कैसे जाएं?
यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा पूना में है, जो यहां से 160 किमी दूर है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन श्रीरामपुर है। नासिक से यहां के लिए बस, टैक्सी आदि सुविधाएं उपलब्ध हैं। मुंबई, पूना अहमदाबाद से यहां सड़क मार्ग से आया जा सकता है।
कब जाएं?
शिंगणापुर में वैशाख की अमावस एवं अन्य शनि अमावस को भारी मेला लगता है। वैसे श्रद्धालु साल भर यहां आते रहते हैं।
कहां ठहरें?यहां बने आश्रमों में लोग ठहर जाते हैं। अधिकतर यात्री शिरडी में रात्रि विश्राम करते हैं, जहां ठहरने के लिए हर प्रकार की सुविधा है।
महत्व
शनि शिंगणापुर : महाराष्ट्र के नासिक शहर के पास स्थित ‘शिगनापुरÓ गांव में शनिदेव का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में शनिदेव की अत्यंत प्राचीन पाषाण प्रतिमा है। वास्तव में इस प्रतिमा का कोई आकार नहीं है। मूलत: एक पाषाण को शनि रूप माना जाता है। काले वर्ण की शनिदेव की प्रतिमा लगभग 5 फीट 9 इंच लंबी और एक फीट 6 इंच चौड़ी, संगमरमर के एक चबूतरे पर विराजमान है, जो धूप, ठंड तथा बरसात में दिनरात खुले में रहती है। प्रतिमा को स्वयं भू माना जाता है।
प्रतिमा की कहानी
शनि प्रतिमा के शिंगणापुर पहुंचने की कहानी बड़ी ही रोचक है। सदियों पहले शिंगणापुर में खूब वर्षा हुई। वर्षा के कारण यहां बाढ़ की स्थिति आ गई। लोगों को वर्षा प्रलय के समान लग रही थी। इसी बीच एक रात शनि महाराज एक गांववासी के सपने में आए। शनि महाराज ने कहा कि ‘मैं पानस नाले में विग्रह रूप में मौजूद हूं। मेरे विग्रह को उठाकर गांव में लाकर स्थापित करो।Ó सुबह इस व्यक्ति ने गांव वालों को यह बात बताई। सभी लोग पानस नाले पर गए और वहां मौजूद शनि का विग्रह देखकर सभी हैरान रह गये। गांव वाले मिलकर उस विग्रह का उठाने लगे लेकिन विग्रह हिला तक नहीं, सभी हारकर वापस लौट आए। शनि महाराज फिर उस रात उसी व्यक्ति के सपने में आये और बताया कि कोई मामा भांजा मिलकर मुझे उठाएं तो ही मैं उस स्थान से उठूंगा। मुझे उस बैलगाड़ी में बैठाकर लाना जिसमें लगे बैल भी मामा-भांजा हों। अगले दिन उस व्यक्ति ने जब यह बात बताई, तब एक मामा भांजे ने मिलकर विग्रह को उठाया। बैलगाड़ी पर बिठाकर शनि महाराज को गांव में लाया गया और उस स्थान पर स्थापित किया जहां वर्तमान में शनि विग्रह मौजूद है।
कार्यक्रम
श्री शिंगणापुर की ख्याति इतनी है कि आज यहां प्रतिदिन 13 हजार से ज्यादा लोग दर्शन करने आते हैं और शनि अमावस, शनि जयंती को लगने वाले मेले में करीब 10 लाख लोग आते हैं। प्रतिदिन प्रात: 4 बजे एवं सायंकाल 5 बजे यहां आरती होती है। शनि जयंती पर जगह-जगह से प्रसिद्ध ब्राह्मïणों को बुलाकर ‘लघुरुद्राभिषेकÓ कराया जाता है। यह कार्यक्रम प्रात: 7 से सायं 6 बजे तक चलता है।
दर्शन के नियम
शनि शिगनापुर मंदिर में शनिदेव के दर्शन करने, उनकी आराधना करने के कुछ नियम हैं। चूंकि शनिदेव बाल ब्रह्मïचारी हैं, इसलिए महिलाएं दूर से ही उनके दर्शन करती हैं। वहीं पुरुष श्रद्धालु स्नान करके, गीले वस्त्रों में ही शनि भगवान के दर्शन करते हैं। तिल का तेल चढ़ाकर पाषाण प्रतिमा की प्रदक्षिणा करते हैं। भक्तों को पहले सार्वजनिक स्नानगृह में नहाना पड़ता है उसके बाद बिना किसी ऊपरी परिधान के गीली धोती के साथ प्रार्थना करनी पड़ती है।
शिंगणापुर गांव
शनि शिंगणापुर के बारे में यह प्रचलित है कि यहां, ‘देवता हैं, लेकिन मंदिर नहीं। घर है, लेकिन दरवाजे नहीं। वृक्ष हैं, पर छाया नहीं भय है, पर शत्रु नहीं।
यह मंदिर जिस गांव में है वहां के घरों में दरवाजे नहीं हैं। कहा जाता है कि गांव वालों को अपने देवता शनिश्वेर पर भरोसा है कि वह सदैव डकैती और चोरी होने से उनके घर की रक्षा करेंगे। यह कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति यहां चोरी कर ले तो उसी दिन वह अंधा हो जाता है। इस छोटे से गांव में आज भी किसी घर में ताला या कुंडी नहीं लगाई जाती। इसके साथ ही यहां लोग अपने कीमती सामान को किसी अलमारी या तिजोरी में भी नहीं रखते। यहां आने वाले लोग भी अपने वाहनों में ताला नहीं लगाते व बिना किसी परेशानी के अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं।
