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मन हैं अनेक – आचार्य महाप्रज्ञ

मन तो एक ही है। हमारे चित्त अनेक होते हैं। हमारे चित्त की वृत्तियां अनेक होती हैं। चित्त में नाना प्रकार की वृत्तियां जागती हैं, नाना प्रकार के चित्त जागते हैं और अनेक बन जाते हैं अनके चित्तों के कारण मन भी अनेक जैसा प्रतिभासित होने लग जाता है।

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जितने पर्याय हैं, वे सारे बदलते हैं – आचार्य महाप्रज्ञ

जीवन में आस्था का स्थान बहुत ऊंचा है। जिस जीवन में आस्था नहीं होती, वह जीवन आधारशून्य होता है। उस जीवन में सफलता का वरण नहीं हो सकता। आस्था का अर्थ किसी पर भरोसा करना नहीं होता। उसका अर्थ है अपने आप पर भरोसा करना।

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मन का कायाकल्प – आचार्य महाप्रज्ञ

आयुर्वेद में कहा गया- जब व्यक्ति में पित्त का प्रकोप होता है तब क्रोध का प्रकोप बढ़ जाता है। कफ का प्रकोप होता है तो लोभ बढ़ जाता है। अपान वायु दूषित होता है तो भी क्रोध बढ़ जाता है।

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अहिंसा एक महान शक्ति है – आचार्य महाप्रज्ञ

जो व्यक्ति अहिंसा का साक्षात्कार कर लेता है, उसमें असीम शक्ति जाग जाती है, मरने की शक्ति जाग जाती है। मरने की शक्ति दुनियां में सबसे बड़ी शक्ति होती है। इससे बड़ी कोई शक्ति नहीं और जिस व्यक्ति में मरने की शक्ति आ गई वह सारी भौतिक शक्तियों से अपराजेय बन गया।

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चेतना का रूपांतरण – आचार्य महाप्रज्ञ

जब चेतना बदलती है तो हृदय बदल जाता है। चेतना नहीं बदलती है तो कुछ भी नहीं बदलता। युक्ति को जाने बिना चेतना का रूपांतरण नहीं हो सकता। अचेतन में छलांग नहीं होती, चेतन में छलांग होती है।

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