पुराणों के अनुसार पूर्व युग में एक महाभूत उत्पन्न हुआ; जिसने अपने सुप्त शरीर से समस्त संसार को आच्छादित कर लिया। उसे देखकर इन्द्र सहित समस्त देवगण हुए और यम भयभीत होकर ब्रह्माजी की शरण में गए और उनसे प्रार्थना की कि-हे देव! हे भूतेश लोकपितामह! हम सभी बहुत भयभीत हैं आपकी शरण में आएं हैं कृप्या हमारी मदद कीजिए हमारा मार्गदर्शन कीजिए। तब ब्रह्माजी ने कहा-हे देवगणों! भय मत करो। इस महाबली को पकड़कर भूमि पर अधोमुख गिराकर तुम सब निर्भय हो जाओगे। ब्रह्माजी के परामर्शानुसार सभी देवगण उस महाबली को गिराकर उस पर बैठ गएं।
विश्वकर्मा प्रकाश के प्रथम अध्याय के 11 व 12 में श्लोक में कहा गया है-
तमेव वास्तुपुरुषं ब्रह्यसमसृजत्प्रभु:।
कृष्णपक्षे तृतीयायां मासि भाद्रपदे तथा॥
शनिवारे भवेज्जन्म नक्षत्रे कृत्तिकासु च।
योगस्तस्य व्यतीपात:करणं विष्टिसंज्ञकम्॥
उसी को अर्थात महाभूत को समर्थ ब्रह्मïजी ने वास्तुपुरुष की संज्ञा दी। भाद्रमास के कृष्ण पक्ष की तृतीय तिथि; शनिवार; कृतिका नक्षत्र; व्यतीपात योग; विष्टिकरण; भद्रा के मध्य में; कुलिका मुहुर्त में इसकी उत्पत्ति हुई।
उस समय वह भयंकर गर्जना करता हुआ ब्रह्माजी के सन्मुख पहुंचा और बोला-हे प्रभों! आपने इस सम्पूर्ण चराचर जगत की रचना की है; किन्तु बिना अपराध के देवगण मुझे कष्ट देते हैं। कृपया हमारी मदद कीजिए; वास्तु पुरुष के वचन सुनकर ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया कि ग्राम नगर; दुर्गा; शहर; मकान; जलाशय; प्रसाद; उद्यान के निर्माणारम्भ के समय जो तुम्हारा पूजन नहीं करेगा वह दरिद्र और मृत्यु को प्राप्त होगा। उसे पग-पग बाधाओं का सामना करना पड़ेगा और भविष्य में तुम्हारा आहार बनेगा; ऐसा कहकर ब्रह्मïजी अर्न्तध्यान हो गए। तभी से वास्तु पुरुष की पूजा की जाती है। वास्तु पुरुष का सिर ईशान (उत्तर-पूर्व) कोण में; एवं पैर नैऋर्त्य (दक्षिण-पश्चिम) में है। देवताओं ने सर्व प्रथम इसी प्रकार से वास्तु को गिराया था।

वास्तु अनुसार करें भवन निर्माण
भवन के निमार्ण में वास्तु के अनुसार ही योजना बनानी चाहिए इससे घर में शांति रहती है। वास्तु पुरुष एक ही है परन्तु भवन – निर्माण की योजना बनाते समय उसे विभिन्न प्रकार से परिकल्पित किया जाता है।
वास्तु पुरुष की कल्पना करने पर पुरुषागों की कल्पना स्वत: ही हो जाती है जिस प्रकार मानव शरीर के विभिन्न अवयवों में मूर्धा; शीर्ष; मुख; कटि; जानु; शिरा; अनुशिरा; केश; नाड़ी आदि होते हैं, उसी प्रकार वास्तु पुरुष में भी इनकी परिकल्पना होती है। वास्तु के नियमों को ध्यान में रखकर किया गया निर्माण सुखकारी एवं लाभप्रद होता है अन्यथा व्यक्ति रोगी; ऋणी; अधीर; अशान्त; तथा असंयमी होता है। अधिकांश घरों में गृह-क्लेश का मुख्य कारण वास्तु दोष ही होता है। मुख्य द्वार का शेर मुख होना हानि कारक ही नहीं विनाशकारी भी है। हर दिशा का अपना एक ग्रह अथवा देवता होता है। जो शुभ अथवा अशुभ प्रभाव देता है।
किस दिशा में क्या हो?
दिशाओं के साथ रंगों के चयन में ध्यान रखना चाहिएं, क्योंकि हर रंग का अपना महत्त्व है अत: रंग सौम्य होने चाहिए घरों तस्वीरें भी खन-खराबे वाली नहीं होनी चाहिए। प्राकृतिक चित्र शांति प्रदान करते हैं देवता एवं महापुरुषों के चित्र हमेशा दक्षिण-पश्चिम के कोने में ही लगाना चाहिए। रसोई घर आग्नेय कोण में होना चहिए और अतिथि अथवा अविवाहित पुत्रियों का कमरा वायव्यं कोण में होना चाहिए क्योंकि यह स्थान वायु का है और वायु का स्वभाव है चलना। जिन लड़कियों के विवाह में विलम्ब हो रहा हो अथवा बाधा आ रही हों, उन्हें इस दिशा के कमरे में ही रखना चाहिए अथवा दिशा दोष हो तो उसे दूर करना चाहिए। विवाहित अथवा नवदम्पत्ति का का शयनकक्ष में सामने की ओर दरवाजा होता है वहां रोग अथवा क्लेश रहता है अर्थात सोते समय पैर दरवाजे के सामने न रहे।
विद्यार्थी का मुख पढ़ते समय उत्तर की ओर होना चाहिए इससे स्मृति शक्ति बढ़ती है उत्तर अथवा पूर्व की दिशा में मुख करके भोजन करने से शांति एवं निरोग्यता प्राप्त होती है दक्षिण की ओर मुख करके भोजन नहीं करना चाहिए।

वास्तु एक विस्तृत विज्ञान है
वास्तु का पालन करके मानव शांति एवं सुख प्राप्त कर सकता है; यहां हमने सुखी जीवन के लिए आवश्यक बिन्दुओं पर ही आपको कुछ सुझाव दिऐ हैं और संक्षेप में यही कहना चाहेंगे कि नवीन गृह निर्माण में वास्तु के नियमों का पालन करना चाहिए यदि पुराने मकान में वास्तु दोष हो और उसमें कोई टूट-फूट की सम्भावना न हो तों किसी जानकार वास्तु शास्त्री से दोष दूर कराना चाहिए; अथवा तुलसी का पौधा लगाना चाहिए। जिस घर में तुलसी का पौधा होता है; वहां वास्तु समाप्त हो जाता है; परन्तु तुलसी का पौधा घर के बीच आंगन में ही रखना चाहिए। अपने घर में अपनी सुविधानुसार एक देवालय पूर्व अथवा पश्चिम दिशा में होना चाहिए। जिसमें प्रतिदिन घर के सभी सदस्य एक साथ अथवा अपनी सुविधानुसार पूजा-पाठ करें और गुग्गल या धूम-दीप; अगरबत्ती जलाएं ऐसा करने से घर में शांति रहती है। तथा समस्त बाधाएं दूर होती है। यदि घर के मुख्य द्वार पर सफेद रंग के गणेशजी की प्रतिमा लगा दी जाए तो अतिशुभ होता है स्मरण रहे एक स्थान पर दो गणेश अथवा दो शंख नहीं रखना चाहिए। सुख-समृद्घि के लिए सफेद रंग के पत्थर की और बाधा निवारण के लिए काले रंग के पत्थर की गणेशजी की प्रतिमा लगानी चाहिए। एक पाठक को इतना स्मरण रखना है कि वास्तु को रखकर ही नवीन गृह का निर्माण कराया जाना चाहिए।
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