बच्चों के टिफिन पर आखिरी बार नजर डालकर सुरेखा ने टिफिन उनके बेग मे रखे। पानी की बॉटल भर भी भर दी।अब वे बाहर तक आकर बच्चो के स्कूल बस का इंतजार करने लगी। बहुत छोटा और प्यारा परिवार था। दिलों जान से चाहने वाले पति जो एक ऑफिस मे अफसर थे। दो प्यारे बच्चे बिट्टू और मीनल। 

 

 
स्कूल बस आ गयी। मेड ने उसे अभिवादन किया ।बच्चे बैठ गये।टा…टा कह कर वह भीतर बढने लगी कि अब पति का टिफिन तैयार करेगी।वह खुश थी। तभी गेट पर दो बच्चे, एक लडका और एक लडकी मैले कुचेले कपडो मे,हाथ जोड कर कुछ खाने को मांग रहे थे।

 

सुरेखा ने जल्दी से कहा,तुम लोग…।।फिर आ गये।देखो आज शुक्रवार है।और हम भिक्षा सोमवार को ही देते है। दोनो मे से बडी लडकी ने करूणा भरे स्वर मे कहा-“पर दीदी,भूख तो रोज ही लगती है न।”
 
       

 

उसके कदम ठिठक गये।छोटी सी बात थी,पर भीतर तक झझकोर गयी।तेज चाल से किचन मे गयी,अपने लिये रखी दो रोटियों पर अचार की फांक रखी।सामने ही रखे कबाट से पारले जी का पैकेट लिया।और बच्चों को दिया।दोनो ने आभार मुद्रा मे हाथ जोडे और आगे बढ गयी।सुरेखा दरवाजे पर खडी काफी देर तक उन्हें जाते देखती रही।।