अजय के पिता अपने बंदीघर में उसकी आंखों के ठीक सामने बेबस से खड़े थे, इतने पास कि अजय उन्हें देख सकता है, लेकिन इतने दूर कि अजय उन्हें छू तक नहीं सकता है। एक बाप और बेटे की तड़प और प्यार से भरा था ये लम्हा। दोनों ही को एक-दूसरे की जिंदगी की फिक्र खाए जा रही थी, लेकिन मजबूर दोनों ही थे।
