इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के पूर्वानुमान के अनुसार साल 2035 तक दस लोगों में से एक व्यक्ति डायबिटीज से पीडि़त होगा। साल 2011 तक दुनियाभर में 366 मिलियन लोग डायबिटीज की समस्या से पीडि़त थे और साल 2035 तक ये आंकड़ा 552 मिलियन होने का अनुमान है। भारत में अस्वस्थ जीवनशैली से जुडी बीमारी डायबिटीज स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या बनी हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल 61.3 मिलियन से  ज्यादा लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं और साल 2030 में दुनिया की कुल डायबिटीज से पीडि़त जनसंख्या में 101.2 मिलियन डायबिटीज रोगियों के साथ भारत का स्थान पांचवा होगा।

मोटापा

मुलुंद के फोर्टिस अस्पताल के एंडोक्रिनोलोजिस्ट डॉ. सुधींद्र कुलकर्णी का कहना है, ‘हमारे देश में डायबिटीज होने के कई कारक हैं जिसमें आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों के अलावा मोटापा भी शामिल है। यह सीधे अस्वस्थ जीवनशैली, लगातार शहरीकरण और अस्वस्थ डाइट पैटर्न से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा कई कारक ऐसे भी हैं जिनके बारे में लोग कम जानते हैं। इन कारकों की वजह से डायबिटीज में लगातार इजाफा हो रहा है जिसमें विटामिन डी की कमी भी एक कारक है।

डायबिटीज टाइप-2 का रिस्क

रिसर्च करने वाली एक संस्था के अनुसार जिन लोगों के रक्त में विटामिन डी की कमी है, उन्हें डायबिटीज टाइप-2 होने का रिस्क सबसे ज्यादा है। डॉ. सुधींद्र कुलकर्णी कहते हैं, ‘काफी लोगों को हैरानी होगी कि हमारे देश में इतनी सूरज की रोशनी होने के बावजूद विटामिन डी की कमी होती है। हालांकि विटामिन डी की कमी से डायबिटीज होने का रिस्क सबसे ज्यादा है और तकरीबन 85 प्रतिशत भारतीय विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं। विटामिन डी की कमी और ज्यादा ब्लड शुगर का आपसी लिंक होने के बारे में जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी है।

आमतौर पर विटामिन डी की कमी को हड्डियों से जोड़कर देखा जाता रहा है लेकिन हाल ही में स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञों ने पता लगाया है कि विटामिन डी की कमी का संबंध डायबिटीज से है। अगर शरीर में विटामिन डी की प्रचुर मात्रा है तो डायबिटीज जैसी बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है। शरीर में विटामिन डी का स्तर 20 से 50 एनजी/एमएल तक होना चाहिए और 12 एनजी/एमएल से कम का स्तर विटामिन डी की कमी दर्शाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि विटामिन डी की कमी का कारण भारतीयों का शारीरिक क्रियाएं सीमित करना, अस्वस्थ खान-पान और ज्यादा समय तक घर के अंदर रहना है। भारत में ज्यादातर जनसंख्या शाकाहारी है। मांसाहारी लोग विटामिन से जुड़े संसाधनों का कम इस्तेमाल करते हैं जिससे भारतीयों में कमी का खतरा बढ़ जाते है।

समाधान क्या है?

विटामिन डी से जुड़े सप्लीमेंट लेना इसका बेहतर विकल्प है क्योंकि जब तक तीन चौथाई शरीर सीधे सूरज की रोशनी में नहीं जाएगा तब तक सूरज की रोशनी से विटामिन डी की कमी को पूरा करना मुश्किल है। विशेषज्ञों का मानना है कि रोजाना बिना साइड इफैक्ट्स के विटामिन डी सप्लीमेंट लेना बेहतर विकल्प है। डॉ. सुधींद्र कुलकर्णी का कहना है, ‘डायबिटीज के खतरे को कम करने और रोजाना शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रचुर मात्रा में विटामिन डी का सेवन करने के लिए विटामिन डी के सप्लीमेंट  नियमित रूप से लेने चाहिए। जब डायबिटीज के रिस्क को कम करने का आसान समाधान है तो रोज़ाना विटामिन डी की कमी को पूरा करने के लिए सप्लीमेंट लेना कारगर है।