छोटी उम्र में दिल में बैठी यह बात आगे की जिंदगी में बहुत काम आती है। खर्चा कहां करें, कहां नहीं, जैसी बातें उसे आसानी से समझ में आ जाती हैं। वह अपनी कमाई का सदुपयोग भी करेगा और भविष्य के लिए बचत भी करेगा। मगर बच्चे को यह बात समझाई कैसे जाए? यह कोई कठिन काम नहीं है। छोटी-छोटी बातों के साथ यह काम आसानी से हो सकता है। कैसे? आइए जानें-

जरूरत और चाहत

बच्चों को शुरू से यह बताना जरूरी है कि जरूरत और चाहत में अंतर क्या है? जैसे फूड कोर्ट में खाना खा लेना आपकी चाहत हो सकती है लेकिन घर के किचन में खाना होना जरूरत है। यह बात भी उसको समझाई जानी चाहिए। उससे पूछिए कि एक दिन तुम फूड कोर्ट जाओ और खाना न मिले तो क्या होगा? तो तुम घर पर खाना खा सकते हो लेकिन घर पर खाना न होने का मतलब है कि हमारे पास बाहर से खाने के भी पैसे नहीं हैं। इसलिए सबसे पहले जरूरत पूरी करनी होती है।

जेब खर्च से भी बचाएं

बच्चों को जेब खर्च भले ही अपनी जरूरतों पर खर्च करने के लिए दिया जाता है लेकिन इसमें से भी पैसे बचाए जा सकते हैं। ताकि सारे पैसे मिलाकर वे अपने लिए कोई बड़ी और महंगी चीज खरीद सकें। बच्चों के सामने आप गोल फिक्स कर सकते हैं। जैसे अगर हर महीने तुम 500 रुपये बचा लोगे तो 4 महीने बाद अपनी पसंद का खिलौना खरीद सकते हो। शुरू में शायद बच्चे को ये बातें गलत लगें लेकिन जब यह सच में होगा तो उन्हें अच्छा जरूर लगेगा।

खर्च लिखने की आदत

जैसे-जैसे पैसे खर्च होते जाएं, वैसे-वैसे उन्हें कहीं लिखते जाएं। ऐसा करने से खर्च से जुड़े अपने निर्णयों को देख पाएंगे कि कहीं ये गलत तो नहीं हैं। ठीक यही बात बच्चों को भी कहिए। उन्हें समझाइए कि इस तरह वे अपने खर्चों पर नजर रख पाएंगे। वे समझ पाएंगे कि कहां गलत खर्च किया है।

अपनी गलतियां और खूबियां

अपनी बचत के दौरान आपने भी गलतियां की होंगी। जैसे गलत पॉलिसी में निवेश या गलत खर्चे। ये सारी बातें अपने बच्चों से जरूर बताएं। उन्हें समझाएं कि कब निर्णय गलत हो सकता है और कब नहीं। अपने अनुभव साझा करके यह काम आसान हो सकता है। ठीक ऐसा ही फायदे वाले निर्णयों के साथ भी कीजिए।