Subhaagi by munshi premchand
Subhaagi by munshi premchand

माता के देहान्त के बाद सुभागी के जीवन का केवल एक लक्ष्य रह गया- सज्जनसिंह के रुपये चुकाना। 300 रुपये पिता के किया-कर्म में लगे थे। लगभग 200 रुपये माता के काम में लगे। 500 रुपये का ऋण था और उसकी जान! मगर वह हिम्मत न हारती थी। तीन साल तक सुभागी ने रात-को-रात और दिन-को-दिन न समझा। उसकी कार्य-शक्ति और पौरुष देखकर लोग दाँतों तले उँगली दबाते थे। दिन-भर खेती-बारी का काम करने के बाद वह रात को चार-चार पसेरी आटा पीस डालती। तीसवें दिन 15 रुपये लेकर यह सज्जन सिंह के पास पहुँच जाती। इनमें कभी नागा न पड़ता। यह मानो प्रकृति का अटल नियम था।

अब चारों ओर से उसकी सगाई के पैगाम उगने लगे। सभी उसके लिए मुँह फैलाये हुए थे। जिसके घर सुभागी जायेगी, उसके भाग्य फिर जायेंगे। सुभागी यही जवाब देती- ‘अभी वह दिन नहीं आया।’ जिस दिन सुभागी ने आखिरी किश्त चुकायी, उस दिन उसकी खुशी का ठिकाना न था। आज उसके जीवन का कठोर व्रत पूरा हो गया।

वह चलने लगी तो सज्जनसिंह ने कहा- ‘बेटी, तुझसे मेरी एक प्रार्थना है, कहो कहूं, या न कहूँ मगर वचन दो कि मानोगी।’

सुभागी ने कृतज्ञ भाव से देखकर कहा- ‘दादा, आपकी बात न मानूँगी तो किसकी बात मानूँगी? मेरा रोयाँ-रोयाँ आपका गुलाम है।’

सज्जनसिंह- ‘अगर तुम्हारे मन में यह भाव है, तो मैं न कहूँगा। मैंने अब तक तुमसे इसलिए नहीं कहा कि तुम अपने को देनदार समझ रही थीं। अब रुपये चुक गये। मेरा तुम्हारे ऊपर कोई एहसान नहीं हैं। रत्ती-भर भी नहीं। बोलो कहूँ?’

सुभागी- ‘आपकी जो आज्ञा हो।’

सज्जन सिंह- ‘देखो इनकार न करना, नहीं, मैं फिर तुम्हें अपना मुँह न दिखाऊंगा।’

सुभागी- ‘क्या आज्ञा है?’

सज्जन सिंह– ‘मेरी इच्छा है कि तुम मेरी बहू बनकर मेरे घर को पवित्र करो। मैं जात-पाँत का कायल हूँ, मगर तुमने मेरे सारे बंधन तोड़ दिए। मेरा लड़का तुम्हारे नाम का पुजारी है। तुमने उसे बारहा देखा। बोलो, मंजूर करती हो?’

सुभागी- ‘दादा, इतना सम्मान पाकर पागल हो जाऊंगी।’

सज्जन सिंह- ‘तुम्हारा सम्मान भगवान् कर रहे हैं! तुम साक्षात् भगवती का अवतार हो।’

सुभागी- ‘मैं तो आपको अपना पिता समझती हूँ। आप जो कुछ करेंगे, मेरे भले के लिए करेंगे! आपके हुक्म को कैसे इनकार कर सकती हूँ।’

सज्जन सिंह ने उसके माथे पर हाथ रखकर कहा- ‘बेटी, तुम्हारा सुहाग अमर हो। तूने मेरी बात रख ली। मुझ-सा भाग्यशाली संसार में और कौन होगा।