बसंत को अगर भारतीय वेलेंटाइन डे कहा जाए तो ये कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि बसंत प्रेम का मौसम कहलाता है। जी हां, प्यार का महीना यानी फरवरी दस्तक दे चुका है और इसके साथ ही जवां दिलों की धड़कने तेज हो चुकी हैं। बदलते मौसम के साथ ही जहां हर तरफ प्यार की खुमारी सी छा रही है, वहीं कैलेंडर में भी प्यार की तारीखें छप चुकी हैं। वेलेंटाइन वीके के साथ पूरा एक सप्ताह प्यार करने वाले के लिए उत्सव का मौहाल रहने वाले हैं। ऐसे में मौसम के मिजाज को समझते हुए बाजार भी सज चुका है। वैसे सोचने वाली बात है कि आखिर फरवरी के महीने में ही प्यार का ये उत्सव क्यों मनाया जाता है और ये महीना “प्यार का महीना” क्यों कहलाता है। दरअसल, इसके पीछे बेहद तार्किक वजह है और आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं…
ये मौसम का जादू है मितवा
दरअसल, बसंत के इस मौसम में फिजाओं में चारो-तरफ प्यार ही प्यार घुला होता है… हर तरफ हरियाली और नए फूल-पत्ते खिल रहे होते हैं। तीखी और बेदर्द ठंड जहां बीत रही होती है और वहीं मौसम में खुशनमां बदलाव होता है। इस खुशनुमा मौसम में मन भी बेहद खुशनुमा हो जाता है और ऐसे में अपने पार्टनर के प्रति अधिक आकर्षण भी बढ़ जाता हैं। लोग अपने साथी के साथ अधिक से अधिक समय बिताना चाहते हैं। यही वजह है कि प्रेममिलाप के लिए फरवरी का महीना सबसे बेहतर माना जाता है।
कामदेव का ऋतु है बसंत
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बसंत कामदेव का ऋतु माना जाता है, पौराणिक कहानियों में बसंत ऋतु में कामदेव के सक्रिय होने के कई प्रसंग मिलते हैं। यहां तक कि देवी देविताओं के बीच भी इसी ऋतु में समागम का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने मानव हृदय में प्रेम भाव जागृत किया था और ऐसे में बसंत ऋतु में लोगों के हृदय में प्रेम भाव सक्रीय हो जाता है।
क्या कहता है साइंस
वहीं विज्ञान की माने तो इस मौसम में तापमान सामान्य होने के कारण शरीर में ऐसे हार्मोन्स बनते हैं जिनसे विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ जाता है। दरअसल, महिलाओं में जहां प्रोजेस्टेरोन हार्मोन्स का लेवल अधिक हो जाता हैं तो वहीं पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन्स का लेवल बढ़ जाता हैं। जिससे कपल एक दूसरे के प्रति भावनात्मक और शारीरिक रूप से आकर्षित हो जाते हैं।
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