सोलह शृंगार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती मेंहदी, सावन मास में कुछ ज्यादा ही रास आती है। इस मास के आते ही न जाने कितनी स्मृतियां जाग जाती हैं और हम चल पड़ते हैं पीहर की गलियों में। उन छोड़ आए आंगन में खुद को ढूंढने लगते हैं। बाग-बगीचे, आम पर डला झूला, सखियों का हुड़दंग और मेंहदी की ताजी खुशबू मेरी यादों में सब कुछ सुरक्षित है। बिल्कुल वैसा का वैसा ही सावन में सर्वप्रथम कुलदेवी को मेंहदी अर्पण कर ही उसे हम अपने लिए उपयोग करते हैं।

इस मेहंदी का इतिहास तो नहीं पता, पर हां! जब से होश सम्भाली हूं इसे अपने करीब पाती रही हूं। हाथों पर रचती और हृदय पर छपती मेंहदी की तुलना किसी अन्य शृंगार की वस्तु से नहीं कर सकते। पहले-पहल जहां तक मुझे याद है हम बहनें ढूंढा करती थीं कि कहां है मेहंदी का पौधा और फिर हमारा दूसरा स्टेप होता मेहंदी की पत्तियां तोड़ लाना, फिर सिल-बट्टे पर उसे पीसना और फिर बारी होती मेहंदी लगाने की। अगरबत्ती स्टिक की सहायता से भी हम मेहंदी का सुंदर डिजाइन बना लेते थे। सबसे मजे की बात तो यह होती कि हम में से कोई मेहंदी पीसना नहीं चाहतीं, क्योंकि उसे पीसते-पीसते ही हाथ लाल हो जाता। मतलब सोचे गए डिजाइन पर तो पानी फिर गया ना! तो इतना कुछ करना पड़ता था हमें मेहंदी के प्रेम में। फिर एक सहेली से ज्ञात हुआ कि चायपत्ती व चीनी से इंस्टेट मेहंदी चुटकियों में बनाया जा सकता है। इस नुस्खे के हाथ लग जाने से ऐसा लगा कि कोई अलादीन का चिराग हाथ लग गया हो। अब तो जब चाहो मेहंदी लगाओ, वो भी बिना किसी झंझट के। वो जमाना ही अलग था, जब हम कोई भी काम अकेले नहीं करते थे। फिर हम सखियों ने मेहंदी क्लास ज्वाइन की जहां सुंदर सुंदर डिजाइन के साथ कोन बनाना भी सीखाया गया। अब मेहंदी लगाना बहुत आसान लगने लगा था। 

उन दिनों मेहंदी लगाने का जैसे धुन सवार हो हम सब पर। मां-चाची, भाभियों के साथ-साथ मुहल्ले की बाकी स्त्रियों के हाथों की बुकिंग भी पहले से कर लेते थे। एक जोश था मेहंदी लगाने का जिसके सामने हमें ना रात दिखता ना दिन। बड़े जतन से लगाई गई मेहंदी मुझे उदास कर जाती जब उसका रंग गहरा कत्थई ना होता। पता नहीं क्यों पर मेरे हाथों पर आकर यह मेहंदी भी अपना स्वभाव भूल जाती हो जैसे। लोगों को कहते सुनती थी कि अगर पति प्रेम करता है तो मेहंदी का रंग बहुत गहरा होता है। मन ही मन सोच लेती चलो कोई नहीं शादी के बाद तो मेहंदी रंग लाएगी। 

पर अफसोस शादी में भी मेरी मेहंदी ने कोई कमाल नहीं दिखाया। कई बार पति को अपनी मेहंदी वाले हाथ दिखाकर कहती, देखो! तुम मुझे प्रेम नही करते ना! इसलिए मेरे हाथों में मेहंदी का रंग नही चढ़ता। और पतिदेव मुस्कुराकर कहते, ‘बहुत भोली हो तुम! मेरे प्रेम का रंग हथेली पर नहीं, अपने चेहरे पर देखो प्रिये!Ó और मैं चुप हो जाती क्योंकि अब तक मैं भी समझ चुकी हूं कि मेहंदी का रंग शरीर के ताप पर निर्भर करता है। पर फिर भी पतिदेव को प्यार की झिरकी देना अच्छा लगता है। इसलिए हर बार मेहंदी दिखाकर प्रेम का वास्ता देना नहीं भूलती।

सुहाग-सौभाग्य व पति-पत्नी के मध्य के प्रेम के गहरे रंग को मेहंदी और पक्का करती है, जब पत्नी के हाथों में रची मेहंदी में पति अपना नाम ढूंढता है। प्रेम, समर्पण के अटूट बंधन का दूसरा नाम है मेहंदी। उसका गहरा या हल्का रंग दाम्पत्य-प्रेम का सबूत नहीं। मेहंदी का तो स्वभाव ही है अपने रंग में सब को रंगना, फिर चाहे वो पति-पत्नी का प्रेम हो या भाई-बहन का। आज बाजार में इतने केमिकल वाली मेहंदी बिकती हैं, जिनसे जैसा चाहो वैसा रंग पाओ। शादी में हल्दी-मेहंदी वाले दिन की बात ही कुछ और होती है। मेहंदी की खुशबू, गीत-संगीत, बेबाक नाच-गाना ये सब कुछ भी तो उसी प्रेम के लिए है ना जिसका नाम दुल्हन के हाथों में मेहंदी से लिखा जा रहा है।

मेहंदी से लिखे उस नाम को कुंवारा मन बार-बार पढ़ता और शर्माता। बस एक कसक रह गई कि अब तक मेहंदी पैरों में नहीं लगाई। अम्मा कहती हैं, मेहंदी देवी को चढ़ती है, अत: उसे कभी पैरों में नहीं लगा सकते। सोचा शादी के बाद यह अरमान पूरी होगा पर ससुराल में भी वही नियम व शर्त लागू हैं।

शादी के बाद तो जैसे मेहंदी लगाना बन्द ही हो गया। घर, पति, बच्चे, ऑफिस इन सबके बीच मेहंदी! ना बाबा ना! अब तो तीज व राखी पर भी शगुनभर के लिए मेहंदी की एक बूटी डाल लेती हूं। हां, पर यह बताना तो भूल ही गई कि मेहंदी से नाता कहां टूटा। पहले  जिसे हाथों पर लगाती थी अब उसे सर पर लगाने लगी हूं और वह भी पूरी ईमानदारी से अपना असर दिखाती है। उसे कोई फर्क नही पड़ता, सर पर लगाओ या पैर पर या हथेली पर। ये तो मेहंदी है, मेहंदी तो रंग लाएगी। 

यह भी पढ़ें –मानसून में बालों को मजबूत बनाएंगे ये 8 टिप्स

फैशन संबंधी हमारे सुझाव आपको कैसे लगे? अपनी प्रतिक्रियाएं जरूर भेजें। आप फैशन संबंधी टिप्स व ट्रेंड्स भी हमें ई-मेल कर सकते हैं-editor@grehlakshmi.com