इसमें कोई मत नहीं कि आज तेज रफ्तार से बदलते जीवन में यदि कुछ सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है तो, वह है इंसान का मन। जो पहले से भी अधिक बेचैन और अशांत हुआ है, जिसके कारण उसके अंदर किसी अपने की, प्यार की इच्छा और तीव्र तो हुई है, परंतु अशांति और बेचैनी से उपजे अधैर्य के कारण वह प्रेम में जल्दबाज और लापरवाह भी हुआ है, जिसका नतीजा यह हुआ है कि वह प्यार की प्यास तो रखता है, पर उससे उपजती जिम्मेदारियों को निभाने से आंखें चुराता है, उसे पूरा भोगे बिना उससे पीछे हटना भी नहीं चाहता। वह उस शरीर को भोगना भी चाहता है, जिसके पीछे वह दिन रात एक करता है, इसलिए उसे प्यार से ज्यादा रिश्तों में सेक्स की जल्दी रहती है। वह उतावला रहता है अपनी उस प्यास को बुझाने के लिए, जिसे वह प्यार के नाम से पालता-पोसता है। सच तो यह है, प्यार में साथी का साथ, उसकी बात, उसकी छुअन व सोच न केवल एक रोमांच पैदा करती है, बल्कि मानसिक तनाव भी कम करती है। किस व सेक्स जैसी क्रियाएं तो आनंद को उस चरम पर ले जाती हैं, जिसकी आदत यदि एक बार पड़ जाए तो आम आदमी क्या बड़े-बड़े विश्वामित्र भी उसकी चपेट से मुक्त नहीं हो पाते। देखा जाए तो प्यार-रोमांस और सेक्स आज भावनात्मक कम शारीरिक मामला अधिक हो गया है। वह मूड फ्रेश करने का तनाव मुक्त करते का एक टॉनिक बन गया है। आज की बात कहें तो प्रेम संबंधों में प्रेम हो न हो? दिखावा जरूर होना चाहिए। घंटों फोन पर लगे रहना हो या सेल्फी खींचना, गिफ्ट देना हो या रोज डेटिंग पर जाना। अब गले मिलने या किस करने के लिए लड़के-लड़कियों को किसी झाड़ी या सुनसान गली के होने के लिए तरसना नहीं पड़ता, आम पार्क, रोड, मैट्रो या ऑफिस आदि में उन्हें यह सब करते हुए देखा जा सकता है। सच तो यह है, ऐसा न करने वालों को फुद्दू या बाबा आदम का समझा जाता है।

ऐसा नहीं कि अब ब्रेकप नहीं होता, होता है, पर दिल उतनी गहराई से चोट खाकर नहीं टूटता, क्योंकि बात दिल तक नहीं, ऊपर शरीर तक ही उलझ कर खत्म हो जाती है। घाव दिल पर नहीं रोजमर्रा की आदत पर होता है, जिसे नया साथी जल्दी ही भर देता है। सब का अब एक ही फंडा है ‘टेंशन लेने का नहीं देने का’। कुछ दिन घूमने-फिरने और घंटों फोन पर बात करने की देर है। पुराने व्हाट्सअप मैसेज और नंबर को डिलीट या ब्लॉक करने में हम आज देर नहीं लगाते।

99% लोगों का प्यार

किसी के लिए प्यार आदत जैसा है तो किसी के लिए जरूरत जैसा। प्रेम किसी के लिए जिम्मेदारी है तो किसी के लिए वफादारी। किसी का प्रेम लालसा है तो किसी का वासना। कोई स्वयं की सुविधा को देखकर प्रेम करता है तो कोई आपसी योग्यता को देखकर। किसी का प्रेम मोह है तो किसी का स्वार्थ। अड़चन यही है कि किसी का भी प्रेम, प्रेम जैसा नहीं है। इन सब में प्रेम की झलक मिलती है। सब प्रेम के करीब ले जाते हैं, परंतु प्रेम नहीं हो पाते। ऐसा प्रेम संबंधों से जुड़कर, शब्दों में ढलकर खंड-खंड हो जाता है, प्रेम नहीं हो पाता। सच तो यह है कि हम सब कुछ करते हैं, बस प्रेम नहीं करते। यही कारण है हमने प्रेम को इतने नाम दिए हैं और असफल हुए हैं।

प्यार और सेक्स

प्रेम में शरीर का, जिस्म के स्पर्श का अपना ही विशेष स्थान है। अधिकतर लोगों का प्रेम शरीर से शुरू होकर शरीर पर ही खत्म हो जाता है और हो भी क्यों न, क्योंकि जो आंखें किसी को अपने अनुसार पसंद करती है, वह भी शरीर का हिस्सा हैं। जो जुबान प्रेम का इजहार व इकरार करती है, वह जुबान भी शरीर का हिस्सा है। प्रेम को जीने का माध्यम ही यह शरीर है। यदि यह शरीर न हो तो न तो नजारा हो, न प्यार। प्रेम में आंखों का बहुत योगदान है, क्योंकि वो आंखें ही हैं जो किसी को पसंद करती हैं और टिकती हैं। तभी तो कहने वालों ने प्रेम को ‘आंखें चार करना’ कहा है। अंग्रेजी में भी एक कहावत है ‘लव एट फर्स्ट साईट, पहली नजर में प्रेम’। आखिर हम पहले किसी को उसके शरीर से, बाहरी भावभंगीमाओं से, अदाओं आदि से ही पसंद करते हैं। शरीर पर किसी की आत्मा या उसका दिल नहीं दिखता कि सामने वाले की सीरत कैसी है। हम केवल सूरत देखकर ही फिदा हो जाते हैं।

सेक्स एक थेरेपी

एक समय था, जब सेक्स का अर्थ सिर्फ बच्चा पैदा करना या वंश बढ़ाना था। आज परिवारों में, समाज-रिश्तेदारों में, सेक्स के प्रति नजरिया बदलने लगा है। इस विषय पर आपस में बेबाक, खुलकर बातें होने लगी हैं और सेक्स एजुकेशन ने यह काम और सरल कर दिया है। आज सेक्स सिर्फ बच्चे पैदा करने का जरिया ही नहीं रह गया। विशेषज्ञों का कहना है कि सेक्स अपने आप में एक थेरेपी है। इसकी सही जानकारी हमें न केवल आनंद देती है, बल्कि भविष्य में होने वाले कई रोगों से भी बचाती है। आज का युवा सेक्स को विज्ञान से जोड़कर देखता है। सेक्स उसके लिए भय या शर्म का विषय नहीं है, जिस पर वह बात करने से हिचकिचाए।

प्यार और सेक्स में संतुलन

आज अफेयर के नाम पर कितना प्यार, कितना सेक्स छिपा है, यह बच्चे भी जानते हैं, मां-बाप भी, जनता भी, समाज भी, पर हम यह राग तो अलापते रहते हैं कि हमसे कोई प्यार नहीं करता, लेकिन इस बात की पड़ताल नहीं करते कि हम चाहते क्या हैं, प्रेम या सेक्स और यदि सेक्स तो क्यों।

सेक्स बहुत ही नाजुक मामला है। कभी यह बिगड़ी बात बना देता है तो कई बार बनी-बनाई बात को बिगाड़ देता है। प्रेम संबंध में सेक्स की वही भूमिका है, जो आटे में नमक की होती है। जरा सी मात्रा ऊपर-नीचे हुई नहीं कि रोटी बेस्वाद हो जाती है। ऐसे ही ‘सेक्स’ भी जरूरी है। यह प्यार का अहम हिस्सा है, जिसके द्वारा साथी अपने प्यार को न केवल अभिव्यक्त करते हैं, बल्कि संबंधों को मजबूत भी बनाते हैं। बस इसको अभिव्यक्त करने की कला आनी चाहिए।

अन्य अर्थों में देखें तो सेक्स प्रेम का एक मजबूत हिस्सा है, जिसके जरिये प्रेमी या साथी अपनी भावनाएं अभिव्यक्त करता है या कर सकता है। आज शहरों में ही नहीं, गांव-कस्बों में भी लड़कियां सेक्स को प्रेम का मुख्य अंग मानने लगी हैं। विवाह से पूर्व सेक्स कोई पाप या अपराध नहीं रह गया है। वह संबंधों को सुदृढ़ करने का व मन को स्वस्थ रखने का माध्यम बन गया है। लड़कियां खुद अपने अफेयर में सेक्स संबंध बनाने में सालों का इंतजार नहीं करतीं। सच तो यह है कि अफेयर को यदि लम्बा समय हो जाए और बीच में कुछ न हो तो ऐसे अफेयरों में तनाव व नोक-झोंक बढ़ जाती हैं। ज्यादा साल नहीं टिक पाते। ठीक इसके विपरीत भी यदि सब कुछ शुरुआती हफ्तों में हो जाए तो ऐसे अफेयर भी ज्यादा दिन नहीं टिक पाते। प्रेम संबंध में सेक्स की इस नाजुकियत को समझना बहुत जरूरी है। यही कारण है कि हमारा संबंध वासना तो बन जाता है प्रार्थना नहीं बन पाता। सेक्स तो हो जाता है पर सक्सेस नही हो पाता।

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