Gurugram
Historical Places in Gurugram

Gurugram: लगातार महीनों का करने के बाद थोड़ा सा वक्त मौज मस्ती के निकालना भी बेहद ज़रूरी है। दिनभर की व्यस्तता से हमारा मन मस्तिष्क पूरी तरह से थक जाता है और नतीजा चिड़चिड़ापन। अगर आप अपने जीवन में रोमांच लाने की कोशिश कर रह है, तो कुछ वक्त् खुद को देपा बेहद ज़रूरी है। फिर चाहे घूमना फिरना ही क्यों न हो। जी हां अगर आप खुद को तरोताज़ा करने के लिए कहीं घूमने की तैयारी में हैं और कुछ एतिहासिक स्थलों की अनूठी कला और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को देखने का मन बना रहे हैं, तो गुरूग्राम का रूख करना न भूलें। यहां आधुनिक स्थलों के अलावा पुरानी हवेलियां, बेहतरीन महल और मुगलकालीन किले भी मौजूद हैं। जो भूली बिसरा यादों की तरह बाहरी चकाचौंध की वजह से खो से गए है। मगर आप भी स्थानीय लोगों को उसका इतिहास भली प्रकार से याद है। तो आइए करते हैं गुरूग्राम का रूख और नज़र डालते है, कुछ खास जगहों पर, जो आपको खुद ब खुद इस ओर खींची  चली लाएंगी।

फर्रुखनगर किला

गुरूग्राम की ओर जाते वक्त रास्ते में दिखने वाला फर्रुखनगर किला अपने आप में इतिहास की कई खूबसूरत स्कृतियों को समेटे हुए हैं। इस नायाब किले को सन् 1732 में फर्रुखनगर के पहले नवाब फौजदार खान ने बनवाया था। मुगलकाल की वास्तुशैली को अपनी जुबानी ब्यां करती इस किले की सरंचना अष्टकोणीय है। खण्डहर में तब्दील हो चुके इस किले के  जो मुगल शैली की वास्तुकला को प्रदर्शित करती है। किले की सबसे प्रभावशाली विशेषताओं में दिल्ली दरवाजा या दिल्ली गेट है। इसके अलावाए किले में झज्जरी दरवाजा और पाटली दरवाजा के साथ प्रवेश द्वार के तीन प्रवेश मार्ग बनाता है। आज इस किले का अधिकांश भाग खंडहर हो चुका हैए लेकिन यह अभी भी गुरूग्राम के टॉप ऐतिहासिक स्थानों में से एक है।

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Farrukhnagar Fort

शीश महल

गुरूग्राम के खास एतिहासिक स्थलों में शीश महल का नाम भी शुमार है। लाल बलुआ पत्थर, लाखौरी ईंटों और झज्जर स्टोन से तैयार हुए इस महल के बीचों बीच एक नहर भी बनी हुई है, जिसमें पास की बावली से पानी आकर गिरता था। इस दो मंज़िला शीश महल में वास्तुकला की झलक भी देखी जासकती है। शीशे से हुई नक्काशी और अन्य काम की वजह से इस इमारत का नाम शीश महल रखा गया था। इस महल में प्रवेश करने के लिए 12 दरव़ाजे बने हुए है। इसके अलावा महल के परिसर में फर्रुखनगर के शहीदों की याद में एक खास स्मारक भी तैयार करवाया गया है, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए 1857 के विद्रोह में विशेष भूमिका निभाई थी। गुरूग्राम में तफ्री और मौज मस्ती के लिए आने वाले लोग इस जगह को देखना नहीं भूलते हैं। मुख्य एतिहासिक घटनाओं की गवाह इस इमारत में कई सुनी अनसुनी कहानियां आज भी कैद हैं।

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sheesh Mahal

सेठानी की छत्री

फर्रुखनगर शहर के झज्जर रोड पर एक प्राचीन स्मारक बना हुआ है, जो, सेठानी की छत्री के नाम से बेहद मयाहूर है। इस दो मंजिला स्मारक में की गई रंगीन चित्रकला इस स्मारक की खूबसूरती को दो गुना कर देती है। छतरी के आकार के बने इस स्मारक को लेकर यूं तो कई कहानियां हैं। मगर स्थिनीय निवासियों के हिसाब से ऐसा माना जाता है कि ये एक व्यापारी ने अपनी पत्नी के लिए बनवाया था।  इस स्तंभ गुंबद को देखने के लिए खासी तादाद में लोग यहां पहुंचते हैं। एक समय में कला का बेहतरीन नमूना पेश करने वाली ये इमारत इन दिनों प्राचीन और एतिहासिक इमारत के तौर पर ऐ अलग पहचान रखती है।  इसमें प्रत्येक मंजिल पर आठ आर्च्ड शेप्ड एंट्रेस है और इन पर खूबसूरत फूलों की कलाकारी नज़र आती हैं। शिलालेखों से सजी इस छतरी की छतों और इसका हवादार स्वरूप इस समारक को गुरूग्राम के यादगार एतिहासिक स्थलों में शुमार करता है।

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Sethani ki chhatri

सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान 

सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान जाने माने राष्ट्रीय उद्यान में से एक है, जो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से 50 किलोमीटर की दूर पर स्थित है। जहां पंख फैलाए पक्षी यहां से वहां उड़ान भरते देखे जा सकते हैं। सर्दियों के मौसम में यहां खासतौर से कई किस्मों के प्रवासी पक्षी देखे जा सकते हैं। इसके अलावा उद्यान में बना एक बड़ा तालाब भी सैलानियों के आर्कषण का केन्द्र साबित होता है। यहां यमुना नदी का जल प्रवाहित होता है, जो स्थानीय के साथ साथ प्रवासी पक्षियों और जीव जंतुओं का सबसे पंसदीदा स्थल माना जाता है। प्रवासी पक्षी यहाँ अक्टूबर के महीने में आते हैं और फिर जनवरी के महीने तक यहीं रहते हैं।  सुल्तानपुर पक्षी अभ्यारण्य में 250 से भी ज़्यादा पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। खास बात ये है कि इस जगह को सन् 1972 में सुल्तानपुर पक्षी अभ्यारण्य के रूप में घोषित कर दिया गया था। फिर देखते ही देखते सन् 1989 में अभ्यारण्य को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला गया था। पक्षियों को देखने के लिए यहां चार स्तम्भ बने हैं। इन पक्षियों को आप दूरबीन की मदद से भी आसानी से देख सकते हैं। इसके अलावा यहां एक समय में केवल कुछ ही लोगों को एंटर करने की अनुमति दी जाती है। यहां दाखिल होने के लिए प्रमाण पत्र के अलावा बेहद मामूली किराया लिया जाता है।

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Sultanpur National Park

जामा मस्जिद

गुरूग्राम के फर्रुखनगर में जामा मस्जिद स्थित है, जिसका निर्माण लाल बलुआ पत्थरों से हुआ है। इसके अलावा इसमें गुंबद और मीनारें भी हैं। फर्रुखनगर की जामा मस्जिद फौजदार खान के बेहतरीन आर्किटेक्चर का एक और शानदार नमूना है। दरअसल, इस मस्जिद में लाल बलुआ पत्थर से बने दो स्लैब भी मौजूद है। इनके बारे में ये मान्यता है कि ये स्लैब यहां से पहले सुल्तानपुर स्थित एक प्राचीन मस्जिद में हुआ करती थीं। इन स्लैबस की खास बात ये है कि ये स्लैब 13 वीं सदी के अरबी शिलालेखों को दर्शाते हैं।

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