गर्मियां शुरू होते ही बाजार में जगह जगह मिट्टी के छोटे बड़े घड़े, सुराही आदि दिख जाते हैं। पहले की अपेक्षा उनके आकार-प्रकार में काफी बदलाव आ गया है। मसलन घड़ों में पानी की टोटी लगने लगी हैं ताकि पानी निकालने में सुविधा हो। फिर भी आज फ्रिज का ‘चिल्ड वाटर हमारी जिह्वा को तो अच्छा लगता है पर घड़े का ठंडा पानी हमें अंदर तक सराबोर कर देता है। घड़े, मटको के अलावा यदि अन्य मिट्टी के बर्तनों की बात करें तो कुल्हड़ की चाय, लस्सी, शकोरों में जमी फिरनी, रबड़ी और मटकी में बनी दाल का स्वाद ही लाजवाब होता है। जिस तरह से मिट्टी के कुंडे में जमाया गया दही बिल्कुल थक्के की तरह होता है और अन्य धातु के बर्तनों में जमे दही से ज्यादा स्वादिष्ट। कहने का मतलब है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाना बिल्कुल नया भी है और बहुत पुराना भी।यह अद्भुत और शुद्ध प्राकृतिक रूप से पकाने का तरीका है। 


शरीर रहता है निरोग
 

मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से शरीर को सभी आवश्यक खनिज स्वत: ही प्राह्रश्वत हो जाते हैं। क्योंकि मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने से मिट्टी का कुछ अंश भोजन में चला जाता है और पेट में जाने के बाद मिट्टी घुल जाती है व सारे तत्व
भोजन के बाद रस में मिल कर रक्त में पहुंच जाते हैं। इस प्रकार मल-मूत्र द्वारा होने वाले खनिजों की क्षति पूर्ति रोज हो जाया करती है व शरीर निरोगी रहता है। ध्यान रहे कि शरीर के लिए जरूरी खनिजों की पूर्ति भोज्य पदार्थ जैसे- अनाज, दालें, फल, सब्जियों आदि द्वारा होती है। मिट्टी के बर्तनों में पकी दाल-सब्जी में धातु विषैले तत्व और चमक पैदा करने वाले रसायनों की मिलावट भी नहीं होती है। मिट्टी उष्णता की कुचालक है अत: इस तरह के बर्तनों में भोजन पकाने से उसे धीरे-धीरे उष्णता प्राप्त होती है, जिसके परिणामस्वरूप दालसब्जी में प्रोटीन शतप्रतिशत सुरक्षित रहता है। यदि कांसे के बर्तन में खाना पकाया जाए तो कुछ प्रोटीन का क्षरण हो जाता है व एल्युमिनियम के बर्तन में पकाने से 87 प्रतिशत प्रोटीन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है। भोजन में कुछ एल्युमिनियम चले जाने से एल्जाइमर, पार्किन्सन आदि अनेक बीमारियां हो जाती हैं।  

 

सजता किचन 

मिट्टी के बर्तनों की सेहत के प्रति जागरूकता देखते हुए फरीदाबाद के देवाशीष स्टोर के रवि जी ने इन बर्तनों की बेहतरीन श्रृंखला अपने स्टोर में रखी है। इसके लिए उन्होंने देश के अलग- अलग भागों से चीजें मंगाई हुई है। रवि अपने यहां रखे पचास लीटर के मिट्टी के फ्रिज के बारे में बताते हैं कि एक तो यह ईको फ्रेंडली है क्योंकि बिना बिजली के चलता है। यह फ्रिज वर्तमान तापमान से पंद्रह-बीस डिग्री तक कम कर देता है। इसमें ऊपर दस लीटर का टैंक बना है जिसमें पानी भर दिया जाता है जो जितना कम होता जाए उसे भरते जाना होता है।

 

यह फ्रिज की साइड की दीवारों को धीरे-धीरे ठंडा करने लगता है, जिससे फ्रिज के अंदर का तापमान कम होता जाता है। इस फ्रिज के टैंक में भरा पानी दो महीने बाद पीने लायक हो जाता है। यानि फ्रिज में सामान रखे और दो महीने बाद पुराना पानी हटाकर ताजा पानी भरें और ठंडे पानी का स्वाद लें। रवि कहते हैं कि हम इसे अपने स्टोर में गुजरात से मंगाते हैं। पिछली बार जितने फ्रिज मंगवाए सभी बिक गए। बड़े-बड़े लोग इसे अपने ड्राइंगरूम में रख रहे हैं लेकिन इसको खुली जगह में और एसी से दूर रखना होता है। इसकी कीमत है मात्र 4,500 रुपये।

 


फ्रिज के अलावा इनके स्टोर में तीन लीटर का प्रेशरकुकर, फिल्टर, टी सेट, डिनर सेट, तवा, कड़ाही, पानी की बोतल आदि बहुत सारे आइटम मौजूद हैं। सब मिट्टी के हैं अत: नाजुक होते हैं। इनके रख-रखाव में थोड़ी सावधानी बरतनी होती है। पकाने के लिए मीडियम गैस का प्रयोग किया जाता है। दाल- चावल आदि पहले से भिगो दें तो जल्दी ही बन जाते हैं। पकाने से पहले इनको बारह घंटे पानी में डालकर अवश्य रखें।

 

 


सेहत के लिए अच्छे क्यों
 

  • शत-प्रतिशत मिट्टी के बर्तनों में धातु नहीं होती और केमिकल भी नहीं होता है। खाद्य पदार्थों को नुकसान पहुंचाने वाला सीसा मिट्टी के बर्तनों में नहीं पाया जाता है और नुकसानदायक कैडमियम तत्व भी नहीं होता है।
  • मिट्टी के बर्तनों में प्लास्टिक, डाई, माइका आदि नहीं होता है। इसमें पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, फासफोरस जैसे प्राकृतिक रूप से लाभकारी खनिज पाए जाते हैं। जिसका प्रकृति और पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। यानि शुद्ध मिट्टी का कम्पोजीशन ऐसा होता है जो आप खा भी सकते हैं और इसका कोई नुकसान भी नहीं होता।
  •  मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से बर्तन के रासायनिक तत्व खाने में मिलने पर उसे दूषित नहीं करते जैसे- धातु के बर्तन में पकाने से खाने में धातु मिल जाती है और शरीर को नुकसान पहुंचाती है।
  • मिट्टी के बर्तनों में भाप का उपयोग खाना बनाने में ठीक से नियंत्रित होता है। इससे खाने के पोषक तत्व नष्ट नहीं होते। साथ ही घी, तेल का उपयोग भी बहुत कम होता है। खाना अपने तेल व रस से ही पकता है।
  •  इन बर्तनों में खाना धीरे-धीरे और समान रूप से पकता है और पोषक तत्व नष्ट नहीं होते। आजकल के बर्तनों में आंच समान रूप से नहीं लगती है, बस भोजन जल्दी पक जाता है।
  • मिट्टी के बर्तनों में पके खाने में मसाले आदि ठीक से पक जाते हैं और खाना काफी समय तक गरम बना रहता है। इस प्रकार बिजली की भी बचत होती है।
  • मिट्टी के बर्तनों की उपयोगिता को समझ उसमें खाना पकाने से मिट्टी से जुड़े लोगों को काम मिलेगा और हमें स्वास्थ्यकर भोजन।