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राजेन्द्र सिंह ने साईकिल उठाई और पचास मील की यात्र करके अपने मित्र के पास पहुँच गए और उनसे कहा- “देश के काम के लिए मुझे पाँच सौ रुपए की आवश्यकता आ पड़ी है, इसलिए मैं आपके पास आया हूँ।”

चौधरी साहब ने कहा-

“आप पचास मील की यात्र साइकिल से करके आए हैं। आप बहुत थके हुए हैं और रात भी हो गई है। मैं आपको रात को नहीं जाने दूँगा। मैं आपका काम कर दूँगा। आप यहाँ से सुबह जाइए।”

राजेन्द्र सिंह अपने मित्र के साथ रात रह गए। सुबह हुईं। उस समय चौधरी साहब के पास नकद रुपए नहीं थे। उन्होंने सोने के दो कड़े दिए और कहा कि इन्हें बेचकर काम चला लेना। राजेन्द्र सिंह वे कड़े लेकर मेरठ पहुँच गए। वे कड़े छह सौ रुपए में बिके। सारा पैसा राजेन्द्र सिंह ने दिल्ली जाकर अपने नेता चन्द्रशेखर आजाद को दे दिया और कहा-

“यदि आप अनुमति दें तो मै कांग्रेस की और से कुछ दिन जेल-जीवन का अनुभव कर आऊँ। इस प्रकार मेरठ-क्षेत्र के काँग्रेसी-सेठियों से मेरा मेल जोल बढ़ जायगा और फिर उस क्षेत्र से काफी पैसा मिल सकेगा।”

आजाद का कथन था-

“इसमें हम लोगों को क्या आपत्ति हो सकती है। पार्टी के लिए यदि तुम इतना त्याग कर सकते हो तो अवश्य करो।”

आजाद की अनुमति पाकर राजेन्द्र सिंह ने सत्याग्रह का कार्यक्रम अपने हाथ में ले लिया और एक महीने के कारावास का अनुभव भी प्राप्त कर लिया। हापुड़ के सेठ लोगों से उन्हें बहुत अच्छा आर्थिक सहयोग मिला। क्रान्तिकारी- दल का भी बहुत अच्छा काम चल निकला।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)