भगवान विष्णु को मानने वाले ढेरों भक्त उन्हें गुरुवार को पूजते हैं। लेकिन उनको पूजने के कई और दिन भी होते हैं। इन दिनों में से एक दिन बेहद खास है। इस दिन विष्णु भगवान के सत्यनारायण अवतार की आराधना करना भी काफी फलदायी माना गया है। इस अवतार की पूजा करने के लिए सबसे शुभ समय अधिक मास की पूर्णिमा को माना गया है। भक्त तो इस दिन का इंतजार करते हैं कि इस दिन वो भगवान विष्णु की आराधना करेंगे और इच्छापूर्ति के लिए भगवान के सामने हाथ फैला लेंगे। इस दिन विष्णु भगवान से मांगी गईं हर मन्नत मान लीजिए पूरी होती ही है। इस व्रत की कथा भी आपको आश्वासन देती है कि आपके दुख भगवान हर लेंगे। अधिक मास की पूर्णिमा में व्रत के साथ दान-पुण्य करने और नदी में स्नान करने की भी प्रथा है। इस दिन भक्त श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा भी करते हैं। विष्णु जी के भक्तों के बीच इस व्रत की बहुत अहमियत है। माना ये भी जाता है कि इस व्रत को विधि-विधान से किया जाए तो लाभ दोगुना हो जाता है। चलिए इस व्रत के बारे में जान लीजिए- 
आधा लाल-आधा पीला-
इस व्रत को करने के लिए सुबह जल्दी उठकर नहाना है और फिर पूजा स्थल की सफाई भी करनी है। पूजास्थल की ओर पूर्वाभिमुख होकर बैठें। अब ऐसा आसन बिछाना है कि वो कपड़ा आधा पीला और आधा लाल हो। अब कपड़े के लाल तरफ मां लक्ष्मी को तो पीले तरफ भगवान विष्णु की प्रतिमा को बैठाएं। अगर आपके पास ऐसी तस्वीर है, जिसमें दोनों लोग साथ में हैं तो कपड़े के बीच में इसे रख दें। पूजन के लिए कुमकुम, हल्दी, अक्षत, रौली, चंदन, अष्टगंध का इस्तेमाल करें। प्रतिमा पर पीले और लाल फूलों की माला ही पहनाएं। माता लक्ष्मी को सुहाग का सामान भी चढ़ाएं। 
व्रत पूरा हुआ-
दिन भर व्रत रहते हुए फलाहार का सेवन करें। रात में पूर्णिमा के चांद की पूजा करें। पर उस दिन व्रत पूरा नहीं होगा। दूसरे दिन किसी ब्राह्मण दंपति को भोजन कराके दान-दक्षिणा दें फिर आपका व्रत पूर होगा। 
प्रसाद होगा ये-
किसी भी व्रत में प्रसाद को लेकर कई सारे नियम-कायदों होते हैं। इनका ध्यान रखते हुए ही प्रसाद बनाया जाता है। अधिक मास पुर्णिमा के लिए प्रसाद बनाते हुए भी बातें आपको ध्यान रखनी होंगी। साफ-सफाई का ध्यान रखा जाना तो जरूर है ही। प्रसाद लगाने से पहले माता लक्ष्मी को कमल का फूल जरूर चढ़ाएं। फिर मखाने की खीर प्रसाद के रूप में चढ़ाएं। देशी घी से बनी मिठाई भी  प्रसाद के रूप में लगाएं।