएफ का गहरा मानसिक लगाव हो गया था।
गुरजिएफ एक अच्छे संगीतकार थे और संगीत की धुन तैयार करने में काफी निपुण थे, वह ऐसी धुन बनाते थे कि सुनते ही आदमी ध्यान में चला जाए। ये धुन सभी श्रोताओं में जागरुकता और ध्यान के समान भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को उत्पन्न कर सकती हैं। गुरजिएफ चाहता था कि मकान या इमारतों का निर्माण भी इस प्रकार होना चाहिए कि सिर्फ उनके भीतर प्रवेश करने से
होश या जागरुकता या ध्यान पैदा किया जा सके और एक जमाना था जब ऐसा मकान या घर बनता था, कि जिसमें सिर्फ प्रवेश मात्र से ध्यान लग जाता था और गुरजिएफ ने नृत्य को इस ढंग से कोरिओग्राफ किया था कि नृत्य करने वाले और उनको देखने वालों के मन के भीतर की स्थिति ध्यानातीत की जा सकती थी। गुरजिएफ ने विभिन्न क्षेत्रों से इन पवित्र नृत्यों को एकत्र किया
था। उससे उन्हें मानव शरीर और मन के रहस्यों की कुंजी का पता चला था। उन्होंने यह भी पाया कि हर प्राचीन अनुष्ठान या संस्कार का भी एक मूल्य है और यदि यह ध्यान और जागरुकता के साथ किया जाए तो उसका काफी असर होता है। गुरजिएफ ने कहा है कि सभी प्राचीन संस्कार और
अनुष्ठान जागरुकता की सैकड़ों विधियों से युक्त हैं।
हुआ, जब वह इस्लामी धर्म की एकमात्र जीवित शाखा ‘सूफी धर्म’ के साथ संपर्क में आया। उसने इस्लामी सूफी दुनिया के ध्यान के अनुष्ठान को सीखा। फिर अफगानिस्तान में दरवेश ध्यान का प्रशिक्षण लिया। वहां हिंदू कुश के मठ में साक्षी भाव से पृथक बनके रहने लगे। उन्होंने मक्का की
तीर्थयात्रा की और निराश हुए। उन्होंने देखा कि वहां कोई भी होशपूर्वक या ध्यान में नहीं था। उन्होंने अपने छात्रों को बताया कि यदि आप ध्यान सीखना चाहते हैं तो बुखारा जाइए, मक्का मत जाइए। एनाग्राम के केंद्रीय प्रतीक की खोज भी सूफी और ईसाई लोगों ने की थी। गुरजिएफ ऐनाग्राम में और उनकी शिक्षाओं में और सिस्टम में दरवेश के पवित्र नृत्य के महत्त्व को इंगित करता है, जिसे गुरजिएफ ने नव विकसित किया। गुरजिएफ हमेशा अपनी जेब में पैसे के बिना ही यात्रा करते थे। वह कुछ दिनों के लिए ठहरते थे, पैसे कमाते थे और आगे बढ़ जाते थे। गुरजिएफ ने पैसे कमाने के लिए पर्यटकों के लिए गाइड के रूप में काम किया। उन्होंने हिप्नोटिस्ट के रूप में काम किया। उन्होंने एक रूसी जासूस के रूप में भी काम किया। उन्होंने कालीन का व्यापार किया। उन्होंने मशीनों की मर मत की। उन्होंने गौरैयों को पकड़ के, उनके ऊपर रंग लगा के, अमेरिकन कनेरिएस बनाके बेचा।
उन्होंने जादूगर के रूप में भी काम किया। यह सब उन्होंने अपनी किताब ‘मीटिंग विद रीमांर्केबल मेन’ में एक काव्यात्मक तरीके से उल्लेख किया है।
गुरजिएफ ने उस अवधि में कई बार होश पूर्वक रहते हुए मृत्यु का अनुभव किया और भाग्यशाली रहे। एक बार उन्हें तीन गोलियां लगीं लेकिन बच गए। इस अवधि के दौरान जागरूक रहे और मृत्यु के साक्षी बने। 1896 में, फिर वह घातक रूप से घायल हुए और वह ज्यादा समय कोमा में ही रहे। उनका शरीर तो कोमा में था, लेकिन भीतर से वह जागृत थे, होश में थे। ये ऐसा ही था जैसे रमण महर्षि भी लबे समय तक कोमा में रहे लेकिन भीतर से जागरूक बने रहे थे। फिर दूसरी बार उन्होंने बहुत निकट से मौत का अनुभव किया, जिसने उन्हें जागरूक, ध्यानी और निडर बना दिया। अभी उनको
मृत्यु का पूरा भय चला गया।
गुरजिएफ ने चारों ओर से गूढ़ ज्ञान एकत्र किया। उन्होंने भारत की यात्रा की और तिब्बत गए। यहां तिब्बत में उन्होंने लामाओं से सभी बुद्ध के ध्यान के तरीकों को सीखा। उन्होंने लामाओं से बुद्ध का तर्क भी सीखा, जो कि उनके लिए आगे यूरोपीय देशों में उनके शिष्यों को सिखाने में बहुत उपयोगी
रहा। वह लामाओं के जैसे लाल रंग का वस्त्र पहना करते थे। वह कुछ समय तक दलाई लामा के शिक्षक भी रहे। उनका शिक्षण बौद्ध और सूफी संगीत की परंपराओं से प्रभावित था। गुरजिएफ ने एक प्रमुख रूसी गुप्त एजेंट के रूप में काम किया था या नहीं, इसमें संदेह है। लेकिन कहा जाता है कि वहां उन्होंने दस साल के लिए काम किया था। उन्होंने सेना के उपकरणों की देख-रेख रखने का भी काम किया था। गुरजिएफ को नृत्य, संगीत और पवित्र मूवमेंट्स में दिलचस्पी थी। उन्होंने तिब्बत से,भारत से और सूफियों से सभी आध्यात्मिक और पवित्र लोक नृत्य को एकत्रित किया है। उन्होंने यूरोप और अमेरिका में यही नृत्यों को विकसित करके कई पवित्र नृत्य का प्रदर्शन किया। उन्होंने
तिब्बत से हठ योग भी सीखा था। वह दस मील की दूरी से एक याक को निर्देशित करने में सक्षम थे। उन्होंने हठ योग से इतनी ऊर्जा प्राप्त कर ली थी कि वह एक हाथी को सुला सकते थे।
गुरजिएफ ने तिब्बत में अपना शोध और ध्यान जारी रखा। इस समय तक वह एक अन्य दुर्घटना के शिकार हुए। आम तौर पर यह सभी बुद्ध व्यक्ति के साथ होता है, उनको लगभग हर सातवें साल में अपने शरीर के साथ कुछ न कुछ समस्या झेलनी पड़ती है। ओशो और कृष्णमूर्ति को भी
गुरजिएफ की तरह ही अनुभव हुआ था। लेकिन तिब्बत में इस बार, गुरजिएफ लगभग प्राणघातक रूप से एक गोली से घायल हो गए थे। लेकिन कुदरत को उन्हें बचाना था और ऐसा ही हुआ।, उसके साथी उन्हें घायल हालत में भी छिपाने में कामयाब रहे। वहां उन्होंने कोमा में, कई महीने बिताए
और पांच चिकित्सकों, तीन यूरोपीय और दो तिब्बती की सेवा द्वारा उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ। इस समय के दौरान उन्होंने ओशो और कृष्णमूर्ति की ही तरह होश के साथ मौत की अवस्था का अनुभव किया। पहली बार वह अपने शरीर से पृथक हो गए थे और उन्होंने अपने खुद के शरीर को दूर पड़ा देखा। उन्होंने इसे साक्षी भाव से देखा। उन्होंने अमरता का अनुभव किया, इस घटना ने उन्हें प्रबुद्ध व्यक्ति, या क्राइस्ट या भगवान बनाया।
उन्होंने यहां पर असाधारण शक्तियों का विकास किया। अचानक वह बिल्कुल निष्क्रिय हो गए और पूर्ण आराम में चले गए। उन्हें एक बादल गरजने के झटके जैसा एहसास हुआ और वह बुद्ध हो गए..
अंतिम प्रयास भी उन्होंने छोड़ दिया। वह अस्तित्व को, पूरी तरह आत्मसमर्पित हो गए। उनको एहसास हुआ कि उनके पास वे सभी संभावनाएं और असभावनाएं हैं, जो भगवान के पास हैं।
उसके बाद, उन्होंने रूस के राजा झार निकोलस द्वितीय के साथ कुछ समय बिताया, क्योंकि झार रहस्यमय चीजों के बहुत वशीभूत था। यहां उन्होंने महल की एक महिला काउंटेस ओस्त्रोसका से शादी की जो जार की चचेरी बहन थी।
गुरजिएफ ने 1915 में उपदेश देना शुरू कर दिया था। वे सेंट पीटर्सबर्ग में और मास्को में छात्र-समूह को सिखा रहे थे। यहां गुरजिएफ को पीटर आस्पेंस्की मिला, जो आदमी उनके लिए सुकरात के प्लेटो की तरह बन गया। आस्पेंस्की भी बस अपने वास्तविक गूढ़ ज्ञान की खोज के लिए भारत में यात्रा से लौटा ही था। और उसे गुरजिएफ जैसे जागरूक गुरू की तलाश थी और ओस्पन्स्की, गुरजिएफ को अपने ही शहर में, उसे पाकर वह अचंभित रह गया। पूरी रूस में उस समय आस्पेंस्की को अच्छी तरह
से जाना-माना जाता था। उसने कई पुस्तकें लिखी थीं। उसकी पुस्तकें बहुत अच्छी तरह से दुनिया में जानी जाती थीं और गुरजिएफ को तो उस समय कोई भी नहीं जानता था। यहां तक कि गुरजिएफ के पास बोलने या व्यक्त करने के लिए परिष्कृत भाषा भी नहीं थी। उसने गुरजिएफ के साथ चेतना के सभी स्तरों, मानव की स्थिति, मृत्यु और अमरता और स्वयं में बोध की संभावना के बारे में बहुत चर्चा की।
आस्पेंस्की गुरजिएफ के शिष्यों के एक छात्र समूह में शामिल हो गए जो मास्को में गुप्त रूप से मिलते थे और उनके साथ तब तक काम किया जब तक कि सायवाद क्रांति के खतरे के तहत उस समूह को बंद नहीं कर दिया गया।
‘ओल्गा डे हार्टमैन’ एक बहुत प्रसिद्ध संगीतकार 1917 में गुरजिएफ के समूह में शामिल हो गए। 1917 में रूस युद्ध और क्रांतियों से पूरी तरह उजड़ गया था। उस समय गुरजिएफ एक अज्ञात रहस्यमय व्यक्ति थे। कोई भी उनके शिक्षण के बारे में नहीं जानता था। किसी को भी वह कहां से आया और क्यूं आया? इसका पता नहीं था और वह मास्को और सेंट पीटर्सबर्ग में क्यों दिखाई देता है यह भी पता नहीं था। परन्तु जो कोई भी उनके संपर्क में आता था वह उनका हो जाता था और उनका अनुगमन
करने लगता था। अब मॉस्को और सेंट पीटरबर्ग में काम करना मुश्किल बन चुका था, तो गुरजिएफ के बहुत से शिष्य ने, मिस्टर और मिसेज हार्टमैन और मिस्टर और मिसेज आस्पेंस्की के साथ मॉस्को से दूर ईंस्तुकी चले गए और वहां साधना शुरू की। ईंस्तुकी में, गुरजिएफ ने अपने शिष्यों को उपदेश देना और ध्यान सिखाना शुरू कर दिया। फिर उस क्षेत्र में भी युद्ध चालू होने के कारण साधना करना मुश्किल हो गया, इसलिए वे सभी टिफलिस के लिए चले गए। वहां भी कयुनिस्ट क्रांतिकारी
पहुंच गए, जो उनके लिए खतरा बन गए।

वहां से भी सबको भागना पड़ा। फिर गुरजिएफ का काफिला सीधे जर्मनी होके तुर्की पार करके फ्रान्स पहुंचा। यहां फ्रान्स से अलेक्जेंडर और जोन डे सल्जमन सहित कई अन्य छात्र गुरजिएफ के स्कूल में शामिल हो गए और उन सबने एक साथ मिलकर एक नया स्कूल शुरू किया और गुरजिएफ के निर्देशन में ध्यान करना शुरू किया। यहां एक वर्ष के भीतर ही एवन के महल नामक स्थान को खरीदने के लिए आवश्यक धन एकत्र कर लिया। यहां उन्होंने व्यक्ति के सामंजस्यपूर्ण विकास और ध्यान के प्रयोग करवाने के लिए एक संस्थान की स्थापना की, जिसका नाम
उन्होंने ‘हर्मोनिऔस डेवलपमेंट ऑफ ह्यï ूमन बीइंग रखा।
यहां उन्होंने अपने शिष्य के साथ संस्थान में कठिन साधना करते हुए 1922 से 1933 तक पूरे दस साल बिताए। इस दौरान गुरजिएफ ने अध्ययन और ध्यान के तरीकों को उनके शिष्य के स्वभाव और प्रकार के हिसाब से संशोधित किया। उनकी मुख्य शिक्षा स्वयं का अवलोकन करने का,
आत्मस्मरण करने का, ध्यान करने का और शारीरिक श्रम का अयास था। वह शरीर के तीन मुख्य केंद्र भावना, विचार और गति के सामंजस्य पर जोर देते थे।
कई और नए शिष्य संस्थान में ठहरने के लिए आए। मन्सफील्ड (जिनकी यहीं मृत्यु हो गयी थी), ए. आर. ऑरेंज, मौरिस निकोल और डी साल्जमन सभी अलग अलग क्षेत्रों से आए। गुरजिएफ ने श्रेष्ठता के अनुसार कोई भी भेद-भाव नहीं किया था और जो कोई भी उनके साथ अध्ययन के लिए आता था, उनको कठिन मेहनत करने के लिए निश्चित होना पड़ता था। और उनको गुरजिएफ के अहंकार पर एक अलग कार्य करने के तरीके से भी जूझना पड़ता था। उनके संस्थान में सब कार्य होशपूर्वक करने की साधना थी, ध्यान सीखने का पूरा मौका और व्यक्तिगत स्वभाव को ठीक करने के लिए हर क्षण होश में रहना और ध्यान सीखना एक बड़ा अवसर था। सभी शिष्य को होश के साथ साफ-सफाई, झाड़ू-पोछा, शिक्षा या उपदेश दिया करते थे।
यहां पर गुरजिएफ ने अपने शिष्यों पर बहुत प्रयोग किए। एक बार उन्होंने 30 शिष्यों को एक बंगले में सभी सुविधाओं के साथ रखा। उन लोगों को भोजन और अन्य सब कुछ समय-समय पर दिए जाते थे उन्होंने सभी तीस शिष्यों को कहा कि उन्हें बंगले में उसी तरह से रहना है, जैसे कि वे अकेले
रह रहे हैं। गुरजिएफ ने उन सभी शिष्यों को बताया कि आप कल्पना कीजिए कि बंगले में आपके सिवाय और कोई भी नहीं है। आपको किसी और को नहीं देखना है, क्योंकि वहां कोई है ही नहीं। अगर आपसे किसी को लग जाता है, तो दु:ख महसूस करने या उनसे माफी मांगने की कोई
आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वहां कोई है ही नहीं। सभी को ध्यान में और मौन में रहना है जैसे कि कोई बात करने के लिए वहां है ही नहीं। और सभी को हमेशा पूर्ण होशपूर्वक रहना है। यदि कोई किसी को कुछ इशारा करते हुए पाया जाता गया, तो गुरजिएफ उसे बाहर कर देता था। तीन दिन
के बाद उस बंगले में सभी शिष्यों को घुटन महसूस होने लगी। कई शिष्य बाहर आने लगे। तीसवें दिन बंगले में केवल तीन शिष्य बचे। लेकिन वे तीनों शिष्य अलग व्यक्ति हो चुके थे। पहली बार वे पूर्ण रूप से अहंकार मुक्त और होशपूर्वक हो गए थे। उनकी आंखे अलग हो गई थीं उनकी चाल
बदल गयी थी।
कठिन साधना की इस अवधि में, जिसमें गुरजिएफ के व्या यान और प्रदर्शनी भी शामिल थे, वे अमेरिका और यूरोप में चल रहे थे। 1925 में गुरजिएफ की एक बहुत घातक कार दुर्घटना हुई। यह दुर्घटना उस समय हुई जब वह अपनी पहली अमेरिका की यात्रा से लौट रहे थे। गुरजिएफ अकेले
एक छोटे सी सीट्रोन कार में सफर कर रहे थे। अब यहां पर एक विवाद है कि जब वह पूर्ण होश में थे तो कार दुर्घटना कैसे संभव हुई। लोग यह भी कहते हैं कि उन्होंने यह कार दुर्घटना जान-बूझकर की। वह देखना चाहते थे कि उनके शरीर को क्या होता है और क्या वह अपनी इच्छा शक्ति से वापस
अपने शरीर को ठीक कर सकते हैं या नहीं। चिकित्सक उनको इतनी तेजी से ठीक होते
हुए देखकर अचंभित रह गए थे।

गुरजिएफ ने बाद में अपना पूरा ध्यान किताब लिखने में और छापने लगा दिया। अंत में उन्होंने तीन बड़ी पुस्तकें समाप्त कीं। ये किताबें ‘मीटिंग विद रीमार्केबल मेन, और दूसरी ‘ऑल एंड एवरीथिंग’ और तीसरी ‘आई एम देयर, वेन आई एम’ थीं। ये पुस्तकें गुरजिएफ को जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण साबित हुईं।
पहली पुस्तक में गुरजिएफ ने कैसे बिना किसी दया के, बिना किसी समझौते के, जो कुछ भी हमारे मन में विचार का जो कचरा पड़ा है, और फिर उसकी सभी अच्छी और बुरी जो भी भावनाओं को जाल बनके पड़ा है, और जो अंधविश्वास, और अपना बनाया हुआ या प्रक्षेपण किया हुआ दृष्टिकोण जो
हमारे मस्तिष्क में पड़ा है उनको कैसे समाप्त किया जाए, के बारे में लिखा है।
दूसरी पुस्तक में ध्यान में उतरने के लिए आवश्यक सामग्री कैसे जुटाई जाए और इसके गुण-अवगुण को कैसे जांचा जाए उसका व्यवस्थित वर्णन है।
तीसरी पुस्तक में हम में उगते हुए ध्यान को या एहसास को कैसे सहारा दिया जाए और ध्यान को या होश को वहां तक ले आए कि वहां से वापस गिरने की संभावना समाप्त हो जाए। के बारे में लिखा है।
पेरिस में, अक्टूबर 23 को 1949 में गुरजिएफ ने अपनी इच्छा से अपने शरीर का त्याग किया। उस दिन सुबह में उन्होंने एक स्ट्रांग कॉफी ली, फिर एक सिगार सुलगाया और उसे पिया और फिर एक एबुलेंस बुलाई। वह एबुलेंस में बैठे और पेरिस के एक अस्पताल में गए, वह बस बिस्तर पर लेट गए और अपने कुछ खास शिष्यों की उपस्थिति में शरीर को त्याग दिया।
