परिवार के बच्चे को गोद लेने से पहले जान लें ये जरूरी बातें: Child Adoption Tips
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Child Adoption: भारत में बच्चा गोद लेना एक लंबी प्रक्रिया है, ऐसे में कई बार इच्छुक दंपती अपने परिवार या रिश्तेदार के बच्चे को गोद लेने का विचार बना लेते हैं। किसी रिश्तेदार के बच्चे को गोद लेने में थोड़ा कम समय जरूर लगता है लेकिन इसके लिए आपको कई औचारिकताएं पूरी करनी होती हैं।

एक जानकार अपने बड़े बेटे को लेकर अक्सर चिंतित रहते हैं कि शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी वह और उसकी पत्नी निसंतान हैं। जबकि छोटे बेटे का भरा-पूरा परिवार है और कुछ महीनों पहले ही उसकी पत्नी ने जुड़वा बच्चों को जन्म भी दिया है। इन जुड़वा बच्चों से पहले उनका एक बेटा भी है। जब से उन जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ है सभी रिश्तेदारों और दोस्त यही सलाह दे रहे हैं कि छोटा बेटा अगर चाहे तो अपने जुड़वा बच्चों में से एक बच्चा बड़े भाई को गोद दे सकता है। यह विचार सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन एक ही घर में रहकर क्या उस बच्चे के जैविक माता-पिता बच्चे से खुद को दूर रख पाएंगे!

इन परिस्थितियों में जब आप अपने ही परिवार या किसी दोस्त के बच्चे को गोद लेते हैं तो न केवल बच्चा बल्कि बच्चे के जैविक माता-पिता और गोद लेने माता-पिता, दोनों ही मानसिक तनाव से गुजरते हैं। इस स्थिति में जब भी बच्चा गोद लें, विशेषकर अपने परिवार का बच्चा तो पहले स्वयं को मानसिक रूप से कर लें। आपके साथ परिवार और उस बच्चे के जैविक माता-पिता को भी इस तैयारी की आवश्यकता पड़ेगी।

बच्चे को गोद देने का अर्थ यह है कि अब बच्चे के सामाजिक और व्यावहारिक विकास की जिम्मेदारी गोद लेने वाले दंपती की है, आपकी नहीं। जरूरत पड़ने पर आप उन्हें आर्थिक या सामाजिक मदद दे सकते हैं, बच्चे को प्यार-दुलार भी कर सकते हैं लेकिन उसके माता-पिता कहलाने का कानूनन अधिकार केवल गोद लेने वाले दंपती का है। ध्यान रहे कि जैविक माता-पिता बच्चे के भविष्य के प्रति लिए गए किसी भी निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। हां, सलाह जरूर दे सकते हैं!

परिवार के बच्चे को गोद लेना आसान क्यों

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भारत में बच्चा गोद लेना वाकई एक लंबी प्रक्रिया है इसके पीछे की वजह यह है सरकार आश्वस्त हो जाना चाहती है कि गोद लेने का इच्छुक दंपती वाकई बच्चे को गोद लेना चाहता है या नहीं! आमतौर पर पंजीकरण के बाद सरकार की ओर से हरी झंडी मिलने में भी कम से कम 3 से 4 साल लग जाते हैं। कई बार इससे भी ज्यादा समय लग सकता है। केन्द्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण यानी सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा) के अनुसार गोद लेने वाले पूल (एडॉप्शन पूल) में बहुत कम बच्चे होते हैं, जबकि आवेदन भरने वाले लोगों की सूची बहुत ज्यादा होती है। यह कई बार इस बात पर भी निर्भर करता है कि आवेदन भरने वाले दंपती के सभी दस्तावेज प्रमाणिक हैं या फिर जाली। फिर यह भी देखा जाता है कि दंपती की शादी को कितने साल हो गए हैं और गोद लेने के जो कारण दंपती ने दिए हैं वो सही मायनों में मेल खाते हैं या नहीं। इन सभी पैमानों पर खरा उतरने के बाद ही सरकार दंपती को बच्चा गोद देती है। यदि बच्चा परिवार या किसी रिश्तेदार का होता है तो यह प्रक्रिया थोड़ी सरल हो जाती है और केवल एक या डेढ़ वर्ष के भीतर आप बच्चे के कानूनन माता-पिता बन नाते हैं।

बच्चा गोद लेने की सामान्य प्रक्रिया

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बच्चा गोद लेने के लिए भारत सरकार की ओर से कुछ शर्ते होती हैं। सबसे पहली शर्त यह है कि गोद लेने वाले माता-पिता और बच्चे के बीच आयु का अंतर कम से कम 25 वर्ष का होना चाहिए, जबकि बच्चे की उम्र 15 वर्ष से कम होनी चाहिए। यदि आप 15 वर्ष से बड़ी उम्र के बच्चे को गोद लेना चाहते हैं तो इसके लिए आप ‘कारा’ की वेबसाइट में देख सकते हैं। बच्चा गोद लेने की पहली कानूनी प्रक्रिया यह है कि दंपती को कारा की वेबसाइट पर खुद को पंजीकृत करना होता है। यदि सरकार आपको सभी मापदंडों में खरा पाती है तो वह आपके दस्तावेजों को सत्यापित करने के लिए आगे भेजती है। सत्यापित करने में तकरीबन एक से डेढ़ वर्ष का समय लग जाता है। कई बार इससे कम समय में भी यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है।

क्या हैं औचारिकताएं

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यदि दंपती अपने किसी रिश्तेदार या परिवार के बच्चे को गोद लेना चाहता है तो उसके लिए उसे धारा 56 हिन्दू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम एवं धारा 60 किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत, बच्चा अपने जैविक माता-पिता के साथ रहता है, वहां के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट यानी जिला अदालत में एक आवेदन पत्र देना होता है। इसके साथ एक अनुमति पत्र भी संलग्न भी होना चाहिए, जिसमें जैविक माता-पिता की सहमति होती है कि वे अपनी मर्जी से बच्चे को गोद दे रहे हैं। इसी के साथ बाल कल्याण आयोग की भी अनुमति गोद लेने वाले दंपती को लेनी होती है। इस प्रक्रिया के दौरान कोर्ट यह भी देखती है कि 2 साल तक गोद लेने वाले दंपती की शादी स्थिर रही है या नहीं, अथवा उनके आपसी संबंध कैसे हैं, लेकिन रिश्तेदार या परिवार के बच्चे को गोद लेने के लिए यह प्रक्रिया आवश्यक नहीं होती है।

इन सारी कानूनी औचारिकताओं के बाद न्यायालय आपको दत्तक आदेश देता है। बच्चे के जैविक माता-पिता चाहें तो कोर्ट से बच्चे से मिलने की अनुमति ले सकते हैं, इसमें सरकार या कोर्ट को किसी प्रकार की आपत्ति नहीं होती है। यदि बच्चे के जैविक माता-पिता से अनुमति पत्र जोर-जबर्दस्ती से लिखवाया गया है तो भविष्य में वे एडॉप्शन के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं।

एनआरआई दंपती के लिए

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यदि गोद लेने वाला दंपती भारत में नहीं रहता है अर्थात एनआरआई है तो ऐसी स्थिति में सबसे पहले दंपती को निवास देश के विदेशी दत्तक ग्रहण एजेंसी से संपर्क करना होगा और उनसे अनुमति लेनी होगी। उसके बाद भारत की आधिकारिक वेबसाइट ‘कारा’ में पंजीकरण करवाना होगा। दंपती के एनआरआई होने के कारण एडॉप्शन की प्रक्रिया काफी लंबी हो जाती है।

सभी धर्म के लिए गोद लेने की अलग-अलग प्रक्रिया

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यदि आप हिन्दू, जैन, बौद्ध या सिख धर्म से संबंध रखते हैं, तभी धारा 56 हिन्दू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम के तहत आप बच्चा गोद ले सकते हैं। मुस्लिम, पारसी, ईसाई और यहूदी धर्म के दंपती यदि बच्चा गोद लेना चाहते हैं तो उन्हें धारा 56 की जगह 1890 का संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम के आधार पर अपना आवेदन पत्र देना होगा।

मनोवैज्ञानिक प्रभाव

परिवार या किसी रिश्तेदार के बच्चे को गोद लेने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि बच्चे को अपने जैविक माता-पिता से मिलने का भी मौका मिल सकता है। दूसरा यह कि कुछ लोग अनाथालय से बच्चा गोद लेने में सहज महसूस नहीं होते हैं क्योंकि वे रक्त संबंध या अनुवांशिक संबंध को ज्यादा महत्व देते हैं तो ऐसे लोगों के लिए अपने परिवार के किसी बच्चे को गोद लेना सबसे उचित रहता है क्योंकि इस तरह वह बच्चे के साथ जल्दी घुलमिल जाते हैं और जुड़ाव महसूस करते हैं। यदि आप संयुक्त परिवार में रहते हैं तो हो सकता कि भविष्य में बच्चे के भीतर ‘आइडेंटिटी क्राइसिस’ या पहचान का संकट की स्थिति आ सकती है। गोद लेने की प्रक्रिया कागजों में तो पूरी हो गई है लेकिन अगर बच्चा यह जानता है कि उसके माता-पिता कौन हैं तो यह भविष्य में उसके लिए संकट का विषय बन सकता है। यदि आप किसी रिश्तेदार या परिवार का बच्चा गोद लेना चाहते हैं तो कम उम्र जैसे 1 वर्ष या फिर उससे भी कम की आयु में गोद लेना चाहिए। निश्चित तौर पर जब हम किसी बच्चे को गोद लेते हैं तो उसका भविष्य हमारी परवरिश और विश्वास पर निर्भर करता है। और जब आप अपने किसी परिचित का बच्चा गोद लेते हैं तो उसके प्रति आपकी जिम्मेदारी दोगुनी हो जाती है।

(मोहिनी प्रिया, सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता, से बातचीत पर आधारित)