Summmary: भारत की रहस्यमयी झील 'लेक ऑफ नो रिटर्न' जहां से लौटना नामुमकिन है
भारत-म्यांमार सीमा की 'लेक ऑफ नो रिटर्न' रहस्यों से घिरी एक अनोखी झील है, जहां से लौटना असंभव कहा जाता है। यह झील प्राकृतिक डामर, सल्फर जलकुंड और लुप्त सभ्यताओं के रहस्य समेटे हुए है।
Mysterious Lake of India: दुनिया हमारी काफी रहस्यों से भरी पड़ी है। कई अनोखी चीजें हैं जिनके बारे में लोगों को पूरी तरह जानकारी नहीं होती है। इस वजह से ये रहस्यमयी बन जाती हैं। क्या आप जानते हैं कि दुनिया में एक ऐसी ही झील है जहां कोई जाता है, तो वहां से फिर लौटकर वापस नहीं आता है। इस झील के बारे में कई रहस्यमयी कहानियां सामने आई हैं। इस झील के रहस्य को वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए हैं। यह झील भारत और म्यांमार की सीमा पर स्थित है।
दुनिया की सबसे गहरी रहस्यमयी झील

दरअसल, हाल ही में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी से जुड़े एक अध्ययन में यह चौंकाने वाली खोज हुई कि झील की सतह के नीचे सूक्ष्मजीव जीवित हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये सूक्ष्मजीव यह जानने में मदद कर सकते हैं कि क्या किसी अन्य ग्रह पर जीवन संभव है। धरती पर ऐसी एक रहस्यमयी झील है जिसके अंदर से सड़कें निकलती हैं। सड़के इस वजह से क्योंकि ये झील डामर से बनी है और इसके डामर से दुनिया के कई हिस्सों में रोड बनाई गई हैं। इस वजह से लोग इस झील को आठवां अजूबा मानते हैं। इस झील को ‘लेक ऑफ नो रिटर्न’ के नाम से जाना जाता है।
यह झील न केवल अद्भुत है, बल्कि आज भी विज्ञान के लिए एक रहस्य बनी हुई है। यह झील दुनिया की सबसे बड़ी प्राकृतिक डामर की खदान है और इसका क्षेत्रफल लगभग 109 एकड़ है। दुनिया में ऐसी केवल तीन ही जगहें ज्ञात हैं, और ला ब्रीया उनमें से सबसे विशाल है। इसमें लगभग एक करोड़ टन प्राकृतिक डामर भंडारित है।
इस झील से जुड़े हैं कई रहस्य
झील से एक और रहस्य जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि जब युद्ध समाप्त होने बाद जापान के सैनिक वापस लौटकर जा रहे थे, तो वे इस झील के पास रास्त भूल गए और फिर लापता हो गए। दूर से देखने पर यह झील किसी विशाल, काले पार्किंग लॉट जैसी दिखती है, लेकिन पास से देखने पर यह काली मिट्टी जैसी उबड़-खाबड़ और लहरदार सतह प्रतीत होती है। बरसात के मौसम में झील की सतह पर छोटे-छोटे जलकुंड बन जाते हैं जिनमें लोग नहाते हैं। इन जलकुंडों में सल्फर की मात्रा अधिक होती है, और स्थानीय लोग मानते हैं कि ये “जीवनदायिनी फव्वारे” हैं, जो त्वचा की समस्याओं से लेकर जोड़ों के दर्द तक में लाभकारी होते हैं।
ये खास जनजाति झील में समा गई

बता दें, 1595 में ब्रिटिश खोजकर्ता सर वाल्टर रैले ने इस झील की ‘खोज’ की थी, जब वह ‘एल डोराडो’ की तलाश में थे। हालांकि, 1792 में स्पेनियों ने सबसे पहले यहां से डामर को शुद्ध करना शुरू किया और इसे नाम दिया “Tierra de Brea” यानी “पिच की धरती”, जो कालांतर में “ला ब्रीया” बना। स्थानीय अमेरिंडियन समुदाय इस झील को देवताओं का प्रकोप मानते थे। एक कहानी के अनुसार, एक बार एक जनजाति ने हमिंगबर्ड खा लीं। इसके कारण पूरी जनजाति इस झील में समा गई। यहां खुदाई में कई पुरातात्विक अवशेष मिले हैं, जैसे एक जानवर की आकृति में तराशी गई लकड़ी की बेंच। यहां का म्यूज़ियम इन अवशेषों को संजोए हुए है।
