वेदों, उपनिषद, गीता एवं पुराणों आदि से प्राचीन काल से ‘योग’ का उल्लेख मिलता है। भारतीय दर्शन में योग एक अति महत्वपूर्ण शब्द है। आत्मदर्शन एवं समाधि से लेकर कर्मक्षेत्र तक योग का व्यापक व्यवहार हमारे शास्त्रों में हुआ है। योगदर्शन के उपदेष्टा महर्षि पतंजलि ‘योग’ शब्द का अर्थ चित्तवृत्ति का निरोध करते हैं।
