ABHAY DEOL
ABHAY DEOL

Summary : अभय देओल ने बात की अपने बचपन की

नामी होने के नुकसान भी अभय देओल ने सहे और फायदे भी देखे। इन्हीं बातों के बीच उनका पूरा बचपन गुजरा।

Abhay Deol School Life: अभय देओल अपनी अलग किस्म की फिल्मों और अनोखे किरदारों के लिए जाने जाते हैं। उनाक काम सालों बाद भी दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है। चाहे ‘देव डी’ हो, ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ हो या ‘सोचा ना था’। लेकिन, एक समय के बाद अभय हमेशा शोहरत और फिल्मों से थोड़े अलग-थलग रहे। उनका बचपन स्टारडम के माहौल में बीता। पहले उनके चाचा धर्मेंद्र का सुपरस्टारडम, फिर 1980 के दशक में सनी देओल की एंट्री और बाद में बॉबी देओल जब ‘बरसात’ से लॉन्च हुए तो उन्हें भी जबरदस्त लोकप्रियता मिली।

हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में अभय ने बताया कि ऐसे परिवार में बड़े होने का अनुभव कैसा रहा और इसके साथ कौन-सी चुनौतियां आईं। अभय ने जया मदान को दिए इंटरव्यू में कहा, “घर पर शुरुआत में तो ऐसा नहीं था कि कोई स्टार है। हमारे लिए वे बस पापा, अंकल, भैया थे। लेकिन जैसे-जैसे बड़े हुए, समझ में आने लगा कि हम अलग हैं। हम आम लोगों जैसे नहीं हैं, क्योंकि हमें जहां भी जाते हैं, पहचाना जाता है। हमारा सरनेम पहचाना जाता है। इस वजह से हमें अलग-थलग कर दिया जाता था। स्कूल में अगर कोई मेरे परिवार का फैन होता था, तो टीचर्स हमें स्पेशल ट्रीटमेंट देते थे।”

लेकिन इसके साथ एक मुसीबत भी थी… अभय ने कहा, “अगर किसी को आपका परिवार पसंद नहीं होता और वो सोचते कि आपका परिवार अच्छा नहीं है, तो वो आपके रास्ते में मुश्किलें डालते। हमें हमेशा सावधान रहना पड़ता कि यह व्यक्ति मेरे साथ अच्छा रहेगा या बुरा। हमें पहले से ही पता होता था कि लोग आपको जज करेंगे।”

Young Dharmendra And ABHAY
Young Dharmendra And ABHAY

इस साल की शुरुआत में द डर्टी मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में अभय ने अपने बचपन में देखी शोहरत के बारे में बात की थी। उन्होंने कहा, “उस समय की शोहरत बिल्कुल अलग स्तर की थी। मैं 80 के दशक में बच्चा था। उस वक्त न टेक्नोलॉजी थी, न यात्राएं और ना जानकारी की आज जैसी सुविधा थी। ना ही मनोरंजन की इतनी दुनिया उपलब्ध थी। उस समय का सेलिब्रिटी वर्शिप कुछ और ही था। मैंने वो अपने अंकल (धर्मेंद्र) के साथ देखा। फिर जब भैया (सनी देओल) 80 के दशक की शुरुआत में लॉन्च हुए, तो मैंने उनके चारों तरफ पागलपन जैसी शोहरत देखी।”

अभय की फिल्मों को चुनने का तरीका उनके परिवार से बिलकुल अलग था। उन्होंने नए निर्देशकों के साथ काम किया और हटकर फिल्में कीं। दिबाकर बनर्जी के साथ उनका काम यादगार है। इम्तियाज अली के साथ उनकी शुरुआत है। अनुराग कश्यप की देव डी तो खैर कौन ही भूल सकता है।

ढाई दशक से पत्रकारिता में हैं। दैनिक भास्कर, नई दुनिया और जागरण में कई वर्षों तक काम किया। हर हफ्ते 'पहले दिन पहले शो' का अगर कोई रिकॉर्ड होता तो शायद इनके नाम होता। 2001 से अभी तक यह क्रम जारी है और विभिन्न प्लेटफॉर्म के लिए फिल्म समीक्षा...