hargaah musamma
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

मुन्सिफ के दर पर बहुत भीड़ थी। कारिंदे अंदर-बाहर आ-जा रहे थे। मुद्दई और मुद्दा अलैह एक-दूसरे को नफरत भरी निगाहों से देख रहे थे। एक के बाद एक आवाज लग रही थी। एक जोर की आवाज लगी- “हरगाह मुसम्मा हाजिर हो…!”

हरगाह मुसम्मा बोला, “यह क्या बात है कि हर जगह मेरा ही नाम लिया जाता है और कोई अदालती कार्रवाई मेरे बिना परी नहीं होती।”

फिर आवाज लगी- “हरगाह मुसम्मा हाजिर हों…!”

हरगाह मुसम्मा हाजिर हुआ। उसके साथ दो गवाह थे। मुन्सिफ ने पूछा-“तुम्हें मालूम है कि नोटिस में क्या लिखा था?”

हरगाह मुसम्मा बोला, “पता नहीं, मैं पढ़ा-लिखा आदमी नहीं हूँ।”

मुन्सिफ ने कहा- “नोटिस में लिखा था कि यह नोटिस मेरे दस्तखत से जारी किया जाता है। तुम्हारे ऊपर नालिश की गई है कि तुमने खिलाफे-कानून काम किया है, इसलिए तुम्हें यह हुक्म दिया जाता है कि तुम बजाते खुद या कोई ऐसा आदमी जो मामले से वाकिफ हो और जवाबदेही दावे की, कर सके, हाजिर हो। अगर ऐसा न हुआ तो मुकद्दमा गैर हाजिरी में मसमूअ (सुना जाएगा) और फैसल (निर्णीत) होगा। आज बतारीख यकुम जुलाई को मेरे हुक्म, मोहर व दस्तखत से जारी किया गया।”

हरगाह मुसम्मा बोला, “मुझे हर जगह हाजिर होना पड़ता है। अभी इस मुन्सिफ के पास तो कभी उस मुन्सिफ के पास। मैं तो वकीलों की फीस देते-देते तंग आ गया हूँ। यही आवाज हर तरफ से आती है कि हरगाह मुसम्मा हाजिर हो।”

हरगाह मुसम्मा, तुम बातें बहुत बनाते हो। तुमने अदालतों में जाते-जाते बहुत गुर सीख लिये हैं। तुम्हारे साथ गवाह भी होते हैं। फिर भी तुम कहते हो कि हम पढ़े-लिखे नहीं हैं? तुम्हें अदालती कार्रवाई के बारे में इतनी मालूमात कैसे है?”

हरगाह मुसम्मा बोला, “हुजूर, मेरे बाप भी हरगाह मुसम्मा थे। उनके बाप और उनके बाप के बाप सब हरगाह मुसम्मा थे। मेरी आने वाली नस्लें भी हरगाह मुसम्मा होंगी। जैसे मुन्सिफ की आनेवाली नस्लें मुन्सिफ, वकीलों की वकील और डॉक्टरों की डॉक्टर होती हैं। जुर्म का धंधा करनेवालों के घर में जुर्म ही पैदा होता है। नेता के घर में नेता और अभिनेता के घर में अभिनेता जन्म लेता है। यही हमारी रीत है, जो सदा से चली आ रही है।

“मैं हरगाह मुसम्मा हूँ, हरगाह मुसम्मा ही रहूँगा। वकीलों का अपना परिवार है, उन्होंने कंपनियाँ बना रखी हैं- वी. पी. खड़ेचू एण्ड कम्पनी, एडवोकेट कालामल लायर्स एण्ड ब्रदर्स। इसी तरह डॉक्टरों ने भी अपनी दुकानें चला रखी हैं। परिवार के परिवार डॉक्टर हैं, वह भी एक ही बीमारी के।”

“हरगाह मुसम्मा, बातें बनाना छोड़ो और जवाबदेही दावे की करो।” मुन्सिफ ने हथौड़ा पटका।

मुखालिफ वकील बोला, “हुजूर, मामला यह है कि पगाह जान की बहन का नाम है, बीबी जानम और उसके बाप मघा जान और बाबा लगाभगा जान के नाम से जाने जाते हैं। हरगाह मुसम्मा ने एक दिन बीबी जानम को, जो दरवाजे की ओट से बाहर गली में झाँक रही थी, ताककर ढेला मारा जो बीबी जानम को न लगकर उसके भाई पगाह जान को लगा, जो सीढ़ी पर चढ़े हुए पुताई कर रहे थे। वह ढेले की चोट न झेल पाने के कारण सीढ़ी से नीचे गिर गये। नीचे उनके बाबा लगाभगा जान लेटे हुए थे। सीढ़ी उनके ऊपर गिर पड़ी और लगाभगा जान का दाँत, जो पहले ही हिल रहा था, जड़ से निकल गया। चीख-पुकार सुनकर बीबी जानम के बाप मघा जान घर के बाहर निकले जब तक हरगाह मुसम्मा फरार हो चुका था। उन्होंने उसे भागते हुए देखा और नालिश कर दी।”

हरगाह मुसम्मा बोला, “यह सब झूठ है, मिथ्या है, बनावटी है, असत्य है।”

मुखालिफ वकील ने कहा, “हुजूर, गवाह पेश करने की इजाजत दी जाए।”

हुक्म हुआ- “गवाह पेश किया जाए।”

आवाज लगी- “गवाह नम्बर एक, घसीटा पुत्र घासी, हाजिर हो….”

घसीटा पुत्र घासी हाजिर हुआ। वह फटा हुआ पाजामा पहने था और टाँगें घसीट-घसीटकर चल रहा था। उससे कहा गया, ‘शपथ लो कि जो कुछ कहोगे सच कहोगे और सच के अलावा कुछ नहीं कहोगे।’

घसीटा पुत्र घासी ने उस पुस्तक की कसम खायी जिसके बारे में उसने सुना था कि यह उसके धर्म की पवित्र पुस्तक है। वह पढ़ा-लिखा नहीं था। न तो उसने उस पुस्तक को कभी पढ़ा था, न छुआ था।

“हाँ, तो तुमने क्या देखा?”

“मैंने देखा हुजूर कि यह हरगाह मुसम्मा दरवाजे पर खड़ा था और बीबी जानम को बड़ी-बड़ी आँखें निकालकर घूर रहा था। फिर हुजूर कच्ची मिट्टी का ढेला इसने उधर को फेंका, इतना तो मैंने देखा।”

“किधर को फेंका?”

“उधर को, बीबी जानम के दरवाजे की तरफ।”

“फिर क्या हुआ, वह ढेला किसके लगा?”

“वह हमने नहीं देखा। अपनी नजर कुछ कमजोर है, लेकिन ऐसी भी कमजोर नहीं। सब काम कर लेते हैं। बाजार भी हो आते हैं। अब हम कोई पढ़े-लिखे तो हैं नहीं जो चश्मा लगाएँ, हाँ हमने ढेला लगने की आवाज जरूर सुनी।”

“फिर क्या हुआ? साफ-साफ बयान करो।”

“होना क्या था हुजूर, ढेला कच्ची मिट्टी का था। दरवाजे पर लगते ही फूट गया, ‘धब’ की आवाज हुई और मिट्टी की धूल दूर तक उड़ी।”

“क्या ढेला पगाह जान के लगा था?”

“यह हमने नहीं देखा।”

वकील बोला, “हुजूर, दूसरा गवाह पेश करने की इजाजत दी जाए।”

“नहीं, अब इजाजत नहीं मिलेगी। अदालत का बहुत वक्त जाया हो चुका है। केस की सुनवाई मुल्तवी (स्थगित) की जाती है, अब यह केस फलाँ तारीख को मसमूअ होगा।”

निश्चित तारीख पर फिर हरगाह मुसम्मा हाजिर हुआ। दूसरा गवाह पेश करने की इजाजत दी गई। आवाज लगी, “नत्थू पुत्र बुद्ध हाजिर हों!”

नत्थू हाजिर हुआ। उसकी नाक में बड़ी-सी नथ पड़ी थी। मुन्सिफ को टोकना पड़ा, “तुम्हारी नाक में इतनी बड़ी नथ? क्या तुम तीसरे जेंडर से ताल्लुक रखते हो?”

“ना… ना…” उसने जोर से हाथ हिलाकर कहा, “हमारा पेशा नाचना-गाना है। रात को जब साड़ी पहनकर मेक-अप करते हैं तो नथ काम आ जाती है। अब दिन में क्या उतारें। यही तो हमारी रोजी-रोटी है।”

अदालत में हँसी का ठहाका लगा। हरगाह मुसम्मा भी हँसने लगा।

“हुक्म, हुक्म! सम्मान का ध्यान रहे।” हाकिम ने हथौड़ा पटका।

“हाँ तो नत्थू, तुम्हें कसम खानी होगी कि जो कुछ कहोगे, सच कहोगे और सच के सिवा….”

नत्थू बोला, “हम किसी को नहीं जानते और न किसी को मानते हैं। हमारा कोई धर्म नहीं और न कोई पवित्र पुस्तक है। हम किसकी कसम खाएँ?”

“क्या तुम दुनिया बनाने वाले को भी नहीं मानते? उसे किसी नाम से तो पुकारते होगे?”

“हम कोई नाम नहीं जानते। जन्म हो गया, पता नहीं माँ-बाप कौन थे। होश आया तो नाक में यह नथ थी और बूढ़े खुर्राट साथियों की टोली। ढोलक की थाप और ठुमके। गला फाड़-फाड़कर गाना और शरीर को थिरकाना। पैर दुख-दुख जाते थे। उल्टे-सीधे बोल सिखाये जाते, गन्दे शब्द गवाये जाते, नहीं तो मार पड़ती। यही रोटी का जरिया था। हमें किसी ने नहीं बताया कि मालिक कौन है? पाप क्या है, पुण्य क्या है? हम तो बस यह जानते हैं कि पेट की आग में जलकर सब भस्म हो जाता है।”

“लेकिन तुम्हें किसी की तो कसम खानी होगी क्योंकि यह बरसों पुराना दस्तूर है।”

“क्या कसम खाकर और शपथ लेकर सब सच बोलते हैं और ईमानदारी से काम करते हैं?” नत्थू ने पूछा।

चारों ओर एक सन्नाटा छा गया।

“अगर कसम जरूरी है…” नत्थू बोला, “तो हम इस नथ की कसम खाते हैं कि जो कुछ कहेंगे सच कहेंगे। सच के सिवा हमने कभी झूठ बोला है क्या?”

हरगाह मुसम्मा के वकील ने एतराज किया, “हुजूर, इस आदमी की गवाही नहीं चलेगी।”

“क्यों?” अदालत ने सवाल किया।

“हुजूर, इन लोगों को कहीं मौका नहीं दिया गया। इनमें न तो कोई वकील है, न जज है न चपरासी। यह समाज के सम्मानित लोग नहीं हैं।”

“क्या यह इंसान नहीं हैं? समाज के बनाए कानून अब नहीं चलेंगे। यह जज भी बनेंगे और वकील भी। यह एम.एल.ए. भी बनेंगे और एम.पी. भी। एक दिन यह हम लोगों पर शासन करेंगे। यह कानून बनाएँगे। अब यह तानाशाही नहीं चलेगी। मैं इनको गवाही देने की इजाजत देता हूँ।

“हाँ तो नत्थू, उस दिन तुमने क्या देखा?”

“हुजूर, मैं उस दिन गली से गुजर रहा था तो देखा कि यह हरगाह मुसम्मा एक बड़ा-सा मिट्टी का ढेला हाथ में लिये खड़ा है और किसी को ताक रहा है। इसने ताककर वह ढेला, लगाभगा जान बड़े मियाँ, जो दरवाजे में खटिया पर लेटे थे, के मार दिया। ढेला उनके मुँह पर पड़ा और वह हाय-हाय करने लगे।”

“फिर क्या हुआ?”

“फिर होना क्या था? अंदर से उनका लड़का मघा और पोता पगाह निकला और बड़े मियाँ को अस्पताल लेकर भागे।”

“फिर?”

“फिर मैं आगे गली में चला गया। मुझे बच्चे के जन्म पर एक घर में गाना गाना था।”

अदालत बरखास्त हई। दूसरी तारीख दी गई।

फिर सूरज निकला, मुन्सिफ का दरबार खुला, कारिंदे हाजिर हुए। हरगाह मुसम्मा भी पहुंचा और कार्रवाई शुरू हुई।

अगला गवाह लगाभगा जान पेश किया गया।

लगाभगा जान खटिया पर पड़े थे। वह उठकर बैठ नहीं सकते थे। उनकी गवाही जरूरी थी क्योंकि चोट उन्होंने खाई थी। उन्होंने फौरन किताब की कसम खा ली। उनका सारा जीवन कसम खाते बीता था। वह बाजार में दलाली का काम करते थे और कसम खा-खाकर माल बेचा करते थे। अब बुढ़ापे की वजह से ऊँचा सुनने लगे थे। उनके कान के पास मुँह ले जाकर जोर से बोलना पड़ता था।

“तुम्हारे मुँह में कितने दाँत हैं?” वकील ने पूछा।

“आँ…एँ…” उन्होंने बड़ा-सा मुँह खोला।

“तुम्हारे मुँह में कितने दाँत हैं?” वकील ने और जोर से उनके कान के पास मुँह ले जाकर पूछा।

“हम क्या दाँत गिनते हैं? बस टुकड़ा रोटी शोरबे में डुबोकर खा लेते हैं।” उन्होंने कहा।

“अदालत के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि तुम्हारे मुँह में कितने दाँत हैं और ढेला मारने से कितने दाँत टूटे थे।”

“एतराज हुजूर”, हरगाह मुसम्मा का वकील बोला, “मेरे दोस्त गवाह के मुँह में सवाल ठूस रहे हैं, उन्हें रोका जाए।”

मुन्सिफ ने हथौड़ा पटका।

“हुजूर यह है दाँत-तोड़ अस्पताल की रिपोर्ट। इसमें लिखा है कि लगाभगा जान के मुँह में तीन दाँत थे, ढेला मारने से दो टूट गये, अब केवल एक दाँत बचा है। यह रोटी कैसे खाएगा हुजूर? बुड्ढा आदमी है।” वकील ने कहा।

गवाही पूरी हुई। बड़े मियाँ का मुँह खोलकर देखा गया। किसी को कुछ नजर नही आया। मुँह के अंदर अंधेरा पड़ा था।

हरगाह मुसम्मा अदालत में खड़े-खड़े तंग आ चुका था। महीने गुजर चुके थे। केस लंबा चल रहा था। वह वकीलों को फीस पर फीस दिये जा रहा था। दिन भर खड़े-खड़े उसकी टाँगें दर्द करने लगती थीं। वह सोचने लगा, जल्दी इस गवाही-शहादत से छुट्टी मिले। अब उसका नंबर आ जाए और वह चीख-चीखकर एलान कर दे- “हाँ, बीबी जानम को ढेला उसने मारा था। अब जो चाहो सजा दे दो, बस इस पेशी से माफ कर दो।”

अगला गवाह मघा जान पेश हुआ।

कसमें वगैरह खाई गईं। सच बोलने का वादा लिया गया फिर गवाही शुरू हुई।

“घटना के दिन तुम कहाँ थे?”

“हुजूर, उस दिन मैं देर में सोकर उठा था। रात से गैस बहुत परेशान कर रही थी। कभी इस करवट लेटा कभी उस करवट, नींद नहीं आई। जब आँख खुलती, लगता कमरे में सड़ी बदबू भरी हुई है। मैंने समझा किचन से गैस लीक हो रही है। डर के मारे लाइट नहीं जलायी, कहीं कोई विस्फोट न हो जाए।”

“हुजूर!” हरगाह मुसम्मा के वकील ने कहा, “गवाह अदालत का वक्त जाया कर रहा है। इन बातों का कोई मतलब नहीं।”

“मतलब है साहब! यही तो बात है, जो अदालत को जानना जरूरी है।”

“हाँ, तो मैं कह रहा था–रात भर गैस ने परेशान किया। मैंने किचन में जाकर पड़ोस की खिड़की से आ रही रोशनी में देखा। गैस का पाइप ठीक था। चूहों ने नहीं काटा था।”

“जल्दी बताओ, यह बात तो रात की है। लगाभगा जान के ढेला सुबह सात बजे मारा गया है।” वकील ने कहा।

“हुजूर!” हरगाह मुसम्मा के वकील ने नाराजगी जाहिर की।

“हुक्म, हुक्म!” अदालत ने फिर हथौड़ा पटका।

“हुजूर!” मघा जान बोला, “यह तो मुझे सुबह मालूम हुआ कि मेरा लड़का पगाह रात को गैस निकालने की गोलियाँ खाकर सोया था। वह भी एक नहीं, चार-चार गोलियाँ। बड़ा नालायक है यह। इसने गैस की वजह से मेरी नाम में दम कर दिया था। मैं रात भर डर से काँपता रहा कि कहीं कोई धमाका न हो जाए, छत न उड़ जाए।”

“आगे बताओ।” मुंसिफ को बीच में टोकना पड़ा, “तुम अदालत का बहुत वक्त जाया कर रहे हो। हम यहाँ तुम्हारी कहानियाँ सुनने के लिए नहीं बैठे हैं। तुम्हें मालूम है कि अदालतों में कितने मुकदमे जेरे समाअत (निर्णयाधीन) हैं और मुंसिफों की कमी से वक्त पर नहीं निपट पा रहे हैं। तुम्हें मालूम है कि रोजाना अदालतों में कितने केस फाइल किये जाते हैं और उनमें से कितने झूठे होते हैं। अदालतों को दूध का दूध और पानी का पानी करने में कितने साल लग जाते हैं। हर साल हजारों आदमी इंसाफ और फैसले का इंतजार करते-करते मर जाते हैं। अगर अदालतें तम जैसे लोगों की गैस बाहर करने और छत उड़ने की कहानियाँ सुनने लगें तो इंसाफ का क्या होगा? इस देश का क्या होगा? अवाम का क्या होगा?”

मुंसिफ की आवाज भर्रा गई थी। वह बहुत जज्बाती हो गए थे। माहौल गंभीर हो चला था। सवाल वाकई अहम था। जो लोग इंसाफ की आस में इस दुनिया से गुजर गये उनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी।

अदालत का वक्त खत्म हो चुका था, इसलिए केस की सुनवाई मुल्तवी करनी पड़ी। सुनवाई के लिए लम्बी तारीख दी गई।

हरगाह मुसम्मा भी थके-थके कदमों से अदालत के बाहर निकला। वह सोच रहा था, बीबी जानम को इंसाफ जल्दी मिले। बीबी जानम अभी जवान है। लेकिन मौत की कोई उम्र नहीं होती, वह दबे पाँव आती है और दबोच लेती है।

फिर हवा चली, मौसम बदला, बरसात हुई, इंसाफ का दर खुला, हरगाह मुसम्मा रिक्शे पर बैठकर अदालत की तरफ चला, मामला आगे बढ़ा।

मघा जान ने कहा, “हुजूर, उस रात को रात भर जागने की वजह से मैं सुबह को सोता रह गया और अपने पूज्य पिता जी को, जो दरवाजे में खटिया डालकर सो रहे थे, उठाकर अपने कमरे में नहीं ला पाया इसलिए यह घटना घट गई। यह मेरा लड़का पगाह बड़ा नालायक है, सुबह-सुबह दरवाजे पर की सीढ़ी लगाकर छत पर चढ़ रहा था कि हरगाह मुसम्मा ने ढेला मार दिया. जो इसकी पीठ पर पडा और यह डरकर सीढी से कद पडा। सीढ़ी फिसलकर पूज्य पिताजी के मुँह पर गिरी जिससे उनके दाँत टूट गये।”

“गवाह बदल गया है हुजूर, इसकी गवाही काबिले कुबूल नहीं।” वकील ने कहा।

दूसरे वकील ने एतराज किया।

“तुम्हें कैसे पता चला कि यह घटना घटी है?”

“मैं सो रहा था। मुझे बीबी जानम ने बताया।”

गवाही पूरी हुई।

अगला गवाह पगाह जान पेश हुआ।

पगाह जान ने कहा, “मेरे घर में कोई सीढ़ी नहीं है। न मुझे पतंग उड़ाने का शौक है। मेरे पिताजी बहुत भुलक्कड़ हैं। रात भर यह गैस के डर से खटिया पर बैठे रहते हैं। मुझे मोहल्ले के लड़कों ने बताया कि बीबी जानम दरवाजे की ओट से हरगाह मुसम्मा को झाँका करती थी। मैं दोनों की चोरी पकड़ने जीने से छत पर चढ़ गया था। मैंने देखा कि हरगाह मुसम्मा ने ढेला बीबी जानम की तरफ फेंका, जो छत में जा लगा। छत में भिड़ों का छत्ता था। उन्होंने मुझे काटा। मैं जीने से उतरकर नीचे आया। मझे देखकर बीबी जानम अंदर भागी और दादा जान से टकराकर गिर पड़ी। दादा जान के दाँत टूट गए और गिरने से बीबी जानम की कलाई में फ्रैक्चर हो गया।”

“बीबी जानम को पेश किया जाए।” अदालत का हुक्म हुआ।

अगली तारीख पर बीबी जानम की पेशी हुई। फिर सच बोलने का वादा लिया गया।

“बीबी जानम अदालत के सामने बिना किसी डर के सच-सच बयान करो।”

“बात यह है साहब कि मैं और हरगाह मुसम्मा एक ही रास्ते से बाजार जाते थे। यह मुझे देखता था और मैं इसे देखती थी। उस दिन यह मेरे घर के सामने से गुजरा, मैंने दरवाजे की ओट से एक छोटी-सी कंकड़ी इसकी तरफ फेंकी। यह बद-अक्ल और ना-समझ है और उसके साथ बेढंगा भी है। इसे नहीं मालूम कि किसी सुंदरी के साथ कैसे पेश आया जाता है। इसने आव देखा न ताव एक मिट्टी का ढेला, जो सड़क पर पड़ा था, दरवाजे पर दे मारा।”

“फिर क्या हुआ?” अदालत ने दिलचस्पी ली।

“कुछ नहीं हुआ। मैं घर के अंदर आ गई। दादा जान दरवाजे पर सो रहे थे, वह ऊँचा सुनते हैं, उन्हें पता भी नहीं चला। मेरे पिता जी कमरे में सो रहे थे, उन्हें भी कुछ मालूम नहीं हुआ। मेरा भाई छत पर कबूतरों को दाना डाल रहा था, इसे भी कुछ नहीं मालूम हुआ।”

“फिर…?”

“फिर जब यह कबूतर उड़ाकर कई घंटे बाद बाहर निकला तो मोहल्ले के आवारा लड़कों ने इसे बताया कि हरगाह मुसम्मा की यह हिम्मत कि इसकी बहन की तरफ ढेला फेंके। आज एक ढेला फेंका है, कल न जाने क्या करेगा। हम तो कहते हैं कि हरगाह मुसम्मा का दिमाग अभी ठीक करना चाहिए। यह घर की इज्जत का सवाल है। रात को घर में सब रिश्तेदार इकट्ठा हुए। गवाह तलाश करने की बात हुई। सुबह मुकदमा दर्ज कराया गया।”

“हरगाह मुसम्मा, तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है।” अदालत ने पूछा।

हरगाह मुसम्मा ने कसम खाई। सच कहने का वादा किया फिर बोला –

“हुजूर मैंने ढेला मारा है, जो सजा चाहो मुझे सुना दो।”

अदालत ने सजा सुना दी।

बीबी जानम उठकर हरगाह मुसम्मा के पास खड़ी हुई और अदालत से दरख्वास्त की- “हुजूर, यही सजा मुझे भी मिले, पहली कंकडी मैंने मारी थी…!”

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’