इस मेले की ख़ास बात
यह आयोजन बहुत ही पवित्र और फलदायी माना जाता है जिसकी वजह से इसमें करोड़ों श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं।
Kumbh Mela Dates: महाकुंभ मेला भारतीय धर्म और संस्कृति का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। यह मेला हर 12 साल में आयोजित होता है। यह आयोजन बहुत ही पवित्र और फलदायी माना जाता है जिसकी वजह से इसमें करोड़ों श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं। महाकुंभ का आयोजन केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का भी एक अद्वितीय उत्सव है। इस लेख में हम जानेंगे कि क्यों महाकुंभ हर 12 साल बाद होता है और इसे आयोजित करने की तारीख कैसे तय होती है।
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महाकुंभ क्यों 12 साल में एक बार होता है?

महाकुंभ मेला 12 साल के अंतराल पर होता हैक्योंकि इसका संबंध ज्योतिषीय गणनाओं और ग्रहों के विशेष गोचर से है। हिंदू धर्म के अनुसार कुंभ मेला का आयोजन तब किया जाता है जब बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा एक विशिष्ट खगोलीय स्थिति में होते हैं। इस समय का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है, जिसे ‘कुंभ योग’ कहा जाता है। महाकुंभ मेला का आयोजन बृहस्पति के कुंभ राशि में गोचर और सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर होता है। यह खगोलीय स्थिति हर 12 वर्षों में बनती है और जब ये ग्रह एक विशेष संयोग में होते हैं तो इसे महाकुंभ मेला आयोजित करने का उपयुक्त समय माना जाता है। इसके अलावा, पृथ्वी की कक्षा और सूर्य की गति के आधार पर, महाकुंभ के आयोजन का समय बहुत सटीकता से तय किया जाता है।
ग्रहों के गोचर का महत्व
महाकुंभ मेला,जिसमें लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। मोक्ष प्राप्ति का अवसर माना जाता है। इस आयोजन में आस्था का प्रमुख आधार ग्रहों की स्थिति है। हिंदू ज्योतिष के अनुसार जब बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा एक साथ खास ग्रह स्थितियों में होते हैं, तब इसे विशेष शुभ समय माना जाता है। इस समय संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मिलता है।
महाकुंभ की तारीख कैसे तय होती है?

महाकुंभ की तारीख को तय करने में मुख्य रूप से इन खगोलीय घटनाओं का ध्यान रखा जाता है। बृहस्पति ग्रह का कुंभ राशि में गोचर महाकुंभ मेला आयोजित करने का सबसे महत्वपूर्ण संकेत है। बृहस्पति ग्रह का कुंभ राशि में गोचर हर 12 वर्षों में होता है और इस समय को विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा का काल माना जाता है। महाकुंभ मेला तब होता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और चंद्रमा का गोचर भी एक विशेष खगोलीय स्थिति में होता है। इस समय की स्थिति ‘कुंभ योग’ के रूप में जानी जाती है। महाकुंभ मेला के आयोजन के लिए दिन भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। यह सुनिश्चित किया जाता है कि खास तारीखों पर ग्रहों की स्थिति इस तरह से हो कि श्रद्धालु उस समय पवित्र नदियों में स्नान कर सकें। इन तारीखों का निर्धारण हिंदू पंचांग और ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है।
महाकुंभ का धार्मिक महत्व
महाकुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और पवित्रता का जीवित उदाहरण है। महाकुंभ मेला का आयोजन उन खास खगोलीय संयोगों पर आधारित होता है, जो पृथ्वी पर ऊर्जा के एक सकारात्मक प्रवाह का कारण बनते हैं। इस समय, श्रद्धालु गंगा, यमुन और सरस्वती संगम में स्नान कर अपने पापों का प्रक्षालन करते हैं और आत्मा की शुद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। यह समय अत्यधिक शुभ माना जाता है, और इस दौरान मोक्ष की प्राप्ति के लिए बुरी आदतों को छोड़ने और अच्छे कर्म करने का संकल्प लिया जाता है।
