दादी मां के नुस्खें
जमींकंद के टुकड़े करके छाया में सुखा दें। निंबोली का गूदा समान भाग में लेकर कूट-छान लें। इन दोनों के चूर्ण को तीन माशे ताजे मट्ठे या शीतल जल के साथ लें।
बवासीर रोग में हरड़ का प्रयोग मट्ठे के साथ किया जाता है।
मूली के पत्तों का रस पेट की पीड़ा, अफारा और अर्श में लाभ करता है।
मूली के 2 तोला रस में5 तोला गाय का घी मिलाकर, कुछ दिनों तक सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है। एक नींबू के छिलके को थोड़े ठंडे पानी में भिगों दें और रात केसमय ओस में पड़ा रहने दें। प्रातःकाल उसे पीयें। बवासीर का खून बन्द हो जायेगा।
नाग केसर और सफेद सुरमा 5-5 ग्राम लेकर खरल कर लें। आधा ग्राम चूर्ण 5 ग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम लें।
बादी बवासीर के मस्सों के लिए अजवायन के चूर्ण को अंगारों पर डालकर उसका धुआं मस्सों को देने से लाभ होता है।
पुर्नवा की जड़ को हल्दी के काढ़े में देने से लाभ होता है।
हल्दी चूर्ण को सेहुंड (थूहर) केदूध में घोलकर बवासीर के मस्सों पर प्रतिदिन प्रातः शौच के बाद मलें।
मस्से ज्यादा परेशान कर रहे हों तो पन्द्रह -बीस ग्राम मक्खन, दूध-दही की मलाई केसाथ 8-10 ग्राम फिटकरी मिलाएं व मस्सों पर लेप करें।
खूनी बवासीर में फिटकरी को पानी में घोलकर गुदे में पिचकारी देने से तत्काल राहत मिलेगी। इसके अलावा, बवासीर के रोगी को दही में फिटकरी का चूर्ण मिलाकर सवेरे-शाम सेवन करना चाहिए।
