Hindi Love Story: “हद ही हो गई है यार अब तो।” उसके घर की पिछली गली में खड़ी मेरी कार में आकर बैठते हुए उसने कहा।
“अब किसने क्या कर दिया मैडम?” मैंने बेपरवाही से कहा और उसके बैठते ही कार आगे बढ़ा दी।
“सुहानी गुप्ता है ना, मेरी पड़ोसी।” उसके तमतमाए चेहरे पर बारिश के मौसम की उमस भरी गर्म दोपहर ने भी भरपूर रंगसाजी की हुई थी।
“हाँ जानता हूँ ना उसको। जितनी ख़ूबसूरत, सादी हैं;उतनी ही इंटेलिजेंट, हर तरीके से सलीक़े की औरत।” मैंने उन्हें याद किया।
“कुछ नहीं जानते तुम उसके लिए।” उसने शब्दों पर ज़ोर बढ़ाया।
“हुआ क्या, ये तो बताओ?” उसकी गली पार करते हुए, उस पर एक छोटी नज़र ही डाल पाया।
“मैंने बहुत बार देखा है उसे, अपनी बालकनी में बैठे और ड्रिंक करते। मेरी खिड़की से दिखता है सब। इतने लड़के-लड़कियाँ आते रहते हैं उसके घर में, पता नहीं क्या धंधा करती है। अभी तो न, आते-आते देखा मैंने, उसके घर के बाहर कार किनारे खड़ी थी और दिन दहाड़े ही एक कपल लगा हुआ था।”
“हा…हा…हा…देखो डियर, जलना-भुनना बंद करो। मैं मिला हूँ उनसे। बहुत ही शानदार लेडी हैं। एक बात भी बेकार में नहीं बोलती और बात व्यवहार में भी वह सभ्य इंसानों से बहुत ऊपर हैं।”
“वाहियात है यार। ना किसी पड़ोसी से कोई मतलब है ना कॉलोनी से। यहाँ के लोग जानते हैं न उसको, इसलिए किसी का आना-जाना तो दूर, बचते हैं लोग उससे।” मुझे नहीं पता, शायद ज़्यादा लौ इसलिए दे रही हो कि, मैं उसकी तरफ़दारी कर रहा था।
“तुम कुछ भी बोले जा रही हो। मुझे नहीं लगता, तुम्हें कुछ भी पता है उनके बारे में। पब्लिकेशन के काम के अलावा वे रिलेशनशिप एक्सपर्ट हैं; लोगों को टाइम देती हैं, तो लोग आते हैं। कोई उसके घर के बाहर क्या कर रहा था, यह देखना उनका काम नहीं। दारू के शौक़ीन तो हम भी हैं डार्लिंग।” मैंने उसे समझाना चाहा।
“तुम नहीं समझोगे।” यहाँ तो गंगा ही उल्टी बह रही थी।
“सही कहा तुमने। तुम जैसी गॉशिप में खोए रहने वाली लड़कियाँ ही अपने साथ-साथ दूसरी लड़कियों की ज़िंदगी ख़राब करती हैं। तुम लोगों के अंदर भगवान ने ना जाने कहाँ से थोक में ला-लाकर जलन भर दी है।”
“मैं क्यों जलूँगी उससे, मेरे पास कुछ कमी है क्या। ठीक है थोड़ा ज़्यादा होगा उसके पास, लेकिन कुछ कम में तो हम भी नहीं।” यूँ तो बेढंगी दलीलों पर बात बढ़ाना मुझे पसंद नहीं, पर बात मिर्ची की हो तो लग ही जाती है।
“डार्लिंग, तुम्हें मेरी बात चुभेगी; लेकिन मुझे पता है तुम समझ जाओगी। तुम्हारे पास सब तुम्हारे पापा का है, उसके पास ख़ुद का।” विषयांतर ही सही, लेकिन थोड़ी चोट कभी ज़रूरी हो जाती है।
“मैं और पापा अलग हैं?” उसने शायद कभी सोचा ना हो, इसलिए उसकी आवाज़ में आई फ़ालतू की तेजी ढलान पर थी।
“हाँ! बदसूरत समझ से बाहर निकलो डियर। इतिहास देखो, हर हुनरमंद को अपने समय से पहले होने की क़ीमत चुकानी पड़ी है। समाज के पैमानों पर जिन्हें अच्छे आदमी, औरत कहा जा सकता है; उन पर खरे उतरने की फ़िक्र लिजलिजाते, गंधाते लोगों के ही बस की बात हो सकती है। तुमसे कुछ करते बनता नहीं, तो बहानों में जीती हो और अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आना तुम्हें ज़रूरी नहीं लगता। आज पापा की परी बने घूमों, कल पति की सेक्स डॉल और दासी। हमारे समाज को यह पता है कि तुम्हारा रिमोट कंट्रोल हमेशा दूसरे के हाथों में रहने वाला है। कोई औरत आगे बढ़ती है तो कैसे उसके किरदार का क़त्ल करना है क्योंकि वह समाजी उसूलों को मानने से इंकार करती है। सॉरी डियर! कहना नहीं चाहता था, पर तुम उनमें से एक हो।” मैं किसी जंग पर नहीं था, पर शायद किसी ज़हरखुरान के बहकावे में आ गया था।
अगले ही मिनट, जुबान से उगली आग पर अफ़सोस कर सकने के अलावा मेरे पास और कुछ नहीं था। मैंने देखा वह अपनी आँखों और माथे को हथेली से ढककर नीची गरदन किए बैठी है। यूँ उसकी चुप्पी से राहत पहुँची कि, उसमें शर्म बाकी थी।
ये कहानी ‘हंड्रेड डेट्स ‘ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Hundred dates (हंड्रेड डेट्स)
