Kartik Purnima Festival of purity
हमारे शास्त्रों में पाप आदि से बचने के कई उपाय बताए गये हैं उन्हीं में से एक हैं कार्तिक स्नान। कार्तिक स्नान का क्या है महात्म्य? आइए जानते हैं लेख से।
जगमगाते मोटे काकड़े की घूमती ज्योत, पेटी की मधुर आवाज, तबले की और झांझ की सुंदर साथ और सारे स्त्री-पुरुषों के भक्तिपूर्ण मधुर स्वरों से ठीक साढ़े पांच बजे से देवालय का वातावरण भक्तिपूर्ण होता है, नाद गंगा में हर उपस्थित व्यक्ति नहा कर पवित्रता का अनुभव करता है।
नये वर्ष का प्रारंभ याने चैत्र महीना शुरू, पूरे 12 महीने, 30-30 दिन के ऐसा पूर्ण वर्ष होता है, हमारे हिन्दु धर्म का। अंग्रेजों का 1 जनवरी से नया साल इनके भी 12 महीने पर सब अनिर्बंध, कोई महीना 28 का, 29 का, कोई 30 का, कोई 31 का। अंग्रेजी में डॉक्टरेट किये से पूछा, ‘भाई साहब, सीधे पहले पांच महीने 31 के करते व बाकी के 30 के करते तो 365 दिन भी होते और सहज सुंदर सिस्टम होती।
वह बेचारा क्या कहेगा, अपनी-अपनी पद्धति है। मुसलमानों के भी 12 महीने हैं, मोहर्रम से शुरू होंगे 22 सितंबर से, नया हिजरी 1439 शुरू होगा। हमारे जैसा इनका भी हर महीना फिक्स है 29 दिन का महीना होता है। याने भिन्नता है पर तीनों धर्म में 12 महीने हैं वर्ष के हरेक के।’
अब हमारा चैत्र माह बसंत ऋतु में आरंभ होता है जो 18 फरवरी 2017 से प्रारंभ हुआ, फिर अप्रैल 19 से ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ, 21 जून से वर्षा ऋतु, 24 जुलाई से श्रावण माह है पर 22 अगस्त से मंगलवार से शरद ऋतु शुरू, 23 अक्टूबर से हेमंत ऋतु शुरू, ये हमारे कार्तिक स्नान इन्हीं दिनों में हैं।
बाद में 21 दिसंबर से शिशिर ऋतु प्रारंभ होगा। आज की पीढ़ी को महीने माने जनवरी, फरवरी और अंक माने सेवंटी फार, नाइंटी फाइव ही मालूम है नयी पीढ़ी को। उन्हें फे्रंडशिप डे, रोज डे मालूम है पर उन्नासी माने कितना, आश्विन कब आयेगा? व दशहरा कौन से हिन्दू महीने में है? नहीं मालूम। सो मौका मिला तो थोड़ा ऋतुओं का भी बता दिया अनजानों के लिये।
कार्तिक स्नान का कारण दो प्रकार से समझाते हैं। एक बिना कथा के प्रेक्टिकल, कि 4 जुलाई को देवशयनी एकादशी हुई। चातुर्मास भर भगवान सोयेंगे, अब उठते-उठते, दो चार दिन तो लग सकते हैं। फिर बीच में गणेश विसर्जन के बाद, श्राद्ध पक्ष भी आ गया 6 सितम्बर से पूर्णिमा तक, तीन माह पर हो चुके सो परमेश्वर को जागृत करने, देव उठनी तक की राह देखे बिना ही, कार्तिक में स्नान पूजा कर, उनके तिंद्रा भंग का प्रयास ही वास्तव में यह कार्तिक स्नान का प्रयोजन है। अब ये सही है या गलत ऐसी बहस करना बेमतलब है तो आइये इसकी कथा सुनिये।
नर्मदा किनारे जंगलों के बीच के देवताल नामक गांव में कार्यशेष नामक ब्राह्मïण युवा था। स्वभाव का गुस्सैल और अपनी शक्ति-बल का अति गर्व होने के कारण असुर जैसा हो गया था। क्षत्रियों को भी उसने नाराज किया था व सारे गांव वालों को भी, पर ब्राह्मïण होने से वह पूज्य था।
अन्य नहाते धोते, कर्म कांडी ब्राह्मïणों से नफरत करते-करते वह सबसे लड़ने लगा था। मगर महर्षि नारद जब वहां से नारायण-नारायण करते गुजरे तो कार्यशेष उनके सामने जा खड़ा हुआ। रुक! मुझसे बात कर तो नारद जी ने कहा कितना गंदा बास आ रहा है- पहले नहा कर आ।
तो क्रोध से कार्यशेष ने कहा, रुक तेरी चोटी खींचता हूं तेरी वीणा तोड़ता हूं रे ब्राह्मïण। इस पर हंसकर नारद जी ने उसे वीणा दी, कार्यशेष वीणा उठाकर, घुमाकर, जमीन पर पटका, उसे लगा फूट जायेगी, वीणा टूट जायेगी पर वीणा तो जमीन से उछलकर सीधा उसके सर में लगी।
बस तब और क्रोध से उसने वीणा को पटका। हर बार वीणा आकर पीठ में, पेट में, छाती पर वार करने लगी। जब कार्यशेष के मुंह से खून निकलने लगा तो उसने नारद जी से प्रार्थना की, कृपया मुझे बचाओ, वरना मैं मर जाऊंगा। तो नारद जी ने कहा, कल से रोज प्रात: काल 5 बजे स्नान कर, मंदिर जा पूजा कर और मोटे बाती से आरती करना, बोल वचन देता है।
तो कार्यशेष ने हाथ जोड़ वचन दिया तब वीणा नारद जी के हाथ में चली गई। जो गांव के लोग कार्यशेष की चिल्लाहट कर जमा हुये थे उन्हें भी नारद जी ने कहा, आज पूर्णिमा है, कल से कार्तिक माह है सो कल से सबका पवित्र कार्तिक का स्नान शुरू। और आशीर्वाद देकर वे चले गये। अगले महीने पूर्णिमा को वापस जा रहे तो सबने कहा, महाऋषि जी अब हम हर वर्ष यह कार्तिक स्नान का पर्व मनायेंगे। बस ये है कार्तिक स्नान की कहानी। इस पर भी बहस करना बेमानी है।
प्रात: उठकर स्नान कर ठीक पांच बजे मैं मंदिर पहुंच जाता हूं। पेटी, तबला, झांझ व काकड़ आरती की पुस्तक, माइक रेडी रहता है, स्नान कर पहुंचे सभी स्थान पर बैठ पहले ओंकार का नाद करते हैं व फिर श्लोक प्रारंभ होता है, गुर्रु ब्रह्म, गुर्रु विष्णु…. और उसके बाद भूपराग में प्रथम चरण प्रारंभ होता है जिसमें देवताओं को उठाया जाता है, ‘जागो मोहन प्यारे, उठा-उठा हो’ सकलीर के साथ हर देवता को उठने को कहा जाता है।
उसके बाद प्रारंभ होता है दूसरा चरण जिसमें एक सेंटीमीटर मोटी 7 इंच लंबी, पतले कपड़े की बेणी बनाकर, घी में डुबाकर सुखायी बत्ती यानी काकड़ा सबको बांटा जाता है। फिर प्रारंभ होता है आरती का दूसरा चरण, श्री गणेश की आरती से सुखकर्ता-दुखहर्ता से हर देवता की आरती, श्री राम, श्री कृष्ण, श्री हनुमान, मां दुर्गा, मां तुलसी, गौ माता की आरती होती है।
जगमगाते मोटे काकड़े की घूमती ज्योत, पेटी की मधुर आवाज, तबले की और झांझ की सुंदर साथ और सारे स्त्री-पुरुषों के भक्तिपूर्ण मधुर स्वरों से ठीक साढ़े पांच बजे से देवालय का वातावरण भक्तिपूर्ण होता है, नाद गंगा में हर उपस्थित व्यक्ति नहा कर पवित्रता का अनुभव करता है। तीसरे चरण में सभी, अपने हाथ के अधजले काकड़े को एक छोटे पात्र में जमा करते हैं व कपूर आरती, मंत्र-पुष्पांजली तथा ‘शांताकारम भुजगशयनम, कायेन वाचा मनसैंद्रीएरवा’ जैसे श्लोकों के साथ, देवता के चरणों में दूध अर्पण होता है, ‘घे दूध माधवा रे’ कहकर प्रार्थना होती हे।
सभी देवता की प्रदशिणा करते हैं और अंत में प्रसाद ले कर घर जाते हैं। लगातार एक विशिष्टï ग्रुप जिनके मन भक्तिपूर्ण है,ï महीना भर परस्पर मिलते हंै जो सहवास का आनंद भी मिलता है, देवता भी मिलते हैं याने स्वार्थ भी और परमार्थ भी। आप सबसे प्रार्थना है काकड़ आरती व कार्तिक स्नान का आनंद ले, काया व मन दोनों को पवित्र करें।
