Overview:रहस्यमयी ज्योति का धाम - क्यों नवरात्रि पर खास है ज्वाला देवी मंदिर के दर्शन
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वाला देवी मंदिर अपनी रहस्यमयी अखंड ज्योति के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ बिना दीया और बाती के प्राकृतिक ज्वालाएँ लगातार जलती रहती हैं, जिन्हें देवी सती की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। नवरात्रि के समय यहाँ विशेष पूजा-अर्चना होती है और लाखों भक्त दर्शन के लिए पहुँचते हैं। यह शक्ति पीठ आस्था, चमत्कार और दिव्यता का अनोखा संगम माना जाता है।
Jwala Devi Temple Eternal Flame: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वाला देवी मंदिर एक अद्भुत और रहस्यमयी स्थल है, जहाँ बिना किसी बाहरी स्रोत के अखंड ज्योति जलती रहती है। यह मंदिर शक्ति पीठों में से एक माना जाता है और नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष पूजा-अर्चना होती है। मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि चट्टानों से निकलती हुई प्राकृतिक ज्वालाएँ ही देवी की उपस्थिति का प्रतीक मानी जाती हैं।
इतिहास के अनुसार, मुग़ल सम्राट अकबर ने इन ज्वालाओं को बुझाने का प्रयास किया था, लेकिन वह असफल रहे। यह घटना मंदिर की दिव्यता और शक्ति को दर्शाती है। नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष अनुष्ठान, हवन और भव्य आरतियाँ आयोजित की जाती हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
यदि आप इस नवरात्रि में किसी विशेष स्थान की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो ज्वाला देवी मंदिर आपके लिए एक आदर्श स्थल हो सकता है। यहाँ की दिव्य ज्योति और शांत वातावरण आपके मन को शांति और संतोष प्रदान करेगा।
ज्वाला देवी मंदिर की रहस्यमयी अखंड ज्योति:

ज्वाला देवी मंदिर की विशेषता उसकी अखंड ज्योति है, जो बिना किसी बाहरी स्रोत के जलती रहती है। यह ज्योति चट्टानों से निकलती है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया जा सका है। भक्तों का मानना है कि यह देवी की दिव्य उपस्थिति का प्रतीक है।
नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा और अनुष्ठान:
नवरात्रि के नौ दिनों में यहाँ विशेष पूजा-अर्चना, हवन और भव्य आरतियाँ आयोजित की जाती हैं। इन अनुष्ठानों में देवी की उपासना के साथ-साथ भक्तों की मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी ध्यान रखा जाता है।
मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व:
ज्वाला देवी मंदिर को शक्ति पीठों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। यहाँ की ज्वालाएँ देवी सती के अंगों के गिरने के स्थानों में से एक मानी जाती हैं। इतिहास में इसे लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं, जो मंदिर की धार्मिक महत्ता को दर्शाती हैं।
कैसे पहुँचें ज्वाला देवी मंदिर:
ज्वाला देवी मंदिर कांगड़ा जिले के जवाला मुखी में स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन कांगड़ा है, जो लगभग 30 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा, धर्मशाला और पालमपुर से भी यहाँ के लिए बस और टैक्सी सेवाएँ उपलब्ध हैं।
मंदिर दर्शन के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें:
मंदिर दर्शन के दौरान भक्तों को शांति बनाए रखनी चाहिए और मोबाइल फोन का उपयोग सीमित करना चाहिए। यहाँ की प्राकृतिक ज्वालाओं के पास जाने से पहले सुरक्षा निर्देशों का पालन करना आवश्यक है। नवरात्रि के समय मंदिर में विशेष भीड़ होती है, इसलिए समय का ध्यान रखते हुए यात्रा की योजना बनानी चाहिए।
कथा – देवी सती की अंगों की यात्रा:
ज्वाला देवी मंदिर से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा इस प्रकार है:
प्राचीन समय में, भगवान शिव की पत्नी देवी सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा किए गए अपमान को सहन नहीं किया और आग में खुद को समर्पित कर दिया। इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने सती के शरीर को अपने कंधे पर उठाकर सृष्टि में घूमना शुरू किया। उनका लक्ष्य था कि वह हर जगह अपने दुख और शक्ति का प्रदर्शन करें।
यात्रा के दौरान, देवी सती के शरीर के अलग-अलग अंग पृथ्वी पर गिरते गए और वहां शक्ति के विशेष स्थल बने। कहा जाता है कि ज्वाला देवी मंदिर वह स्थान है जहाँ देवी सती की जीभ गिर गई थी। यही कारण है कि यहाँ आग की ज्वालाएँ बिना किसी दीया या बाती के लगातार जलती रहती हैं। भक्त मानते हैं कि यह ज्वालाएँ देवी की दिव्यता और शक्ति का प्रतीक हैं।
ज्वाला देवी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक रहस्यमयी और अद्भुत अनुभव भी प्रदान करता है। यहाँ की अखंड ज्योति, नवरात्रि के विशेष अनुष्ठान और मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भक्तों को आकर्षित करता है। यदि आप इस नवरात्रि में किसी विशेष स्थान की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो ज्वाला देवी मंदिर आपके लिए एक आदर्श स्थल हो सकता है।
