अनाड़ीजी, ईश्वर द्वारा बनाई गई सुंदरतम रचना अगर नारी है तो उसे इतना सजने संवरने की जरूरत क्यों पड़ती है?
तन्वी कौशिक रुद्राक्ष, बीकानेर
 
सचमुच नारी है प्रकृति की
एक सुंदरतम रचना,
पर चाहती है
दूसरी सुंदरतम रचना से बचना।
जंतु-जगत में भी नर-मादा वाला प्यार है,
वहां कौन करता शृंगार है!
रूप का लोभी पुरुष
नारियों में स्पर्धा जगाता है,
फिर उनके लिए आईने
और सौंदर्य-प्रसाधन बनाता है।
वे एक षड्यंत्र की शिकार हैं वरना,
कबका छोड़ देतीं सजना-संवरना।
अनाड़ी ये नहीं कहता कि
नर-नारी जीव-जंतु हो जाएं,
उसकी तमन्ना है कि
दोनों सजें और दोनों सजाएं!
दोनों की प्रकृति में
सौंदर्य का भोग है,
तभी तो ग्लैमर
दुनिया का सबसे बड़ा उद्योग है।
 
सबको मां चाहिए, बहन चाहिए, गृहलक्ष्मी चाहिए, लेकिन बिटिया किसी को नहीं चाहिए, ऐसा क्यों?
सुरुचि प्रिया, रांची
बिटिया किसी को नहीं चाहिए
अब पूरी तरह ऐसा नहीं है,
फिर भी मानना पड़ेगा
कि कहीं-कहीं है।
जहां है, वहां का सोच
धीरे-धीरे बदल रहा है,
क्योंकि प्रगति के हर क्षेत्र में
कन्याओं का दखल रहा है।
पुरानी पीढ़ी व्यर्थ में
ताव खा रही है,
नई पीढ़ी बदलाव ला रही है।
 
आपकी सदाबहार मुस्कुराहट का राज क्या है अनाड़ीजी?
दमयंती जगदाले, उज्जैन (म.प्र.)
दूसरों को क्षमा करके,
और मांगने के लिए क्षमाएं
अपनी झोली में भर के,
जब अपने अनाड़ीपन पर इतराते हैं,
तो और क्या करें, मुस्कुराते हैं।
 
दुनिया को तलवार से जीता जा सकता है या प्यार से?
सारिका वोहरा, मंडी (हि.प.)
तलवार से कभी कोई
जीत कर भी जीता है?
हथियार तो एक फालतू फज़ीता है।
यह बुद्धि आएगी कभी न कभी तो,
जीतना है तो प्यार से जीतो!
 
पाकिस्तानी बर्बरता और आतंकी गतिविधियों पर आप क्या कहेंगे?
आशा धूत, कोलकाता
सारी दुनिया जानती है कि
हमारे इस पड़ोसी का निज़ाम
बर्बरता और आतंक का हिमायती है,
ऊपर से उल्टे शिकायती है।
आम जनता तो
भाषा और संस्कृति में
बेहद करीब है,
यहां भी गरीब है
वहां भी गरीब है।
जब आतंकी अड्डे ध्वस्त हो जाएंगे,
तभी हम पड़ोस-धर्म प्यार से निभाएंगे।
 
अनाड़ीजी, कहते हैं कि जहां प्यार होता है, वहीं तकरार भी होती है, क्या यह सच है?
ख्याति, दिल्ली
प्यार में होता है परस्पर अधिकार,
अधिकार लाता है अहंकार।
अहंकार से होती है तकरार,
तकरार के बाद
अगर कोई एक तत्काल झुक जाए
तो फिर से लौट आता है
भरपूर प्यार।
लेकिन जब हर बार
वही एक झुके,
तो मुमकिन है कि
प्यार स्थाई रूप से रुके।
 
औरतों के सशक्तिकरण की बात समारोहों में पुरुष ही ज्यादा करते हैं और ऐसे प्रोग्रामों में भी पुरुष ज्यादा संख्या में मौजूद होते हैं, ऐसा क्यों?
सुदर्शना, जम्मू
महिला सशक्तिकरण के नाम पर
पुरुष ऐसी सभाओं में
बस बातें ही बनाते हैं,
घर लौटते ही
उनके सुर बदल जाते हैं।
उन्हें तो चाहिए सेवाव्रती दासी,
उन्हें क्या बोध जीवन-शोध
भूखी है कि वो प्यासी!
घर-बाहर के काम के बाद
वह भी आती है थकी मांदी,
मूल्य में सोने से
हो जाती है चांदी।
बताइए कब तक धोखा खाए?
नकली समारोहों में क्यों जाए?
 
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