binnu kyon pareshaan hai moral story
binnu kyon pareshaan hai moral story

बिन्नू स्कूल से निकला, तो थोड़ा परेशान था। उसे लगा, उसकी आँखें जल रही हैं, माथा तप रहा है। कंधे पर बस्ता लटकाए वह जैसे अपने आपमें ही बेसुध, बड़बड़ाता जा रहा था, ”सेकेंड, सेकेंड, सेकेंड…उफ फिर सेकेंड! मेरी जिंदगी में सेकेंड तो ऐसे दर्ज हो गया है, जैसे गले में पड़ा हुआ भारी पत्थर! फर्स्ट तो मैं कभी आ ही नहीं सकता क्लास में, फर्स्ट आएगा हमेशा संजू। जाने क्या जादू कर दिया है इसने टीचर पर कि हमेशा यही आता है फर्स्ट, यही…!”

उसका मन हो रहा था, यहीं संजू मिल जाए तो घूँसे मार-मारकर बदला ले लूँ! पढ़ाई में नहीं, तो कम से कम घूँसबाजी में तो मैं फर्स्ट आ ही सकता हूँ।

पर अगले ही पल बिन्नू शर्म से पानी-पानी हो गया। वह किसके बारे में सोच रहा है यह। संजू के बारे में? संजू जो कि उसका प्यारा दोस्त है और हर मौके पर उसकी मदद के लिए आगे रहता है। वही संजू! लेकिन जाने क्यों, आज संजू के प्रति अपने क्रोध को वह मन से नहीं निकाल पा रहा था। हालाँकि संजू से ज्यादा गुस्सा उसे अपने आप पर था। वह क्यों नहीं संजू की तरह मेहनत कर पाता? संजू की तरह ध्यान से क्लास में अध्यापक की बातें क्यों नहीं सुनता और उन्हें डायरी में नोट क्यों नहीं करता?

जो भी हो, बिन्नू और संजू की दोस्ती में आज पहली बार दरार पड़ गई थी। संजू ने तो कुछ नहीं कहा था, बस, बिन्नू के अंदर ही अंदर भूचाल पैदा हो गया था। इसलिए कि क्लास टेस्ट में लगातार तीसरी बार संजू फर्स्ट आया था और बिन्नू सेकेंड। इस बार बिन्नू ने कुछ ज्यादा पढ़ाई भी की थी। वह संजू को पछाड़ना चाहता था, लेकिन…

बिन्नू और संजू दोनों आठवीं के छात्र थे। दोनों में इतनी पक्की दोस्ती थी कि दोनों अकसर साथ ही रहते, साथ ही पढ़ते, साथ ही खेलते भी थे। अध्यापक अकसर दूसरे छात्रों से कहा करते थे, ”देखो, बिन्नू और संजू की जोड़ी को! कितने अच्छे दोस्त हैं ये और कितने होशियार भी। तुम इनसे कुछ सीख सकते हो।”

दूसरे छात्र यह सुनकर प्रशंसाभरी नजरों से संजू और बिन्नू की ओर देखते। वे भी वैसा ही बनना चाहते थे। लेकिन बिन्नू…! न जाने क्या हुआ था उसे? और वह भला क्या बनना चाहता था!

”क्या संजू की जगह मैं फर्स्ट नहीं आ सकता?” यह सवाल एक कीड़े की तरह बिन्नू को भीतर ही भीतर काटने लगा और उसके भीतर बहुत गहरी उधेड़बुन शुरू हो गई। पर न जाने क्यों, उसका आत्मविश्वास लड़खड़ा रहा था। उसे लग रहा था, संजू इतना मेहनती है कि वह पढ़ाई करके उसे पछाड़ नहीं सकता। तो क्या कोई और तरकीब नहीं हो सकती, कोई और?

अचानक बिन्नू का ध्यान गोलटा की ओर गया। बिन्नू का एक दोस्त था गोलटा। खूब गप्पी, चालाक, लेकिन पढ़ाई में एकदम फिसड्डी। शरीर से खासा तंदरुस्त, गोल-मटोल। लिहाजा सब उसे गोलटा कहते। पढ़ाई-लिखाई की उसे कोई परवाह भी नहीं थी। बस, इम्तिहान के समय तिकड़म भिड़ाकर किसी तरह नकल कर लेता था। फिर भी वह पास तो हो ही जाता था। बिन्नू ने सोचा कि वह भी इस बार नकल का सहारा लेगा। पढ़ाई से संजू को नहीं पछाड़ा जा सकता, तो नकल से तो पछाड़ा ही जा सकता है।

वह गोलटा के पास गया और उससे नकल करने की तरकीबें पूछने लगा। कैसे जूते के भीतर मोजे में कागज छिपाकर ले जाया जा सकता है? कैसे कागज पर कोहनी रखकर, अध्यापक को चकमा देकर, पूरा सवाल नकल किया जा सकता है। सब बातें उसने गोलटा से जान लीं। अब वह संजू का साथ छोड़कर गोलटा के साथ ही ज्यादा रहता। दिन भर पढ़ाई से भी छुट्टी मिली। दिन भर गपशप, दिन भर लंतरानियाँ, दिन भर तिकड़में। बिन्नू को लगा, सफलता का रास्ता तो इतना आसान है, उसे पहले यह सब क्यों नहीं सूझा?

उधर संजू यह सब महसूस कर रहा था कि बिन्नू कुछ बदला-बदला है और उससे कटने लगा है। पहले तो उसने नजरअंदाज किया, लेकिन फिर बात बढ़ती नजर आई। एक दिन उसने बिन्नू को अलग ले जाकर कहा, ”क्यों अपना वक्त बरबाद कर रहे हो? गोलटा को तो कुछ पढ़ना नहीं है। किसी न किसी तरह जोड़-तोड़ कर ही लेगा। मगर तुम…? तुम्हें तो इन दिनों मेहनत से पढ़ना चाहिए। गया वक्त लौटकर नहीं आता।”

सुनकर बिन्नू ने कंधे उचकाते हुए, लापरवाही से कहा, ”भई, ऊब गए अपन तो इस रोज-रोज की पढ़ाई से। यह तुम्हीं को मुबारक हो। अभी तो थोड़ा सैर-सपाटे का मजा ले लें। इम्तिहान आएँगे, तो देखा जाएगा। और नकल तो, तुम जानते ही हो, अपन कभी करते नहीं।”

लेकिन संजू से झूठ-मूठ मना करने के बावजूद बिन्नू ने मन में पक्की तरह सोच लिया था कि चाहे कुछ हो, वह इस बार नकल करेगा और पूरी क्लास में फर्स्ट आकर दिखाएगा।

आखिर सालाना इम्तिहान में सिर्फ एक सप्ताह बाकी रह गया। संजू तो रात-दिन पढ़ने में जुटा था, पर बिन्नू का मन बार-बार उचट जाता। वह हमेशा यही सोचता कि कैसे कम से कम मेहनत करके नकल के जरिए ज्यादा से ज्यादा नंबर ले आए। नकल का उसका पहला मौका था। इसलिए उसके दिल में अकसर धुकधुकी होने लगती। कभी-कभी मारे घबराहट के वह पसीना-पसीना हो जाता। लेकिन गोलटा की बताई तरकीबों पर उसे पूरा भरोसा था।

एक-एक करके पूरा सप्ताह गुजर गया और इम्तिहान का दिन भी आ गया। पहला परचा गणित का था। इसी में बिन्नू के नंबर कुछ खराब आते थे। इसलिए शुरू-शुरू में उसे काफी डर लगा। फिर उसने क्लास नोट्स की कॉपी को मोड़कर पैंट में छिपा लिया और चौकन्ना होकर परीक्षा भवन में अपनी डेस्क पर जा पहुँचा।

शुरू में बिन्नू ने एकाध सवाल खुद करना चाहा, पर घबराहट के मारे आसान सा सवाल भी उससे हल नहीं हो रहा था। आखिर उसने कॉपी निकाल ली और सावधानी से उसे छिपाकर नकल करने लगा। सभी अध्यापक उसे अच्छा और होशियार विद्यार्थी समझते थे। इसलिए किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। फिर भी नकल करते हुए पकड़े जाने का डर तो था ही। इस घबराहट में बिन्नू बड़ी मुश्किल से पूरा पेपर हल कर पाया।

परीक्षा भवन से लौटते समय बिन्नू बड़ा खुश था। मन ही मन वह कह रहा था, ”गणित में तो सौ में से सौ नंबर पक्के। बाकी विषयों में भी थोड़ा-बहुत नकल का सहारा मिल जाए, तो बेड़ा पार! जैसे भी हो, इस बार संजू को पछाडऩा ही है।”

बिन्नू यह सोचता हुआ जा रहा था कि रास्ते में उसे संजू दिखाई पड़ा। उसने चिल्लाकर कहा, ”अरे संजू, रुको। तुम्हारा पेपर कैसा हुआ? कुछ बताओ तो यार!”

उत्साह के मारे बिन्नू हवा में उड़ रहा था। उसे लगा, संजू पर अपना सिक्का जमाने का यही मौका है। लेकिन संजू के चेहरे पर भी पूरा आत्मविश्वास था। बोला, ”लगता तो है, मेरा पूरा पेपर सही है।”

फिर दोनों ने सवालों के उत्तर मिलाए। आधे से ज्यादा सवालों के उत्तर उन दोनों के अलग-अलग थे। यह कैसे हो सकता है, जबकि दोनों ही यह कह रहे थे कि उनके पेपर पूरे सही हुए हैं?

बिन्नू ने अब आव देखा न ताव, अपनी जेब से नकल के कागज निकालकर शान से उन्हें लहराया, ”यह लो यार, इनसे मिला के देखो। अपन इस मामले में गलती नहीं कर सकते।”

पहले तो संजू कुछ भौचक्का सा रह गया। वाकई बिन्नू के सभी उत्तर क्लास नोट्स वाली कॉपी से मिलते थे। फिर उसकी समझ में आ गया कि माजरा क्या है! असल में कॉपी में जो सवाल थे, पेपर में दिए गए सवालों की संख्याएँ उनसे थोड़ी भिन्न थीं। कम से कम पेपर के आधे सवालों में गणित के मैथ्यू सर ने थोड़ा उलट-फेर कर दिया था। जबकि ऊपर से देखने पर ये सवाल बिल्कुल वैसे ही लगते थे। बिन्नू नकल की हड़बड़ी में यह बात तो देख ही नहीं पाया था।

”तो बिन्नू, तुमने नकल…नकल का सहारा लिया है न?” संजू की आवाज में गहरा दुख था।

बिन्नू क्या कहे! उसका दिल तो बैठता जा रहा था। सिर चकराने लगा था। वह धम्म से अपनी जगह बैठ गया। बोला, ”ओह संजू, मैं बर्बाद…बिल्कुल बर्बाद! मैं तो भूल ही गया था कि…”

संजू लगातार ढाढ़स बँधा रहा था, पर बिन्नू पर कोई असर नहीं पड़ा। उसकी घबराहट बढ़ती ही जा रही थी। बोला, ”दोस्त, अब बाकी पेपर नहीं दूँगा। मुझमें हिम्मत नहीं है, तैयारी भी नहीं है।”

संजू ने दिलासा दिया, ”नहीं, तुम खूब तैयारी करके बाकी पेपर दो। नकल का चक्कर छोड़ो। तुम्हारे अच्छे नंबर आएँगे, मुझे विश्वास है।”

बिन्नू चौंका, ”क्या तुम्हें विश्वास है संजू कि मैं पास हो जाऊँगा?” उसकी आँखें फटी-फटी सी थीं।

”हाँ, मुझे विश्वास है। पास तो होओगे ही, तुम्हारे नंबर भी अच्छे आएँगे।” संजू ने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा।

”पर मेरा विश्वास तो टूट रहा है संजू!” बिन्नू घबराते हुए बोला।

”तो कम से कम मेरे विश्वास पर तो विश्वास कर सकते हो न! देख लेना, तुम्हारे बहुत अच्छे नंबर आएँगे।” संजू ने मुसकराते हुए बिन्नू की पीठ थपथपाई।

और बिन्नू को लगा, उसके चारों ओर कसा हुआ निराशा का घेरा टूट रहा है।

उसने मेहनत की, तो बाकी पर्चें खूब अच्छे हो गए। इस बार भी वह पूरी क्लास में सेकेंड आया। पर इतना खुश था, इतना…जैसे हवा में उड़ रहा हो।

”अगली बार मैं जान-बूझकर अपने पर्चे खराब कर लूँगा। फिर तुम जरूर फर्स्ट आओगे!” संजू कई बार मजाक में उसे छेड़ता और दोनों दोस्त खूब हँसते—खूब!