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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

परिवर्तन दुनिया का नियम है। हर चीज का परिवर्तन होता है और वो भी एक सही समय के आने पर। इस बात को अब मानना पड़ेगा हम सब को।

देखना गुड्ड, फिर से सब कुछ ठीक हो जाएगा हमारे बीच और फिर से हम हंसेंगे, खेलेंगे और इस तरह बंद कमरे में नहीं रहेंगे। मुक्त हो के सब कुछ पहले जैसा ही करेंगे।

डेजी दीदी समझा रही थी ये बात छोटे भाई गुड्ड को।

कभी नहीं सुने थे ये कोरोना की बीमारी के बारे में हम। अचानक आ गई, कितने लोगों की जान ले गई और कितने लोग दुख दर्द झेले, इसका हिसाब नहीं है। शहर में रहने वाले लोग जिस गांव को भूल चुके थे। वह गांव आज उनके लिए स्वर्ग बन गया है। फिर से परिवार खिल उठा है मां-बाप भाई-बहन और उन सब के बच्चों को ले कर।

हर चीज के दो पहलू होते है- भला और बुरा। ऐसा भी नहीं कि कोई भी चीज या बातें बिलकुल ही बुरे होते हैं, उसमें भी कुछ-ना-कुछ भलाई छुपी होती है, बस हमारे देखने के नजरिये के ऊपर निर्भर करता है।

गुड्ड पढ़ाई में बहुत अच्छा है और रोज स्कूल जाना बहुत पसंद है उसे, पर कोरोना की वजह से स्कूल बंद है। घर में बेचारा कितना पढ़ेगा, खेलने के लिए बाहर भी जा नहीं सकता। सभी दोस्त अपने-अपने घर में जैसे बंदी हैं। ऐसे माहौल में गुड्डू विचलित हो गया है। हर साल की तरह गर्मी की छुट्टियों में नाना के घर जा नहीं पाया इसलिए वो दुखी भी है।

“अरे नये बर्तन में आज खाना खाएंगे”, खशी से गड बोलने लगा जब टेबल में रखे हुए कांसे के बर्तन में मम्मी खाना परोस रही थीं, वही देख के। मम्मी मुस्कुराकर बोली-

“हां ये सब तो तेरे नाना-नानी ने ही दिए थे, अपने गांव के हैं ये।

कांसा और पीतल के बर्तन के लिए सिर्फ ओडिशा राज्य में नहीं, पूरे देश में भी ‘भुवन’ गांव प्रसिद्ध है, ज्यादातर लोग अपने घर में ही बर्तन बनाते हैं। जब तुम लोग नानी के घर जाते हो, नाना के साथ घूम-घूम के तो देखते रहते हो ये सब कि कैसे बनते हैं ये सब बर्तन। तुम्हें याद नहीं है क्या गुड?

डेजी उसे बोलने लगी-

नानी की बात याद करो गुड, स्टील के बर्तन नानी पसंद नहीं करती हैं, हमेशा वो कांसा या पीतल के बर्तन में खाना खाने के लिए बोलती है। उनके जमाने में मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने से लेकर खाने तक का हर काम होता था। जिसकी वजह से इंसान के शरीर में जो पोषक तत्त्व या विटामिन और खनिज तत्त्व की मात्रा की कमी रहती थी, वो सब पूरी हो जाती थी। उस समय लोग ज्यादा बीमार नहीं पड़ते थे, उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति भी ज्यादा थी जिसकी वजह से छोटी-छोटी बात पर डॉक्टर के पास जाना नहीं पड़ता था।

फिर दुनिया तेजी से बदल गई। नित-नए आविष्कार और आधुनिक उपकरणों से दूसरे देश के साथ कदम मिलाकर चलने की वजह से हम अपने संस्कार, संस्कृति और सभ्यता भी भूल गए थे। पर अब फिर से सब सही होने को जा रहा है। लोग पुरानी बातों को या बड़े बुजुर्गों को याद करके अपने शरीर की सलामती के लिए वह सब बदलाव लाना चाह रहे हैं।

यही तो परिवर्तन है। इसलिए बोलती हूं, तुम अपना धैर्य रखो और सही समय का इंतजार करो। जरूर एक न एक दिन अच्छा दिन आएगा।

जैसे सब समझ चुका था गुड, मुस्कराके वो सिर्फ सिर हिलाया और खाना खाने लगा। उसके चेहरे पे एक नई खुशी और आशा की किरण जैसे झलक रही थी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’