kal ki chinta mat karo
kal ki chinta mat karo

एक शहर में धर्मदत्त नामक सेठ रहता था। अपार सम्पत्ति का मालिक होने के बावजूद वह हमेशा उदास रहता। उसे अपनी भावी पीढ़ी की चिंता सताती रहती थी। एक बार भगवान महावीर उस शहर में आए।

गंगा के तट पर उनका प्रवचन हो रहा था। धर्मदत्त भी वहाँ पहुँचा। प्रवचनोपरान्त महावीर ने उसके मुखमंडल पर छाई उदासी का कारण पूछा तो वह बोला- मेरे पास इतनी दौलत है कि मेरी सात पुश्तें आराम से खा-पी सकें। लेकिन मुझे चिंता है कि मेरी आठवीं पीढ़ी का गुजर- बसर कैसे होगा? भगवान महावीर ने कहा- तुम्हारी चिंता मैं दूर किए देता हूँ। पहले एक काम करो।

आश्रम के पीछे झोपड़ी में एक मजदूर परिवार रहता है। उससे जाकर कहो कि अपनी आवश्यकता का आटा अपने पास रखकर बाकी तुम्हें दे दे। सेठ वहाँ गया और उसने वैसा ही कहा, मजदूर की पत्नी घर के अंदर से एक हंडिया ले आई और बोली ले जाओ भाई। मेरे पास इतना ही आटा है। सेठ ने कहा, नहीं तुम अपनी जरूरत का आटा रख लो, जो बचे उसे दो। वह बोली, अगर मैंने अपनी जरूरत का आटा रख लिया तो तुम्हें क्या दूंगी। मुझे जिसने आज दिया है, वह कल भी देगा। सेठ खाली हाथ लौट आया और महावीर को सारी बात बताई। भगवान महावीर बोले, सेठ। एक वह मजदूर स्त्री है, जिसे कल की भी चिंता नहीं है और एक। तुम हो कि अपनी आठवीं पीढ़ी की चिंता में उदास हो। क्या तुम्हारी आगामी पीढ़ी काहिल और निकम्मी होगी कि जिसके लिए तुम चिंतित हो। उस दिन से सेठ ने चिंता छोड़ दी।

सारः भविष्य के बारे में अनावश्यक चिंता न करें।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)