“अतिथिदेवो भव” भारत में अतिथि सरकार की परम्परा बड़ी पुरानी है। यह अनन्त समय से चली आ रही है। आज के बदलते परिवेश में भी यह हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह महत्त्वपूर्ण सामाजिक व्यवहार है, जो मनुष्य की सामाजिक प्राणी होने का आभास कराता है। यह गुण भारतीय संस्कृति में रक्त के […]
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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: फिर लहराया योग का परचम
योग हमारी भारतीय संस्कृति की प्राचीनतम पहचान ही नहीं एक सुखद, संतुलित और स्वस्थ्य जीवन जीने की एक मात्र कुंजी भी है। युगों पुराना यह योग भारत के स्वर्ण काल का आधार रहा है। वक्त की तह में भले ही यह कुछ धुंधला सा गया था परंतु 21 जून, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की अपार सफलता ने फिर से योग के शिखर छूने की संभावना जताई है।
शक्तिदायक है गायत्री मंत्र का जाप, अनोखी है महिमा
गायत्री मंत्र भारतीय संस्कृति का मेरुदंड और महापुरुषों का गुरु मंत्र है। प्राचीन ऋषि गुरु-दीक्षा में गायत्री मंत्र की ही दीक्षा देते थे, परन्तु कालान्तर में कथित पंडितों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। धर्म ग्रंथों में स्व-रचित श्लोकों को सम्मिलित कर जनमानस को भटकाया और गायत्री मंत्र स्त्रियों और शूद्रों को पढ़ने […]
समृद्धि की प्रतीक रंगोली
प्राय: हम दिवाली में अपने घरों को विभिन्न आकर्षक रंगोलियों द्वारा सजाते हैं लेकिन हममें से बहुत से लोग ऐसे हैं जो सजावट के अतिरिक्त इसके अन्य प्रकार के महत्त्वों से अंजान होते हैं।
संस्कारों की डोर से बंधा रहे हर परिवार
परिवार के सदस्यों में तीन गुण अति आवश्यक हैं- श्रमशीलता, स्नेहशीलता व सहनशीलता। हर सदस्य यदि परिवार के कार्य करने को तत्पर रहे तो समस्याओं का ग्राफ स्वत: ही नीचे आ जाता है।
