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”ख़ूब लड़ी मर्दानी”-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: विनेश अगर तुम्हें लड़ता न देखा होताजंतर मंतर के मैदानों से लेकरपेरिस के अखाड़ों तकशायद कभी न जान पातेये सोने और चांदी के तमगेकितने बेमानी हैंइनमें वो चमक कहाँजो तेरे जज़्बे तेरी कूवत में हैतुम्हारी कुश्ती की बात तो ख़ैर क्या ही करे हमउसकी दहक तो उस रोज़ सुज़ाकी की आँखों में देखी […]

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