चोट

स्कोलियोसिस रीढ़ एक प्रकार का टेढ़ापन है जो पोस्चर को  प्रभावित करता है। यह स्पाइनल ट्रॉमा, न्यूरोमस्कुलर बीमारियों, सेरेब्रल पाल्सी, गर्भ में एक विकृति के कारण हो सकता है।स्कोलियोसिस वयस्कों और बच्चों दोनों को प्रभावित करता है। पर महिलाओं को स्कोलियोसिस से 8 गुना अधिक खतरा होता है।

स्कोलियोसिस के सामान्य प्रकार क्या हैं?

स्कोलियोसिस की सबसे बड़ी श्रेणी इडियोपैथिक स्कोलियोसिस है, एक शब्द उन मामलों को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाता है जिनका कोई निश्चित कारण नहीं है। इडियोपैथिक स्कोलियोसिस किस आयु मिल सकता है:

  • शिशु: 0 से 3 साल
  • जुवेनाइल: 4 से 10 साल
  • किशोर: 11 से 18 वर्ष
  • वयस्क: १ years+ वर्ष

कारणों की जांच

आमतौर पर स्कोलियोसिस के कारणों की पहचान करना मुश्किल होता है। आनुवांशनिक कारक भी इसे प्रभावित करते हैं। वयस्कों में यह स्थिति जन्मजात के कारण भी हो सकती है। इसके लक्षण हैं-

  • असमान पैर की लंबाई

  • जन्मजात रीढ़ की बीमारी

  • मस्तिष्क संबंधी विकार 

व्यायाम, शारीरिक स्थिति को मज़बूत करने और सीधा करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है। लेकिन स्कोलियोसिस के समय आपको उन अभ्यासों के बारे में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए जो आप करना चाहते हैं।वैसे  योगा हमारी टांगों की मांसपेशियों को सुदृढ़ कर उन्हें ताक़त प्रदान करता है। योग के तहत साँस लेने की विभिन्न विधियों और विभिन्न आसनों की मदद से रीढ़ की हड्डी को मज़बूती देने और पुन:आकार में लाने का प्रयास किया जाता है। शुरुआत में थोड़ा दर्द ज़रूर होता है पर लम्बी अवधि में शरीर का आकार सही हो जाता है और दर्द न के बराबर हो जाता है। लेकिन इसे प्रभावी उपचार नहीं माना जा सकता।

स्कोलियोसिस से निपटने के लिए लोग शारीरिक गतिविधियों में अधिक जुड़ जाते हैं परन्तु आजकल लोग इसे ठीक करने के लिए योगा का भी सहारा ले रहे हैं। स्कोलियोसिस के दर्द को ठीक करने के लिए योगा एक अच्छा व प्रभावकारी उपाय माना गया है। तो आइए जानते हैं कि इस समस्या से निपटने के लिए योगा हमारी कितनी मदद कर सकता है। 

शरीर की दोनो साइड को स्ट्रेच करता है व मजबूत बनाता है : योगा करते समय आप के शरीर के सभी भागों में एक खीचाव महसूस होता है और जो जोड़ या जों हिस्से जाम हो रखे होते हैं वह भी धीरे धीरे खुलने लगते हैं। यदि आप हर रोज थोड़ा थोड़ा योगा करते हैं तो आप के शरीर की अधिक गतिविधियां होंगी जिससे आप का शरीर लचीला व फुर्तीला बनेगा। इसलिए आप की दोनो साइड मजबूत भी बनेंगी।

दर्द व अकड़न को कम करता है : स्कोलियोसिस के दौरान आप की स्पाइन में बहुत दर्द व अकड़न होने लगती है। यदि आप योगा करते हैं तो आप की स्पाइन की मसल्स मजबूत बनती हैं वह धीरे धीरे स्वयं ही सीधी होने लगती हैं जिस कारण आप की रीढ़ की हड्डी से अकड़न कम होने लगती है और इससे आप को दर्द कम होने में भी बहुत मदद मिलती है।

रीढ़ की हड्डी की पोजिशन सही बनाता है : इस स्थिति के दौरान आप की स्पाइन में थोड़ा कर्व आ जाता है जिस वजह से वह अपनी जगह से थोड़ी हिल जाती है। यदि आप नियमित रूप से योगा करेंगे तो आप को अपनी स्पाइन की पोजिशन में स्वयं ही हल्का हल्का सुधार महसूस होगा। अतः योगा करना आप की स्पाइन के लिए बहुत ही बेहतर है।

स्कोलियोसिस के दौरान योगा करने के कुछ टिप्स

अपने पोस्चर की प्रैक्टिस करें : यदि आप योगा करते समय अपने पोस्चर को सही रखते हैं तो आप को योगा करने में बहुत ही आसानी महसूस होगी। इसलिए हर रोज थोड़ी देर के लिए अपने पोस्चर को ठीक करने के लिए प्रेक्टिस करें।

अपने पेट को मजबूत रखें : योगा करते समय यह जरूरी है कि आप अपने पेट को मजबूत करके रखें। उसे ढीला न छोड़ें और यह कोशिश करें कि आप को पेट के भाग में खीचाव महसूस हो।

बैलेंस बनाने का प्रयास करें : यदि आप शुरू से ही एक परफेक्ट पोजिशन पाने की सोचेंगे तो यह सम्भव नहीं है इसलिए आप को सिमेट्री कि जगह अपने बैलेंस बनाने पर अधिक ध्यान देना होगा। 

हर रोज प्रैक्टिस करें : हो सकता है योगा आप को शुरुआत के दिनों में मुश्किल लगे और आप से न हो परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि आप इसे बीच में ही छोड़ देंगे। आप को हर रोज इसकी प्रैक्टिस करनी चाहिए।

स्कोलियोसिस के लिए कुछ योगा आसन

  • अर्ध उत्तनासन
  • अधो मुख स्वानासन
  • सलाभासन
  • सेतु बंधा
  • वशिष्ठास्न
  • अंतासन
  • ताड़ासन

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