हरखू दादा के आगे माइक रखा गया, पर वे चुप। जैसे तय न कर पा रहे हों कि क्या कहें, क्या न कहें।…
उन्होंने पूरे सभामंडप पर निगाह दौड़ाई, फिर गाल पर हाथ रखकर कुछ सोचने से लगे। जैसे भूल गए हों कि उन्हें यहाँ बोलना है।…कि सभामंडप में उपस्थित हजारों लोग उन्हें सुनने के लिए उत्सुक हैं।
“हरखू दादा, लोग आपको सुनना चाहते हैं…!” जमींदार बाबू गंगासहाय जी ने याद दिलाया।
“ओह, हाँ…!” हरखू दादा ने धीरे से गर्दन हिलाई, जैसे पुरानी यादों के धुँधलके से निकलकर बाहर आए हो। फिर कुछ रुक-रुककर, सोचते हुए से बोले, “देखो जी साहेबान, हालत तो मेरी कुछ ठीक नहीं थी। पर जमींदार बाबू ने कहा कि दादा, आज आपको सुनने बड़े-बड़े लोग आए हैं। मोहना के बारे में जानना चाहते हैं। तो जैसे-तैसे लाठी के सहारे मैं आ गया। वैसे भी मोहना तो ऐसा मोहना था कि उसकी कोई बात करो, तो आगे-पीछे कुछ होश रहता ही नहीं। मन कहीं से कहीं भागता है।…तो सुन लो आप प्यारे मोहना की कहानी। जितनी मुझे याद है, उतनी तो सुना ही सकता हूँ।…”
कहकर बूढ़े हरखू दादा कुछ संजीदा हो गए। और फिर जाने कब खुद-ब-खुद चल पड़ी मोहना की कहानी…
ताप्ती किनारे बसे इस हिरनापुर गाँव में मोहना कब आया, कहाँ से आया, यह तो पता नहीं। शायद किसी को पता नहीं। पर जब वह हिरनापुर में आया, तो बस यहीं का हो गया। यहीं की मिट्टी में रच-बस गया। यहीं सारे-सारे दिन वह हवाओं में अपने इकतारे के संगीत की मिठास घोलता था। और खासकर गाँव के बच्चों से तो उसकी ऐसी दोस्ती हो गई कि देखकर सब निहाल होते थे।
एकाध बार, मुझे याद पड़ता है, बच्चों को उसने बातों-बातों में अपनी कहानी भी सुनाई थी। उससे पता चला, कभी मोहना के एक सुंदर सा चाँद जैसा बेटा था और बड़ी अच्छी घरवाली भी। पर बीमारी की चपेट में आकर पहले घरवाली गई और फिर बेटा भी भगवान को प्यारा हो गया। बस, मन उचाट हो गया मोहना का और वह हाथ में इकतारा लेकर निकल पड़ा।…
कपड़े तो उसने जोगियों वाले नहीं पहने। मैंने तो उसे हमेशा सादा कुरता-पाजामा पहने ही देखा।…पर मन से वह जोगी हो गया। पक्का जोगी। इकतारे पर कभी दुख और उदासी तो कभी खुशी की सरगम छेड़ते हुए वह निकलता तो गाँव में हर किसी का ध्यान जाता।…
पर मोहना अपनी मस्ती की तरंग में रहता था। उसे बड़ों के साथ कम, बच्चों के साथ रहना कहीं ज्यादा पसंद था। कहा करता, “हिरनापुर के बच्चे बड़े अच्छे हैं। ऐसे प्यारे बच्चे मैंने कहीं और नहीं देखे…!” और फिर धीरे-धीरे उसके मन पर हिरनापुर की कुछ ऐसी छाप पड़ी कि मोहना हमेशा के लिए हिरनापुर का ही हो गया। बस, समझो कि यहाँ के बच्चों ने ही उसे खींच लिया। वरना वह यहाँ से कहाँ जाता, फिर कहाँ से कहाँ, कुछ कह नहीं सकते।…
अकसर ऐसा होता कि मोहना इकतारे पर सुरीले गीत गाता हुआ गुजरता, तो बच्चे भी उसके साथ-साथ चल पड़ते। जैसे उसके जादू से बँध गए हों। मोहना ज्यादा बोलता नहीं था। बस, कभी-कभी बच्चों की ओर देखकर प्यार से हँस पड़ता। बच्चे इसी के मुरीद थे। उन्हें लगता, मोहना कुछ अलग है। मोहना बड़ा अच्छा आदमी है।…उन्हें मोहना बड़ा प्यारा लगने लगा।
मोहना चलते-चलते थोड़ा आराम करने के लिए किसी बरगद या आम के पेड़ के नीचे बैठ जाता, तो बच्चे भी आसपास घेरा बनाकर बैठ जाते। इकतारे के संगीत के साथ-साथ न जाने कब मोहना गा उठता—
छपछैया…ताता थैया,
चंदा के भैया के भैया,
आसमान की मैया,
तक-तक, तिक-तिक, तक-तक, तिक-तिक,
आओ नचन-नचैया….छपछैया…ताता थैया…!”
पता नहीं गहरी पुकार के साथ किसे बुलाता था वह कि गाते-गाते उसकी आँखें गीली हो जातीं, गला भर्राने लगता। पर फिर भी इतना मीठा सुर कि सुनकर हर कोई उसका मुरीद हो जाता था।
कभी-कभी बच्चे जिद करते तो मोहना कहानी भी सुनाता। उसकी कहानी एक सुंदर रूपदुलारे बच्चे की कहानी थी, जो चंदा मामा की दुनिया से धरती पर आया था और किलकता रहता था। दूर तक उसकी नन्ही दँतुलियों की हँसी और किलकारियाँ गूजतीं, पर फिर एक दिन न जाने किस बात पर वह रूठा और उड़कर चला गया चंदा मामा के पास…!
कहानी कहते-कहते मोहना उदास हो जाता। पर कहानी जारी रहती।
बच्चों को पसंद थी मोहना की यह कहानी और वे उसे बार-बार सुनते। हालाँकि हर बार सुनाते हुए मोहना उसे कुछ न कुछ बदल देता था। और हर बार उसमें कुछ न कुछ नया जुड़ जाता था। कभी सतरंगी चिड़िया, कभी एक नन्ही गोरी सी खरगोशनी, कभी मोर जैसी शक्ल वाला चाँदी का पलना…कभी सात दरवाजों वाला आसमानी महल, जिसमें चाँदनी के फव्वारे लगे थे।
गाँव की स्त्रियाँ मोहना को कुछ न कुछ खाने को दे देतीं। नहीं तो यों ही कुछ फल खाकर और नदी का पानी पीकर गुजारा करता, मगर उसकी मस्ती की तरंग में कोई फर्क न आता।
मगर फिर कुछ ऐसा हुआ कि मोहना बदला। बदलता गया।
जैसे मोहना के जीवन में कोई आँधी आ गई हो।
हुआ यह कि एक बार गाँधी जी के शिष्य काशीलाल पटवर्धन बनारस आए तो आसपास के गाँवों की यात्रा का भी उनका कार्यक्रम बन गया। घूमते-घूमते अपने साथियों के साथ वे हिरनापुर भी आए। मोहना ने उन्हें देखा तो उसे लगा कि उसके अंदर कुछ चाँदना सा हो रहा है। चीजें बदल सी रही हैं। पता नहीं काशी भाई की आँखों में कुछ था या बातों में, पर मोहना उनकी ओर ऐसे खिंच आया, जैसे किसी बड़े चुंबक से वह खुद-ब-खुद खिंचा जा रहा हो।
हिरनापुर में काशी भाई की सभा हुई तो लोगों के बार-बार आग्रह करने पर मोहना ने भी अपने इकतारे पर कुछ मीठे सुर निकाले और जोश में ‘तिरंगा प्यारा’ गाकर सुनाया। अब तो सबके साथ-साथ काशी भाई भी हैरान। बोले, “इस गाँव में ऐसे ऊँचे दरजे के कलाकार भी हैं, मुझे पता न था।”
और फिर काशी भाई की यात्रा आगे शुरू हुई तो उनके साथ गाँव-देहात की पद-यात्रा में बिना रुके, बिना थके, साथ चलने वालों में मोहना सबसे आगे था। काशी भाई को भी वह भा गया। बोले, “मोहना, तुम्हारे इकतारे का संगीत मैंने सुना है। हिरनापुर गाँव के लोगों ने भी बड़ी तारीफ की है। तुम गाते भी अच्छा हो। तो अब पहले तुम मंच पर इकतारा बजाकर कुछ गाया करो, उसके बाद ही मैं बोला करूँगा।”
फिर तो यही सिलसिला चल पड़ा। काशी भाई बाद में भाषण देते, मोहना को पहले मंच पर खड़ा कर देते। वह इकतारा बजाता और फिर उस पर स्वदेशी और सुराज का राग छेड़ देता। ‘गाँधी बाबा की जय’ से शुरू करता और जब उसके सुर विराम लेते तो चारों ओर एक निस्तब्धता सी छा जाती। लोग पुकारकर कहते, “मोहना, मोहना, कुछ और सुनाओ, मोहना…!”
इस पर मोहना हँसकर कहता, “अरे, हम तो यहीं के हैं। गाँधी जी के इतने बड़े शिष्य आए हैं, पहले आप उनको तो सुनो…!” और सचमुच जादू हो जाता। सभा में फिर से परम शांति।
काशी भाई महसूस करते कि मोहना के स्वर में कोई ऐसी बात है कि सुनते ही सबके दिल पर असर होता है। मानो वह सबके दिलों को जीत लेता है। ऐसा आदमी देश के लिए काम करे तो कितना अच्छा है!
जाते-जाते उन्होंने मोहना से वचन लिया, “मोहना, देश तुम्हें पुकार रहा है। बेड़ियों में बंदी भारत माता पुकार रही है। उसकी पुकार को अनसुना मत करना। आगे इसी राह पर तुम्हें बढ़ना है। गाँधी जी के दिखाए रास्ते पर चलकर देश की सेवा करनी है।”
“बाबू साब, हमने तो नई जिंदगी पाई है। आपने हमें रोशनी दिखा दी। यह बात हम कभी नहीं भूलने के।” मोहना भावुक होकर बोला।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
