हरियाणा में रोहतक की बस में दो बहनों के साथ हुई छेड़छाड़ के मामले ने प्रशासन, सोशल मीडिया, अखबार, न्यूज चैनल्स से लेकर देश के घर-घर में हलचल मचा दी है। जैसे ही छेड़छाड़ के विरोध में लड़कियों द्वारा लड़कों की पिटाई का वीडियो न्यूज चैनल्स पर चला। मीडिया से लेकर प्रशासन और आम लोगों ने दिल खोलकर दोनों लड़कियों की तारीफ की और उन्हें मर्दानी का नाम दे डाला। आनन-फानन में महिला संगठनों से लेकर सरकार तक ने लड़कियों की बहादुरी को देखते हुए सम्मानित करने का फरमान भी सुना डाला।न्यूज चैनल्स को चलाने के लिए एक धमाकेदार खबर मिल गई थी इसलिए पूरे दो दिन तक लड़कियों की बहादुरी के इस किस्से को तरह-तरह का ऐंगल देकर प्रसारित किया जाता रहा और दोनों लड़कियों की तारीफ में कसीदे पढ़े जाते रहे।
तमाम नेतागण उन लड़कियों की मिसाल दे-देकर सभी लड़कियों को उन्हीं की तरह बनने की नसीहते देते नजर आए। चारों तरफ बस लड़कियों की बहादुरी के चर्चे सुनाई देने लगे। छेड़छाड़ करने वाले लड़कों को मीडिया व समाज के बहुत से लोगों द्वारा दोषी करार दे दिया गया। प्रशासन द्वारा लड़कों के नौकरी के लिए दी जाने वाली लिखित परीक्षा देने पर भी रोक लगा दी गई। लेकिन जैसे ही उन मर्दानियों का किसी अन्य लड़के को पीटने का एक पुराना वीडियो सामने आया तो लड़कों के घरवाले और घटना वाले दिन बस में सवार एक-दो महिलाएं लड़कियों के साथ छेड़छाड़ होने की बात को सिरे से नकारते हुए सामने आ गए। पूरे दो दिनों की चुह्रश्वपी के बाद लड़कों के पक्ष में उनके परिवार व गांव के लोगों ने मुंह खोलने की हिम्मत दिखाई।
कुछ न्यूज चैनल्स ने तुरंत पलटी मारते हुए मर्दानी लड़कियों के इस कृत्य को बनावटी और गलत करार दिया। अब न्यूज चैनल्स पर उन लड़कियों का पुराना वीडियो दिखा-दिखाकर जनता से पूछा जाने लगा कि आखिर सच्चाई क्या है? वहीं खबर चलते ही प्रशासन और महिला संगठनों ने लड़कियों को दिए जाने वाले सम्मान और इनाम पर सच्चाई सामने आने तक रोक लगा दी और पुलिस को मामले की जांच करने के निर्देश दे दिए गए। आखिर उन लड़कियों को इतनी जल्दी हीरो बनाने और लड़कों को जीरो बनाने में अहम भूमिका किस की रही और फिर बाद में लड़कियों को झूठा व उन लड़कों को मासूम साबित करने के काम को तुंरत किसने अंजाम दिया। जी हां, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाली मीडिया ने। बड़े अफसोस की बात है कि इतनी जिम्मेदारी भरा ओहदा मिलने के बावजूद नम्बर वन रहने की होड़ में न्यूज चैनल्स बिना सोचे-समझे कोई भी चटकारेदार खबर मिलने पर तुरंत चला देते हैं। वो इस बात की भी परवाह नहीं करते हैं कि किसी के पक्ष या विपक्ष में खबर चलाने पर असर क्या होगा?
एक चैनल पर कोई भी खबर चलते ही सभी चैनल्स ब्रेकिंग न्यूज का टैग और अलग-अलग ऐंगल देकर खबर को प्रसारित करते रहते हैं। खबर कितनी सच्ची है इस बात की पड़ताल करने की किसी चैनल को परवाह नहीं रहती है। मीडिया रोजी-रोटी बचाने या टीआरपी की रेस में आगे रहने जैसे लाख तर्क क्यों ना दे लेकिन सच्चाई यही है कि बिना परखे खबर को चला देने पर बहुत से लोगों की इज्जत दांव पर लग जाती है। इसलिए खासतौर पर 24&7 न्यूज परोसने वाले चैनल्स की जिम्मेदारी बनती है कि जो पद उसे मिला है उसकी गरिमा को ध्यान में रखते हुए खबरों को सोच-समझकर प्रसारित किया जाए। ताकि खबरों की दौड़ में आगे बने रहने के चक्कर में किसी की इज्जत सरेआम कुचली ना जा सके। यह तो बात हुई मीडिया के गैरजिम्मेदाराना रवैये की। अब बात करते हैं घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों के रुख की। जी उन्हीं गूंगे, बहरे, लूले-लंगड़े और अंधे बने बैठे लोगों की जो बस में बैठकर सारा तमाशा देख रहे थे।
आखिर क्यों ये लोग बस में बने पिटाई वाले वीडियो में दिखाई नहीं दिए बीच-बचाव या किसी को रोकते हुए। उस वीडियों को देखकर तो यही लग रहा था कि जैसे सभी उन लड़कों की पिटाई का समर्थन कर रहे थे। गलत किसी के साथ भी हो रहा था लेकिन क्या बस में बैठे लोगों का कोई कर्तव्य नहीं बनता था कि वो उठकर मामले को शांत करे। लेकिन ऐसा करने की बजाय सभी मूकदर्शक बने रहे। ऐसा तो था नहीं उन लड़कियों के पास हथियार थे, जो डर के कारण कोई भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था और ना ही कोई फिल्म बन रही थी जो फ्रेम में आने के लिए किसी निर्देशक ने मना किया था।
छेड़छाड़ हुई या नहीं यह बात बस में बैठे लोगों से बेहतर कोई नहीं जानता। वैसे यह कोई ऐसा पहला मामला नहीं है कि कहीं किसी के साथ चौड़े में कुछ गलत हो रहा हो और कोई भी उस गलत को रोकने के लिए आगे नहीं आया। ऐसा होना तो आम बात हो गई है क्योंकि कंक्रीट के जंगल में क्या मीडिया, क्या प्रशासन, क्या आम जन, सभी के सभी इतने स्वार्थी हो चुके हैं कि कोई अपने फायदे से ज्यादा ना देखना और ना सुनना और ना ही बोलना चाहता है। कोई तमाशा दिखाने में व्यस्त है तो कोई तमाशा देखने में व्यस्त है, सही और गलत की सुध लेने में किसी की दिलचस्पी ही नहीं है।
