“माता पिता” भारतीय संस्कृति के दो ध्रुव है और इन्ही दो स्तम्भों पर हमारी,भारतीय संस्कृति,मज़बूती से स्थिर है.माँ वात्सल्य,ममता और अपनेपन,की प्रतिमूर्ति है.आकाश के समान विशाल ,सागर सामान अंत:करंण,इन सबका संगम है .सारे जग की सर्वसम्पन्न,सर्वमांगल्य,सारी शुचिता फीकी पड़ जाती है माँ के सामने.और पिता सही अर्थों में भाग्यविधता .जीवन को योग्य दिशा दिखलाने वाला,महत्वपूर्ण […]