Posted inप्रेगनेंसी

Bedrest During Pregnancy: जब प्रेगनेंसी के दौरान डॉक्टर दे दे बेडरेस्ट की सलाह

Bedrest During Pregnancy: बिस्तर पर मैगजीन के ढेर व टी.वी. का रिमोट हाथ में थामे लेटने की कल्पना कितनी अच्छी लगती है, लेकिन ऐसा तब तक ही होता है जबकि यह बेडरेस्ट निर्देश के रूप में न हो।बिस्तर पर पड़ते ही आपको पता चल जाता है कि यह कोई मजाक नहीं है। आप सरपट भाग […]

Posted inप्रेगनेंसी

दूसरी बार डैड बनने की ख्वाहिश है तो इन बातों का पति रखे ख्याल

गर्भधारण करवाने से पहले डैड क्या करें :- डॉक्टर से मिलें :- अपनी शारीरिक जाँच कराके तय कर लें कि आप टेस्टीकल सिस्ट,ट्यूमर या डिप्रेशन जैसे किसी रोग से ग्रस्त नहीं हैं या आपको ऐसा कोई रोग नहीं है जो आपके साथ की स्वस्थ गर्भावस्था में रुकावट पैदा कर सके। किसी भी तरह की दवा लेने से पहले पता कर लें कि उसका असर आपकी यौन क्षमता पर तो नहीं पड़ेगा। कई बार उनकी वजह से स्पर्म की संख्या घट भी जाती है, उम्मीद है कि आप ऐसा तो नहीं चाहेंगे। जैनेटिक स्क्रीनिंग कराएँ, अगर जरूरत हो तो:- यदि परिवार में पहले ऐसा हो चुका है तो गर्भाधारण से पहले जैनेटिक स्क्रीनिंग अवश्य करवा लें। बर्थ कंट्रोल के तरीके छोड़ दें :- यदि आपकी पत्नी बर्थ कंट्रोल का कोई तरीका अपना रही है या कोई गोलियाँ ले रही है तो वह सब बंद कर दें। कम से कम दो मासिक चक्र खुल कर होने दें। यदि चाहें तो उस दौरान स्पर्मीसाइड के बिना कंडोम इस्तेमाल करें। आहार में सुधार :- आहार जितना बेहतर होगा, गर्भधारण के लिए स्पर्म भी उतने ही स्वस्थ होंगे। गर्भधारण से पूर्व माता-पिता, दोनों को ही पौष्टिक आहार लेना चाहिए। कोशिश करें कि आपके आहार में विटामिन सी, ई, जिंक, कैल्शियम व विटामिन डी की भरपूर मात्रा हो। गर्भधारण करवाने से पहले विटामिन-मिनरल का सप्लीमेंट लें। इनमें थोड़ा फौलिक सीसा भी होगा तो आपके काम आएगी। यदि आप मधुमेह के रोगी हैं तो ब्लडशुगर नियंत्रित कर लें। जीवनशैली में सुधार :- शोध व अध्ययनों से पता चला है कि अगर गर्भधारण करवाने से पहले पुरुष साथी किसी भी तरह के ड्रग्स लेता है तो इससे उसकी यौन क्षमता प्रभावित होती है। ड्रग्स व शराब से न केवल स्पर्म की संरचना व गुणवत्ता प्रभावित होती है बल्कि टेस्टोसेहरान का स्तर भी घट जाता है। शिशु में जन्मजात दोष भी आ सकते हैं। शिशु का वजन घट सकता है। यदि आप ड्रग्स व शराब छोड़ सकें तो आपके महिला साथी के लिए भी ऐसा करना आसान हो सकता है। धूम्रपान न करें :- धूम्रपान करने से स्पर्म की संख्या घटती है तथा गर्भधारण करवाने में कठिनाई हो सकती है। यह धुँआ आपके आने वाले शिशु व महिला साथ के लिए भी खतरनाक है इसलिए इससे बचाव करना जरूरी है। इनसे बचें :- जी हां, पेंट, वार्निश, मैटल डीग्रीसर व पेस्टीसाइड आदि में ऐसे हानिकारक रसायन पाए जाते हैं, जिनके कारण आपको गर्भ धारण करवाने में कठिनाई हो सकती है। इनसे बचें या जहाँ तक संभव हो, इनके अधिक निकट संपर्क में न आएँ।  उन्हें रखें शीतल :- जी हाँ, हम आपके वृषणों (टेस्टीकल) की बात कर रहे हैं। यदि इन्हें जरूरत से ज्यादा गर्माहट मिले तो भी स्पर्म की संख्या घट सकती है। इन्हें बाकी शरीर के तापमान से थोड़ा ठंडा रखना ही बेहतर होता है। हॉट टब, हॉट बाथ, सोना बाथ, टाइट कपड़े व अंतर्वस्त्रों का ज्यादा प्रयोग न करें। सिंथैटिक पेंट व अंडरवियर भी गरमी के दिनों में ज्यादा गर्म होते हैं। उन्हें रखें सुरक्षित :- यदि आप फुटबॉल, सॉकटए बास्केट बॉल या घुड़सवारी जैसे खेल खेलते हैं तो शरीर के इन नाजुक अंगों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें। जरूरत से ज्यादा साईकलिंग भी नुकसान पहुँचा सकती है क्योंकि उसमें लगातार निचले अंगों पर दबाव पड़ता है। यदि वह हिस्सा साइकिल चलाते समय थोड़ा सुन्न सा लगे तो गर्भधारण के दिनों में उसका इस्तेमाल न करना ही बेहतर होगा। परेशानी बढ़ने पर डॉक्टर के पास जाने से न घबराएँ।  शांत रहें :– यह आप दोनों के लिए बहुत अहमियत रखता है। तनाव से न केवल काम क्षमता घटेगी बल्कि स्पर्म की संख्या में भी कमी आएगी। इस बारे में ज्यादा न सोचें, सब कुछ प्राकृतिक तौर पर सहज हो जाएगा। इसके बाद…….? एक नई शुरूआत का वक्त है। गर्भधारण से पूर्व की तैयारी होने के बाद गर्भधारण वाले अध्याय से पढ़ना शुरू कर दें और इसका पूरा आनंद लें! यह भी पढ़ें – दूसरी बार कर रही हैं प्रेगनेंसी प्लान तो पहले क्रॉनिक रोगों पर पाएं काबू क्रॉनिक रोगों पर काबू पाएं

Posted inप्रेगनेंसी

पहली प्रेगनेंसी के बाद दूसरे शिशु की ऐसे करें तैयारी

कितना अच्छा होता अगर हम अपनी मर्जी से पूरी जिंदगी को प्लान कर पाते। अक्सर हमारी बनी-बनाई योजनाओं के पुल मिनटों में टूट कर बिखर जाते हैं और हम उन पर जरा भी नियंत्रण नहीं कर पाते।कितना अच्छा होता कि हम पूरी योजना से गर्भधारण करते और शिशु को जन्म देते,इस तरह हमें जीवनशैली में आवश्यक सुधार लाने का भी पूरा मौका मिल जाता लेकिन ऐसी सुविधा कितनी महिलाओं को मिल पाती है। मासिक धर्म की गड़बड़ी व बर्थ कंट्रोल के उपाय वगैरह कारणों से ऐसा करना संभव नहीं हो पाता। इस किताब में भी गर्भधारण से पूर्व की तैयारी पर जोर दिया गया है हालांकि सभी महिलाएँ शुरूआत से ही इतना ध्यान न रख पाने के बावजूद स्वस्थ शिशुओं को जन्म देती हैं। वैसे अब तो परिवार नियोजन की तकनीकें काफी कारगर होती जा रही हैं इसलिए आप बड़े आराम से अपनी प्रेगनेंसी की पूरी योजना बना सकती हैं। ज्यों ही इस बारे में सचेत हो,उसी दिन से अपने शरीर पर ध्यान देना शुरू कर दें। इस समय की गई देखभाल न केवल आपकी संतान, बल्कि उसकी संतान के लिए भी फायदेमंद होगी। भावी माता-पिता कई तरह से प्रजनन क्षमता बढ़ा सकते हैं ताकि भावी शिशु पूरी तरह स्वस्थ हो। यदि आप पहले से ही गर्भवती हो चुकी हैं, तो भी घबराएँ नहीं, बस यह अध्याय छोड़ कर पहले अध्याय से पढ़ना शुरू कर दें। गर्भधारण करने से पहले माँ क्या करे संपूर्ण शारीरिक जांच :- अपने पारिवारिक डॉक्टर से मिलें। पूरी जांच से पता चल जाएगा कि पहले से ही किसी इलाज की जरूरत तो नहीं है। दंत चिकित्सक से मिलें :- जी हाँ डेंटिस्ट से मिल कर दांतों की अच्छी तरह जांच करवाएँ।एक्स-रे, फिलिंग, दाँत की सर्जरी वगैरह, जो भी करवाना हो इसी समय करवा लें क्योंकि गर्भावस्था के दौरान यह सब नहीं हो पाएगा।आपके मसूड़े भी स्वस्थ होने चाहिए। अध्ययनों से पता चला है कि मसूड़ों की बीमारी से प्रीटर्मबर्थ का खतरा बढ़ जाता है। घर में ही दाँतों व मसूड़ों की पूरी देखभाल शुरू कर दें। डॉक्टर से मिल कर गर्भधारण से पूर्व जांच करवाएँ :- इस समय हड़बड़ाहट नहीं है इसलिए आसानी से डॉक्टर चुना जा सकता है।अपने आसपास तलाशें कि कौन सा डॉक्टर आपके लिए बेहतर चुनाव हो सकता है। फिर उनसे मुलाकात का समय लें चाहे आप किसी दाई से ही प्रसव क्यों न कराना चाहें, पर इस समय डॉक्टर से जाँच करा लेना आवश्यक है।यदि आप जांच के बाद हाई-रिस्क ग्रुप में नहीं आतीं तो अपनी मर्जी से डॉक्टर, दाई व प्रसव का तरीका चुन सकती हैं। यदि आप हाई-रिस्क ग्रुप में हैं तो माँ-शिशु के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए किसी विशेषज्ञ की सेवाएँ लेना ही बेहतर होगा। अपनी प्रेगनेंसी हिस्ट्री पर नज़र डालें :- कहीं आपको पहले गर्भपात या समय से पहले प्रसवजैसी शिकायत तो नहीं रही? या फिर गर्भावस्था में कोई दूसरी जटिलता तो नहीं आई थी।डॉक्टर से पूछें कि इस विषय में क्या-क्या सावधानी बरती जा सकती है। अपनी माँ की प्रेगनेंसी हिस्ट्री पर नज़र डालें :- पता लगाएँ कि आप भी डैश बेबी तो नहीं। 1971 तक गर्भपात रोकने के लिए डाईथाईइज़टिलसेजिसट्रल नामक जो दवा दी जाती थी वह प्रजनन अंगों को नुकसान पहुँचा सकती थी। यदि आप की मम्मा ने वो दवा ली थी तो आपको भी योनि और गर्भाशय मुख की कोलोपोस्कोपी करा लेनी चाहिए। टेस्ट करवाएँ :-  गर्भधारण से पूर्व निम्नलिखित टेस्ट कराने की सलाह दी जा सकती है। हीमोलोबिन या हीमेटोक्रिट (अनिमिया की जांच) आर4 फैक्टर, यदि आप निगेटिव है तो साथी की जॉच होगी। यदि वे भी नेगेटिव हुए तो फिर ज्यादा सोचने की कोई बात ही नहीं है। रुबेला टिटर बैरीमेला टिटर मधुमेह की जाँच के लिए मूत्र ट्यूबरक्लोस्थिति हेपेटाइटिस बी‒यदि आप हाई रिस्क समूह में आती हैं। साइटोमिगेलो वायरस-एंट्टीबॉज़ (यदि यह समझाया हो तो इलाज के छः माह बाद ही गर्भधारण करें ) टॉमनोप्लाज़मोसिस टिटर (अगर आपकी बिल्ली कच्चा माँस खाती है या आप दस्तानों के बिना बागवानी करती हैं अथवा पॉश्चराइज़ फ्री दूध लेती है, इस पुस्तक में पहले चर्चित सुझावों पर अम्ल करें। थायराइड (इससे गर्भावस्था व संतान की मानसिक क्षमता प्रभावित हो सकती है।गर्भधारण से पूर्व इसकी जाँच अवश्य कराएँ । यदि परिवार में किसी को पहले यह रोग हो चुका है, तब तो यह और भी जरूरी हो जाता है। एस. टी. डी. (यौनजनित रोग) सभी गर्भवती महिलाओं को एस. टी. डी. जाँच करानी चाहिए, जिनमें सिफलिस, गोनास्यि क्लामीडिया, हर्मीज, ध्यूमन पैपीलोमा वायरस, वैक्टीरियल बैंजीनेसिस, गारडनरेलावैजनीटिस व एच. आई. वी शामिल हैं।चाहे आप अपने लिए ऐसा सोच भी नहीं सकतीं, फिर भी जाँच कराना बेहतर होगा। इलाज कराएँ :- अगर टेस्ट में किसी रोग का पता चले तो इलाज कराने में देर न करें। किसी भी तरह की सर्जरी या मेडीकल इलाज से न हिचकिचाएँ। अब आपको जननांगों से जुड़ी छोटी सी भी तकलीफ का भी इलाज करा लेना चाहिए; जैसे‒  यूटेराइन पोलिप्स, फायब्राइस, सिस्ट, ट्यूमर एंडोमैट्रिओसिस पेल्विक से जुड़े रोग मूत्राशय संक्रमण यौन जनित रोग यदि किसी भी मामले में सर्जरी करानी पड़े तो उसके छः माह बाद ही गर्भधारण करें। टीकाकरण पूरा कराएँ :- यदि आपने पिछले दस वर्षों में टिटनेस‒डिपथीरिया बूस्टर नहीं लिया तो अवश्य लें। एम.एम.आर. वैक्सीन लें तो गर्भधारण से पूर्व तीन महीने तक इंतजारकर लें। हैपाटाइटिस की के बारे में भी सचेत रहें व सही समय पर चिकित्सा कराएँ। यह भी पढ़ें –डिलीवरी के बाद मां को हो सकता है संक्रमण

Posted inप्रेगनेंसी

डिलीवरी के बाद मां को हो सकता है संक्रमण

शिशु जन्म के बाद संक्रमण यह क्या है? कई बार महिलाओं को शिशु जन्म के बाद संक्रमण भी हो जाता है क्योंकि आपके शरीर के भीतरी अंग पूरी तरह से बंद नहीं हुए होते। किसी में टांके नरम भी हो सकते हैं।कैथीटर की वजह से ब्लैडर या किडनी में संक्रमण हो सकता है। गर्भाशय में छूटे प्लेसेंटा के अंश से भी संक्रमण हो सकता है लेकिन इनमें से एंडोमैट्रीटिस (यूटरस की लाइनिंग) का संक्रमण सबसे ज्यादा सामान्य है। यदि इन संक्रमणों का इलाज न हो पाए तो ये खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि ये काम करने की सारी ऊर्जा सोख लेते हैं व आपको कमजोरी घेर लेती है। आप प्रसव के बाद आसानी से संभल नहीं पातीं व शिशु की ओर पूरा ध्यान नहीं दे पातीं। यह कितना सामान्य है?  करीब 8 प्रतिशत गर्भावस्थाओं में संक्रमण होता है सी-सैक्शन या मैम्ब्रेन का रप्चर हुआ हो तो संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? वे निम्नलिखित हैं‒   बुखार   संक्रमित हिस्से में दर्द   बदबूदार स्राव   सर्दी लगना आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं? यदि 100 से ज्यादा उससे तेज बुखार है तो डॉक्टर को बुलाने में देर न करें। एंटीबायोटिक दवाएँ लेने के साथ-साथ भरपूर आराम भी करें।तरल पदार्थों की मात्रा बढ़ा दें। स्तनपान करा रही हैं तो डॉक्टर को बता दें ताकि वे आपके लिए दवा चुनते समय सावधानी रखें। क्या इससे बचाव हो सकता है? थोड़ा साफ-सफाई का ध्यान रखें। जख्मों पर दवा लगाएँ। रक्तस्राव में टैंपून की बजाए पैड लगाएं।इस तरह आप निश्चित ही संक्रमण से अपना बचाव कर सकती हैं। यह भी पढ़ें –शिशु को पर्याप्त पोषण न मिलने पर बन सकती है आई.यू.जी.आर की स्थिति

Posted inप्रेगनेंसी

जब होने लगे प्रसव के बाद अत्यधिक ब्लीडिंग

प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव यह क्या है?  डिलीवरी के बाद होने वाला रक्तस्राव तो सामान्य है। लेकिन कई बार गर्भाशय जन्म के बाद इतना नहीं सिकुड़ता, जितना उसे सिकुड़ना चाहिए जिससे उस जगह से भारी रक्तस्राव होने लगता है, जहाँ से प्लेसेंटा जुड़ा था। यदि गर्भाशय में प्लेसेंटा का अंश रह जाए, तो भी ऐसा हो सकता है। इसकी वजह से डिलीवरी के फौरन बाद संक्रमण भी हो सकता है। यह कितना सामान्य है?  यह 2 से 4 प्रतिशत गर्भावस्था मामलों में होता है। यदि लंबे प्रसव काल के बाद, गर्भाशय जगह पर न आए मल्टीपल प्रेगनेंसी की वजह से ढीला पड़ गया हो शिशु बड़ा हो या एम्नियोटिक द्रव्य की अधिकता हो, प्लेसेंटा का आकार असामान्य हो, कोई फायब्रायड हो या डिलीवरी के समय माँ काफी कमजोर हो तो पोस्टपार्टम हेमरेज का खतरा हो सकता है।   इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? इसके निम्नलिखित संकेत हो सकते हैं :-   लगातार कई घंटे तक भारी रक्तस्राव   कुछ दिन बाद भी लाल रक्त स्राव होता रहे   बड़े-बड़े थक्के निकलें   पेट में निचले हिस्से में सूजन या दर्द बना रहे।   खून की कमी की वजह से बेहोशी सिर चकराना या सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या पैदा हो सकती है।   आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं  जब प्लेसेंटा की डिलीवरी हो जाएगी तो डॉक्टर जांच से पता लगाएँगे कि उसका कोई अंश भीतर तो नहीं रह गया। वे आपको पिटोसिन देंगे या गर्भाशय की मालिश करेंगे ताकि वह सिकुड़ जाए व रक्तस्राव ज्यादा न हो। स्तनपान कराने से भी गर्भाशय संकुचन में मदद मिलेगी। 

Posted inप्रेगनेंसी

शिशु का जन्म व उसके बाद होने वाली जटिलताएँ

इनमें से कई समस्याएँ प्रसव या डिलीवरी से पहले सामने नहीं आतीं इसलिए आप भी उन्हें पहले से पढ़कर चिंतित न हों। ये परेशानियाँ शिशु जन्म के बाद होती हैं। यहाँ इन्हें इसलिए दिया गया है ताकि आपको इनमें से कोई दिक्कत हो तो आपको उसके बारे में पूरी जानकारी हो। फैटल डिसट्रेस यह क्या है? जब गर्भाशय में शिशु के पास ऑक्सीजन की भरपाई नहीं होती तो इसे फैटलडिसट्रेस कहते हैं ऐसा प्रसव से पहले या इसके दौरान हो सकता है। ऐसा अनियंत्रित मधुमेह,प्रीक्लैंपसिया, एम्नियोटिक द्रव्य की कम या अधिक मात्रा, गर्भानाल के घटने या बढ़ने या माँ द्वारा रक्त नलिकाओं पर दबाव पड़ने की स्थिति में ऐसा हो सकता है। इससे शिशु को ऑक्सीजन की कम मात्रा मिलने लगती है। ऑक्सीजन की घटी मात्रा या शिशु की हृदयगति से तत्काल सी-सैक्शन करना पड़ता है वरना उसके लिए खतरा बन सकता है। यह कितना सामान्य है? हर 100 में से 1 मामला ऐसा हो ही जाता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? यदि शिशु को पूरी तरह ऑक्सीजन नहीं मिलेगी तो उसकी हृदय गति घट जाएगी, उसकी हलचल में कमी आएगी तथा वह डिलवरी के समय गर्भाशय में ही मल (मैकोनियम) कर देगा। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? यदि शिशु के हलचल में कमी महसूस हो तो अपने डॉक्टर को बताएँ। अस्पताल में फैटल मॉनीटर की मदद से जांच होगी। यदि इसके लक्षण हुए तो आपको ऑक्सीजन दी जाएगी व आई बी. लगाया जाएगा ताकि शिशु की हृदय गति सामान्य हो सके। बाईं ओर लेटने से भी रक्त नलिकाओं पर दबाव घटेगा। यदि ये तकनीकें काम न आईं तो डिलीवरी करनी होगी।  कॉर्ड प्रोलैप्स यह क्या है? कॉर्ड प्रोलैप्स तब होता है, जब गर्भनाल सर्विक्स से फिसलकर, बर्थ कैनाल में आ जाती है। ऐसी अवस्था में डिलीवरी के दौरान शिशु को ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।   यह कितना सामान्य है? 300 में से किसी एक मामले में ऐसा होता है, कुछ गर्भावस्था जटिलताओं से प्रोलैप्स का खतरा बढ़ जाता है।जिनमें हाइड्रमजिमोस, ब्रीच या प्रीमैच्योर डिलीवरी को शामिल कर सकते हैं। यह दूसरे जुड़वां की डिलीवरी के समय भी हो सकता है। यदि शिशु का सिर बर्थ कैनाल में सैट होने से पहले ही पानी की थैली फट जाए, तो भी खतरा बढ़ जाता है।   इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? यदि यह नाल योनि तक आ जाए तो आप इसे देख सकती हैं या छू सकती हैं। यदि यह शिशु के सिर के नीचे दबेगी तो फैटल मॉनीटर पर फैटल डिस्ट्रेस के लक्षण दिखेंगे।   आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? इस बारे में पहले से जानने का कोई उपाय नहीं है। फैटल मॉनीटर के बिना तो इस बारे में पता नहीं चल सकता। यदि आपको घर में ऐसा एहसास हो तो अपने हाथों व घुटनों के बल बैठें ताकि पेल्विक क्षेत्र पर ज्यादा दबाव न पड़े।यदि वह योनि मार्ग से दिखे तो उसे साफ तौलिए से संभालें। अपने शरीर का निचला हिस्सा ऊंचा करके लेटें। डॉक्टर आपको आपकी अवस्था के हिसाब से किसी दूसरी मुद्रा में लेटने को कह सकते हैं। इसके बाद जल्दी से सी-सैक्शन करना होगा। शोल्डर डिस्टोकिया यह क्या है? इस अवस्था में लेबर या डिलीवरी के दौरान शिशु के दोनों कंधे मां की पेल्विक बोन में फंस जाते हैं व शिशु बर्थ कैनाल में नीचे की ओर जाने लगता है।यह कितना सामान्य है? ऐसा अक्सर अधिक वजन वाले शिशुओं में होता है। अनियंत्रित या गैस्टेशनल मधुमेह से ग्रस्त माँओं को इस स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। यदि आपकी डिलीवरी दिए गए समय के बाद भी न हो या आपके साथ पहले भी ऐसा हुआ हो तो दोबारा होने का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि इन कारणों के न होने पर भी प्रसव के दौरान शोल्डर डिस्टोकिया हो सकता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? ऐसी अवस्था अचानक ही प्रसव के दौरान पैदा होती है। आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं? माँ के पेट पर दबाव देकर या उसकी स्थिति बदलकर कई तकनीकें अपनाई जाती हैं ताकि शिशु की सुरक्षित डिलीवरी हो सके। क्या इससे बचाव हो सकता है? अपने वजन का ध्यान रखें। शिशु का वजन भी जरूरत से ज्यादा न बढ़ने दें। मधुमेह को नियंत्रित रखें।प्रसव के दौरान ऐसी पोजीशन बनाएं ताकि शोल्डर डिस्टोकिया की नौबत ही न आए। सीरियस पैरीनियल टीयर्स यह क्या है? जब डिलीवरी के दौरान शिशु का बड़ा सिर बाहर आता है तो योनि व गुदा मार्ग के बीच वाले हिस्से पर दबाव की वजह से कट आ सकते हैं। फर्स्ट डिग्री टीयर्स में सिर्फ त्वचा फटती है। सैकेंड डिग्री टीयर्स में त्वचा के साथ योनि की मांसपेशियाँ भी फटती हैं लेकिन गंभीर टीयर्स में योनि की त्वचा, उत्तम व पैरीनियल की मांसपेशियाँ भी फटती हैं। इनसे प्रसव के बाद काफी तकलीफ होती है। तथा पेल्विक क्षेत्र से जुड़ी कई समस्याएं भी हो जाती हैं।गर्भाशय के मुख पर भी कट आ सकते हैं। यह कितना सामान्य है? योनिमार्ग से होनेवाली डिलीवरी में इसका थोड़ा बहुत खतरा तो होता ही है। हालांकि गंभीर किस्म के कट ज्यादा महिलाओं को नहीं लगते। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? रक्तस्राव होता है। जख्म भरने पर हल्की खारिश व दर्द होता है। आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं? ऐसे कट में टांके लगा दिए जाते हैं। इसके लिए पहले लोकल एनस्थीसिया देते हैं। यदि चीरा लगा है तो कटि स्नान, आइसपैक, एंटीसैप्टिक स्प्रे, दवा व जख्म को खुली हवा में रखने से जल्दी आराम आ जाएगा। क्या इससे बचाव हो सकता है? प्रसव से पहले कीगल व्यायाम व पैरीनियल की मालिश से उस हिस्से को ज्यादा बेहतर स्ट्रैच कर सकते हैं। प्रसव के दौरान गर्म सेंक व मालिश भी बेहतर रहेंगे। यूटेराइन रप्चर यूटेराइन की दीवार में यदि पहले किसी सर्जरी, सी-सैक्शन फायब्रायड रिमूवल की वजह से कमजोर बिंदु हो लेबर और डिलीवरी के दौरान उस हिस्से में चीरा आ सकता है। इससे पेट से अनियंत्रित रक्तस्राव होने लगता है तथा उस हिस्से की तरफ जाने लगता है, जहाँ से प्लेसेंटा पेट में प्रवेश करता है। यह कितना सामान्य है? यदि किसी महिला को पहले सी-सैक्शन या यूटेराइन रप्चर न हुआ हो तो उसे ऐसी दिक्कत नहीं होती जो महिलाएँ सी-सैक्शन के बाद योनि मार्ग से डिलीवरी करवाती हैं या जिनमें भ्रूण की स्थिति या सामान्य प्लेसेंटा की जटिलता होती है, उनके लिए खतरा बढ़ जाता है। जिन महिलाओं के छः से अधिक बच्चे हों या वे मल्टीपल प्रेगनेंसी में हों,उनके लिए भी खतरा होता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? पेट में तेज दर्द होता है। फैटल मॉनीटर पर शिशु की घटती हृदयगति दिखने लगती है। माँ का रक्तचाप व हृदय गति घट जाते हैं, सांस लेने में तकलीफ होती है तथा बेहोशी होने लगती है। आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं? यदि आप पहले सी-सैक्शन या सर्जरी करवा चुकी हैं, जिस दौरान यूटेराइन वॉल पूरी तरह काटी गई थी तो लेबर के सही तरीके का चुनाव करना होगा यदि ऐसा भयानक हो जाए तो सी-सैक्शन के बाद गर्भाशय की मरम्मत की जरूरत होती है व आपको संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं। क्या इससे बचाव हो सकता है? जिन महिलाओं को इसका खतरा हो, उनके लिए फैटल मॉनीटरिंग जरूरी हो जाती है ताकि किसी भी जटिलता का पता लग सके। यदि वे पहले सी-सैक्शन के बाद योनि मार्ग से डिलीवरी कराने जा रही हैं तो उनका प्रसव आरंभ दवाओं से नहीं कराना चाहिए। यूटेराइन इन्वर्ज़न यह क्या है? ऐसा तब होता है जब यूटेराइनवॉल टूट जाती है तथा अंदर वाला हिस्सा बाहर की ओर आ जाता है। कई बार यह सर्विक्स व योनि से भी बाहर को उभर आता है। हालांकि इसके सभी कारणों का पता नहीं चल सका लेकिन इसका इलाज न होने पर हेमरेज और सदमा लग सकता है। हालांकि ऐसा भी संभव नहीं कि कोई इसे देखने के बावजूद अनदेखा कर देगा व इलाज नहीं कराएगा। यह कितना सामान्य है? ऐसा 2000 में से किसी 1 मामले में होता है। यदि पिछली डिलीवरी में ऐसा हो चुका हो, या प्रसव का समय लंबा खिंच जाए, प्रीटर्म लेबर रोकने की दवाएँ दी जाएँ या पहले कई योनिमार्ग से डिलीवरी हो चुकी हो तो इसका खतरा बढ़ जाता है। यदि गर्भाशय जरूरत से ज्यादा ढीलाहो तो यह भी बाहर को आ सकता है या शिशु जन्म के तीसरे चरण में कॉर्ड को ज्यादा जोर से खींचा जाए। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं?   पेट में दर्द   तेज रक्तस्राव   माँ को सदमे के संकेत   कई बार गर्भाशय भी योनि से दिखने लगता है। आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं ? खतरे के कारण पहचानने के बाद डॉक्टर को उनकी सूचना दें। यदि आपके साथ ऐसा हुआ तो डॉक्टर उस हिस्से को हाथों से सही जगह बिठाने की कोशिश करेगा तथा मांसपेशियों के संकुचन के लिए दवा देगा। यदि यह तरीका काम न आए तो सर्जरी करनी पड़ सकती है।आपको रक्त की कमी के लिए रक्त भी चढ़ाना पड़ सकता है। संक्रमण रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाएंगे। क्या इससे बचाव हो सकता है? यदि आपको पहले भी ऐसा हो चुका है तो डॉक्टर को अवश्य बताएँ क्योंकि आपके लिए इसका ज्यादा खतरा हो सकता है। यह भी पढ़ें –प्लेसेंटा प्रीवीया और प्लेसेंटल एबरप्शन, दोनों […]

Posted inप्रेगनेंसी

गर्भावस्था के 20वें सप्ताह में हो सकता है ऊंचा रक्तचाप और यूरीन में आने लग सकता है प्रोटीन

प्रीक्लैंपसिया यह क्या है? यह अक्सर गर्भावस्था में 20 वें सप्ताह के बाद होता है इसमें रक्तचाप काफी ऊँचा हो जाता है, जरूरत से ज्यादा सूजन हो जाती है व यूरीन में प्रोटीन आने लगता है। आप जानना चाहेंगी- सही देखभाल से प्रीक्लैंपसिया का इलाज हो सकता है। गर्भवती का रक्तचाप भी सामान्य स्तर का […]

Posted inप्रेगनेंसी

चौथे महीने में जी मिचलाना मॉर्निंग सिकनेस नहीं बल्कि इस तकलीफ के हो सकते हैं लक्षण

हाइपरमेसिस ग्रेवीडेरम यह क्या है? यह मार्निंग सिकनेस से मिलता जुलता है लेकिन इसमें स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर होती है। यह 12 से 16 सप्ताह के बीच होता है हालांकि यह पूरी गर्भावस्था में भी जारी रह सकता है। इसकी वजह से वजन घटता है‒ कुपोषण होता है व डीहाइड्रेशन हो सकता है। इसमें अस्पताल ले जाकर आई वी फ्ल्यूड व एंटीनाजिया दवा देनी पड़ती है क्योंकि उल्टी व जी मिचलाना काफी गंभीर होता है। इस इलाज के बाद ही आपका शिशु सुरक्षित हो सकता है। यह कितना सामान्य है? 200 मामलों में से किसी एक मामले में ऐसा होता है। पहली बार माँ बनने वाली महिलाओं में यह तकलीफ ज्यादा पाई जाती है। इसके अलावा छोटी उम्र की, मोटी, मल्टीपल, गर्भावस्था वाली महिलाओं या फिर उन महिलाओं में ज्यादा होता है, जिन्हें पिछली गर्भावस्था में भी ऐसा हो चुका हो। भावनात्मक तनाव से इसका खतरा और भी बढ़ सकता है। एंडोक्राइन असंतुलन व विटामिन बी की कमी भी इसकी एक वजह है। इसमें संकेत व लक्षण क्या हैं?   बहुत ज्यादा जी मिचलाना व उल्टी होना   कोई भी ठोस खाद्य पदार्थ हजम न होना   डीहाइड्रेशन के लक्षण   5 प्रतिशत वजन में कमी   उल्टी में खून आना आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं?  यदि लक्षण ज्यादा न हों तो मॉर्निंग सिकनेस के उपचार की तरह घरेलू उपाय अपनाए जाते हैं। अदरक, एक्यूपंचर व एक्यूप्रेशर से बात न बने तो डॉक्टर से दवा लें। अगर फिर भी आराम न आए और वजन तेजी से घटे तो अस्पताल जाने की नौबत आ सकती है, वहाँ आपको एंटीनॉज़िमा दवा दी जाएगी। फिर आपको अपनेखान-पान पर ध्यान देना होगा। मिर्च-मसालेदार भारी भोजन से दूर रहना होगा। पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ लें। खाने को कई हिस्सों में बाँट लें। कुछ समय बाद थोड़ा-थोड़ा खाएँ। आप जानना चाहेंगी हाइपरमोसिस की वजह से शिशु पर कोई असर नहीं होता और न ही उनके स्वास्थ्य पर कोई बुरा असर पड़ता है। ये भी पढ़े-डिलीवरी के बाद मां को हो सकता है संक्रमण