साईं…लाखों के दुखों को हरने वाले, कमजोरियों को भूला ताकत देने वाले, बेऔलाद को औलाद देने वाले और भूखे का पेट भरने वाले। साईं इतने लोगों के दिलों में यूंहीं नहीं बसे हैं। उनके लिए दिलों में श्रद्धा ऐसे ही नहीं समाती है। बल्कि साई बाबा के आशीर्वाद को महसूस करने वाले तो ये भी मानते हैं कि भले ही अब वो इस दुनिया में नहीं है लेकिन चलाते सबकुछ वही है। उन्हीं के इशारों पर दुनिया में सबकुछ अच्छा और बेहतर होता है और आगे भी होगा। ऐसे ही साईं ने जीवन को जीने की असल राह भी दिखाई थी। उन्होंने जीवन के लिए 11 ऐसे वचन दिए थे, जिनके साथ जीवन संतुष्टि और प्यार से भर जाएगा। इन 11 वचनों को दिल और कर्मों में शामिल करके साईं की कृपा महसूस की जा सकती है और जीवन भी समृद्ध किया जा सकता है। इन्हीं वचनों पर आइए नजर डालें-

शिरडी में हों दुख दूर-
साईं अपने पहले वचन में कहते हैं कि ‘जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा।’ मतलब अगर आप शिरडी आते हैं तो मान लीजिए कि आपके दुखों का नाश हो गया। आपके शिरडी में कदम रखते ही दुखों का ह्रास होने लगता है। मगर सब लोगों का शिरडी जाना संभव हो नहीं पाता है। कभी आर्थिक दिक्कत तो कभी शारीरिक परेशानियां, हो सकता है साईं के दर पर भक्तों को जाने से रोक दें, अब ऐसे में ये जरूरी है कि साईं के दर्शन किसी मंदिर में ही कर लिए जाएं। माने मंदिर जाकर भी वचन को पूरा किया सा सकता है।
सीढ़ी पर दुख दूर-
साईं बाबा के दूसरे वचन के मुताबिक बाबा की समाधि की सीढ़ी पर पैर रखते ही भक्तों के दुख दूर हो जाएंगे। लेकिन मन में श्रद्धा पूरी होनी चाहिए। वो कहते हैं कि ‘चढ़े समाधि की सीढ़ी पर, पैर तले दुख की पीढ़ी पर।’ मतलब बाबा की सामाधि की सीढ़ी चढ़ने का मतलब ही है कि दुख कम होंगे, निश्चिंत रहें।

शरीर बिना ही आऊंगा-
‘त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौड़ा आऊंगा।’ अपने इस तीसरे वचन में साईं बाबा कहते हैं कि भले ही मैं शरीर छोड़ जाऊं लेकिन भक्तों को जब-जब जरूरत होगी, मैं जरूर आऊंगा।
विश्वास है जरूरी-
हो सकता है साईं बाबा को सामने से न देख पाने के चलते भक्तों का विश्वास कमजोर हो जाए। वो असहाय महसूस करने लगे लेकिन ठीक इस वक्त उनको विश्वास रखना होगा कि साईं आएंगे और सारी अरदास पूरी होगी। उनके मन में जो भी उधेड़बुना है, उसका इलाज साईं कर देंगे। उनका वचन है,’मन में रखना दृढ़ विश्वास, करे समाधि पूरी आस।’

मैं जीवित हूं-
अपने पांचवे वचन में साईं कहते हैं कि मुझे जीवित ही समझना हमेशा क्योंकि मैं शरीर मात्र नहीं हूं। भक्ति में लीन भक्त जब भी मुझे पुकारेंगे, मैं मदद को आ जाऊंगा। मतलब साईं का शरीर से लेना-देना नहीं है। भले ही अब वो ना हों लेकिन वो जरूरत पर मदद को जरूर आ जाएंगे। वो कहते हैं कि ‘मुझे सदा जीवित ही जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो।’
कोई खाली नहीं जाता-
साईं के वचन में कहा गया है कि ‘मेरी शरण आ खाली जाए, हो तो कोई मुझे बताए।’ साईं कहते हैं कि मेरे पर मानोकामना लेकर आने वाला कभी मेरे पास से खाली नहीं जाता है। उसकी झोली हमेशा भरी ही रहती है। पूरी श्रद्धा से मेरे पास आने वाले को हमेशा साईं से कुछ न कुछ मिलता जरूर है। वो कभी खाली हाथ नहीं रखते हैं। उनके भक्तों के दिलों में अफसोस नहीं होता संतुष्टि होती है। वो अगर एक बार प्रार्थना लेकर आएंगे तो सब्र रखो कि इच्छा पूरी होगी ही।

मैं दिखूंगा वैसा-
साईं का सातवां वचन कहता है कि भक्त मुझे जिस भी भाव से देखेंगे, मैं उन्हें वैसे ही दिखूंगा। मतलब भक्त जिस भावना से मेरे पास आएंगे, मैं उसी भावना से उनकी मन से इच्छा पूरी कर दूंगा। उनका वचन है, ‘जैसा भाव रहा जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मन का।’
समर्पण से मिलेगा सबकुछ-
भक्तों को याद रखना चाहिए कि साईं आपकी मदद को जरूर आएंगे। इसके लिए साईं की ओर समर्पण की जरूरत होगी बस साईं के ऊपर विश्वास रखो और दिल से उनकी श्रद्धा करनी होगी, फिर देखिएगा कैसे सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कैसे आपके सारे दर्द साईं खुद ले लेंगे। उनका वचन है, ‘भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा।’
आप भी करें मदद-
आपको खुद तो मदद की आस है लेकिन जब दूसरों को आपकी मदद की जरूरत होती है तो आप पीछे हट जाते हैं। अगर ऐसा है तो साईं से कोई आशा न रखिए क्योंकि साईं बाब उसकी ही मदद करते हैं, जो दूसरों की मदद को हमेशा तैयार रहते हैं। आप जब किसी की मदद करेंगे तो साईं भी आपकी मदद को दौड़े चले आएंगे। उनका वचन है, ‘आ सहायता लो भरपूर, जो मांगा वो नहीं है दूर।’
साईं भी ऋणी –
साईं कहते हैं कि जो भक्त पूरे दिल से मेरी भक्ति में लीन रहता है, उसकी मदद मैं भी करता हूं और साथ में उस भक्त का ऋणी भी हो जाता हूं। ये ऋण इतना होता है कि भक्त की सारी ज़िम्मेदारी फिर साईं खुद ही ले लेते हैं। उनका वचन भी इस बात पर मोहर लगाता है। उनका वचन है कि ‘मुझमें लीन वचन मन काया, उसका ऋण न कभी चुकाया।’
आप धन्य हैं-
साईं बाबा ने हमेशा माना है कि उनके वो भक्त धन्य हैं, जिन्होंने अनन्या भाव से मेरी भक्ति की है। जो बिना किसी राग-द्वेष के ही साईं की भक्ति में लीन रहते हैं, उन्हें साईं धन्य मानते हैं। उनका वचन कहता है कि ‘धन्य धन्य व भक्त अनन्य, मेरी शरण तज जिसे न अन्य।’
