अपने शौक से बनाई अंतर्राष्ट्रीय– पहचान गौरी दिवाकर (‘गौरी दिवाकर संस्कृति फाउंडेशन’ की संस्थापक)

आसमान तो बहुत है, मगर उन्हें फतह करने वाला कोई-कोई है। अपने हुनर और अपनी मेहनत की बदौलत आसमान की बुलंदियों को छूने वाली ये शख्सियत हैं- गौरी दिवाकर। नन्ही उम्र से ही गौरी नृत्य के प्रति खास रूचि रखती थीं। गौरी का जन्म जमशेदपुर में हुआ और वहीं से उन्होंने अपनी स्कूली तालीम हासिल की। स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ वो सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थीं। अब उनका शौक उनकी चाहत बन चुकी थी। इसी के चलते गौरी ने संगीत समाज संस्था में अपनी प्रथम गुरु सुमिता चौधरी जी से नृत्य की ट्रेनिंग लेनी आरंभ कर दी। स्कूली तालीम तो खत्म हो गई। मगर तब तक नृत्य उनकी जिंदगी का एक अटूट हिस्सा बन चुका था। उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए गौरी ने दिल्ली का रूख किया और यहां पहुंचकर कत्थक केंद्र में दाखिला लिया, जहां मशहूर नृतक पंडित बिरजू महाराज और उनके पुत्र पंडित जयकिशन महाराज जी से नृत्य सीखना आरंभ किया। कला को सीखने के साथ-साथ गौरी ने परफार्म करना भी शुरू कर दिया। गौरी ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नृत्य समारोहों में नृत्य प्रदर्शन किया और मंच पर अपने हुनर का जौहर दिखाया। गौरी ने कत्थक में डिप्लोमा और पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा हासिल करने के बाद साल 1998 में आगे की तालीम अदिति मंगल दास जी से लेनी शुरू की और वो सिलसिला अब भी जारी है। गौरी ने सन् 2001 में बच्चों को तालीम देनी शुरू की और फिर उसके बाद सन् 2009 में ‘गौरी दिवाकर संस्कृति फाउंडेशन’ की बुनियाद रखी। गौरी को अपनी बेहतरीन परफार्मंेसिस के लिए साल 2002 में ‘शृंगार मनी अवार्ड’, 2008 में संगीत नाट्य अकादमी की ओर से ‘उस्ताद बिस्मिल्लाह खां यूथ अवार्ड’ और ‘जयदेव प्रतिभा पुरस्कार’ समेत कई इनामात से नवाज़ा जा चुका है।

बेसहाराओं को दिया सहारा –डॉ. गीतांजलि चोपड़ा (संस्थापक एवं अध्यक्ष, विशेज एंड ब्लेसिंग्स)

आज के इस दौर में जिस तरह हर शख्स तालीम के बगैर अधूरा है, ठीक उसी तरह हमारी जि़ंदगी भी कहीं-न-कहीं नेकियों के बगैर बेमानी-सी है। खुद का मुस्तिकबिल, बच्चों की परवरिश और खानदान से लगाव तो एक आम बात है। मगर बात जब मुफलिसी की जिंदगी गुज़ार रहे नन्हे बच्चों के भविष्य को रोशन करने की आती है या फिर घर से बेघर किए जा चुके बुजुर्गों की लाठी बनने की आती है, तो केवल चुनिंदा लोग ही आगे आ पाते हैं। अगर हम खुद से पूछें, तो क्या ऐसा रिश्ता हम उन लोगों से कायम कर पाते हैं, जो हमारे अपने नहीं हैं, शायद नहीं। मगर ऐसी ही एक शख्सियत है- डॉ. गीतांजलि चोपड़ा, जो अपनी जि़ंदगी दूसरों की तमन्नाओं, दूसरों की ज़रूरतों और दूसरों की चाहतों को पूरा करने में गुज़ार रही हैं। बतौर शिक्षक देश-विदेश में पढ़ा चुकी गीतांजलि अपने करियर के शिखर पर थीं। एक के बाद एक उपलब्धियां भी हासिल हो रही हैं। मगर बावजूद इसके उनका मन कहीं और था। गीतांजलि ने उस वक्त सभी आकांक्षाओं को दरकिनार कर अपने मुस्तिकबिल को संवारने की बजाए, जरूरतमंदों की मदद करना ज़रूरी समझा और इसी को अपनी जि़ंदगी का मकसद बना लिया। बचपन से ही सेवा भावना से भरपूर इस शख्सियत ने तकरीबन सात साल पहले ” ‘विशेज़ एंड ब्लेस्गिंस’ नाम की एक एनजीओ की नींव रखी और अपने सपने को साकार किया। सालों से बखूबी समाजसेवी कार्यों में जुटी इस एनजीओ के दिल्ली में मौजूदा 20 केन्द्र हैं। दिल्ली एनसीआर के अलावा असम, झारखंड, तमिलनाडू और पश्चिम बंगाल में भी एनजीओ सक्रिय है। इस एनजीओ के ज़रिए जहां गरीब बच्चों को तालीम दिलाने के लिए ‘स्पान्सर अ चाईल्हुड’ नाम की परियोजना के तहत मुहीम चलाई गई है। वहीं बुजुर्गों को आसरा देने के लिए ‘मन का तिलक’ नाम से वृद्ध आश्रम भी खोला गया है। इसके अलावा कोविड रिलीफ योजना के तहत भी इस एनजीओ ने देश के कई हिस्सों में राहत कार्य किए हैं, जो वाकई काबिले तारीफ हैं। इस मसरूफियत भरी जि़ंदगी में जहां आज किसी के पास अपनों के लिए वक्त नहीं है, वहीं गीतांजलि अपने मुस्तिकबिल और अपनी चाहतों की फिक्र किए बगैर दूसरों की अंधेरी जिदंगी को इल्म और मदद के चिराग से रोशन कर रही हैं। इन्हें अपनी नेकियों के लिए मुख्तलिफ इनामों से भी नवाज़ा जा चुका है।

इंसाफ दिलाने की राह पर अनुजा – अनुजा कपूर (क्रिमिनल साइकोलोजिस्ट)

जज्बातों से ख्यालों तक का सफर आसान होता है, मगर ख्यालों को हकीकत की शक्ल देना शायद उतना आसान नहीं होता, मगर कुछ गुज़रने के जज्बे, जदीद हौंसलें और आगे बढ़ने की चाहत में अनुजा कपूर आज उस मकाम पर हैं, जहां पहुंच पाना हर किसी के बस की बात नही है। कम उम्र में ही वालदेन देख रहे थे कि इस मासूम में तूफानों से भिड़ जाने का एक ज़बरदस्त हौंसला मौजूद है। कई मामलों में गैर मामूली सलाहियत है और नामुमकिन को मुमकिन साबित करने का जज़्बा है। दरअसल उम्र नन्ही थी मगर इरादे बेहद ऊंचे और उन इरादों को पूरा करने के लिए अनुजा ने खूब मेहनत की, जिसकी बदौलत अनुजा कपूर एक क्रिमिनल साइकोलोजिस्ट, आनरेरी स्पेशल पुलिस अफसर, और सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर अपनी अलग पहचान बना चुकी हैं। खुद को हर मकाम पर साबित कर चुकीं अनुजा कपूर का जज्बा, हौंसला और काम के प्रति उनकी गंभीरता उनके किरदार में साफ-साफ झलकती है। अनुजा को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का खूब शौक था। उन्होंने शादी के बाद अपनी पढ़ाई पूरी की। सन् 2007 में अनुजा को ब्रेन ट्यूमर जैसे मर्ज ने अपनी चपेट में ले लिया। मगर मज़बूत इरादों वाली अनुजा ने जिंदगी की जंग जीती और एक बार फिर मैदान में उतरीं। बुलंद इरादों से भरपूर अनुजा समाज में महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दे चुकी हैं। अनुजा मानती हैं कि अगर महिलाएं अपने आप पर विश्वास रखें, तो दुनिया खुद आपके पीछे होगी। अनुजा ‘निर्भया एक शक्ति’ नामक एनजीओ की संस्थापक भी हैं, जिसका मकसद पीड़ित महिलाओं के लिए काम करना और उन्हें उनका हक दिलवाना रहा। उन्होंने क्रिमिनोलौजी की पढ़ाई की, फिर विक्टिमोलौजी और फोरेंसिक साइंस की तालीम हासिल की। इसके बाद उन्होंने वकालत की डिग्री हासिल की, ताकि जुल्म की शिकार औरतों को इंसाफ दिलवा सकें। अनुजा ने औनरेरी स्पैशल पुलिस ऑफिसर के तौर पर भी काम किया है, जो उनके लिए वाकई किसी चुनौती से कम नहीं था। अनुजा की खास बात ये है कि अपने काम के अलावा अपने परिवार का भी बखूबी ख्याल रखती हैं। साथ ही कामकाजी होने के साथ साथ अपने बच्चों की भी बेहतरीन परवरिश कर रही हैं। अनुजा कपूर को बेहतरीन कार्यों के लिए सिटी राइजिंग स्टार अवार्ड समारोह में ‘आउटस्टैंडिंग अचीवर अवार्ड’, ‘सर्वश्रेष्ठ क्रिमिनल साइकोलोजिस्ट अवार्ड’ और ‘सर्वश्रेष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता’ समेत कई एजाज़ों से अब तक नवाज़ा जा चुका है। 

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