kal ka din kisane dekha
kal ka din kisane dekha

नगरसेठ जमनालाल महात्माजी के दर्शनार्थ आये। सेठ जी महात्माजी के चरणों में नमन करके बोले, ‘भगवान’ मैंने छह पीढ़ी के खाने-पीने की व्यवस्था तो कर ली, मगर सातवीं पीढ़ी की चिंता मुझे खाये जा रही है। ‘महात्मा ने उन्हें अगले दिन बुलाया। सेठजी भारी चिंता में पड़ गये। वे रात-भर सोचते रहे, क्या पता महात्माजी मुझसे दान-पुण्य के लिए भारी रकम माँग बैठें तो?

दूसरे दिन सेठ जी ने महात्मा के चरणों में सिर नवाया तो महात्मा बोले, ‘वत्स, गाँव में मंदिर के पास एक झाडू बनाने वाला परिवार रहता है। जाकर उन्हें एक दिन का आटा-दाल दे आना। ‘सेठ जी का कुम्हलाया चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा। वे घर से आटा-दाल लेकर उस परिवार के घर पहुँचे। आवाज सुनते ही एक बुढ़िया आयी। सेठ जी ने उसे जब आटा-दाल थमाया तो बोली, ‘बेटा, आज का दाना-पानी तो आ गया।’

सेठ जी ने आग्रह पूर्वक कहा, ‘कल के लिए रख लो। ‘बुढ़िया शांति से बोली, “आज क्या करूं? ईश्वर ने आज दिया है तो वह कल भी देगा। “यह कहकर उसने सेठजी को लौटा दिया। पूरे रास्ते सेठ जी के दिमाग में बुढ़िया का वाक्य गूंजता रहा। सातवीं पीढ़ी की चिंता से “कहीं ज्यादा मुखर थी वह गूंज!”

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)