इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और ‘अहोऊ देवी’ की पूजा कर अपनी संतानों की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं। साथ ही, परिवार की सुख-समृद्धि के लिए भी व्रत रखती हैं। इस वर्ष ‘अहोई अष्टमी’ का व्रत 8 नवंबर को है जो कि दीपावली से एक हफ्ते पहले आता है।
अहोई अष्टमी का मुहूर्त-
दिन- रविवार (8 नवंबर)
समय- शाम 5:26 बजे से शाम 6:46 बजे तक
अवधि- 1 घंटा 19 मिनट
इन बातों का रखें ख्याल-
1. अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता से पहले गणेश जी की पूजा करें।
2. अहोई अष्टमी के दिन तारों को अर्घ्य देते हैं और तारों के निकलने के बाद ही अपने उपवास को तोड़ें।
3. अहोई अष्टमी के दिन व्रत कथा सुनते समय 7 तरह के अनाज अपने हाथ में रखें और पूजा के बाद इस अनाज को किसी गाय को खिला दें।
4. अहोई अष्टमी के दिन पूजा करते समय बच्चों को अपने पास बिठाएं और अहोई माता को भोग लगाने के बाद वो प्रसाद अपने बच्चों को जरूर खिलाएं।
कैसे करें अहोई अष्टमी का व्रत-
बाज़ार से अहोई अष्टमी की कथा का साहित्य और कैलेंडर ले आएं। माता की पूजा के लिए पंचामृत व अन्य भोज बनायें। इस दिन माताएं सूर्योदय से पूर्व स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लें। अहोई माता की पूजा के लिए दीवार या कागज पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं।
सायंकाल के समय पूजन के लिए अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर जल से भरा कलश रखें। इसके बाद रोली-चावल से माता की पूजा करें। मीठे पुए या आटे के हलवे का भोग लगाएं। कलश पर स्वास्तिक बना लें और हाथ में गेंहू के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें। इसके उपरान्त तारों को अर्घ्य देकर अपने से बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।
अहोई अष्टमी का महत्व-
‘अहोई अष्टमी’ पर्व खासतौर से मांओं के लिए होता है क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं अपने बच्चों के कल्याण के लिए व्रत करती हैं। पूरे दिन निर्जला उपवास किया जाता है और रात को चंद्रमा या तारों को देखने के बाद ही व्रत खोला जाता है। जो महिलाएं यह व्रत करती हैं वो शाम के समय दीवार पर आठ कोनों वाली एक पुतली बनाती हैं। दीवार पर बनाई गई इस पुतली के पास ही स्याउ माता और उसके बच्चे भी बनाए जाते हैं। फिर इसकी पूजा की जाती है। जो महिलाएं नि:संतान हैं वो भी संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का व्रत या उपवास करती हैं।
