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कबीर के शब्दों में कबीर

कबीर पर लिखना या बोलना कठिन ही नहीं असंभव जैसा है। यह ऐसे ही है जैसे सागर पर कुछ लिखना हो, सूरज पर कुछ लिखना हो। इन पर लिखने के लिए इन्हें उनके जितना जानना या नापना जरूरी है और सागर की गहराई और सूरज की आग-नापने का अर्थ है खुद का न बच पाना, खुद को खो देना। इन्हें खोजने वाले कभी खुद नहीं बचे। खोजने वाला स्वयं लुप्त हो जाता है। यही सागर की, सूर्य की परिभाषा है, यही सत्य है।