मुंबई में लालन पोषण पर काम करने वाले संगठन ‘बोर्नस्मार्ट’ के सर्वे के मुताबिक बच्चों के साथ हिंसक व्यवहार करने में माताएं आगे हैं। जहां करीब 29 फीसदी पिता बच्चों पर हाथ उठाते हैं, वहीं दोगुनी यानी 62 फीसदी माताओं को बच्चों की पिटाई से गुरेज नहीं। अपनी बात मनवाने या सिखाने के लिए उन्हें खरी-खोटी भी सुनाती हैं। आखिर ममता की मूॢत समझी जाने वाली मांएं इतनी हिंसक क्यों हो जाती हैं? जब तर्कों से वे अपनी बात मनवाने में असमर्थ होती हैं तो बच्चों पर हाथ उठाती हैं।

यदि दिनचर्या में तनाव हो या वे थकी हुई हों, तब भी छोटी सी बात को लेकर वे बच्चों को पीट देती हैं। ऐसा तब भी होता है, जब वे हताश होती हैं। कुछ मांएं तो ऐसी भी हैं, जो अपने दफ्तर का तनाव या बॉस की झिड़की की वजह से बच्चों को अपने कोप का भाजन बनाती हैं। उन माताओं की भी कमी नहीं है, जिन्हें पिटाई से समझाने के अलावा दूसरा रास्ता नजर नहीं आता।

यदि बच्चा ज़रा सा भी अपनी जिद पर अड़ जाए तो मां को हाथ उठाते देर नहीं लगती। डंडे से मारना, हाथ-पैर बांध देना, कमरे में बंद कर देना, मुर्गा बना देना, नाश्ता नहीं देना आदि सजाएं देकर उसे हिंसक ढंग से काबू में रखने का प्रयास करती हैं। इसका प्रभाव मारपीट से भी घातक होता है। सर्वे टीम की विशेषज्ञ स्वाति पोपट के मुताबिक, जब बच्चे को पीटा जाता है तो बदले में वे भी दूसरों पर हाथ उठाना सीखते हैं। बच्चे वैसा ही व्यवहार दर्शाते हैं, जैसा उन्हें घर पर मिलता है। अमेरिकी शोधकर्ताओं के अनुसार बच्चों को अधिक डांटने या पिटाई करने से उनके मस्तिष्क में विकृति पैदा हो जाती है, जिसके कारण उनका मानसिक विकास नहीं हो पाता है। ऐसे बच्चे तनाव, व्याकुलता और चिड़चिड़ेपन का शिकार हो जाते हैं।

डॉ. हेरियट के निर्देशन में पांच सदस्यीय मनोवैज्ञानिकों के एक दल ने अपनी शोध रिपोर्ट में कहा है कि जिन मांओं ने अपने बच्चों पर जमकर हाथ उठाए, उनके बच्चे बड़े होकर अपने को शराब या हिंसक आदतों का शिकार बना लेते हैं। ऐसे पिटने वाले बच्चों में मानसिक उद्धिग्नताएं और हताशा जन्म लेती हैं। बाल मनोचिकित्सक डॉ. डेविड वुड का कहना है कि लगातार होने वाली मारपीट के कारण बच्चों की याददाश्त कमजोर होने लगती है। बच्चों पर हाथ उठाने वाली मांएं हमेशा निरक्षर या अनपढ़ ही नहीं होतीं, अपितु पढ़ी-लिखी और ऊंचे पद पर काम करने वाली मांएं भी अपने बच्चे के साथ हिंसक व्यवहार करती हैं।

यदि आपको लगता है कि डंडे के बल पर आप अनुशासन कायम कर पाएंगी तो यह आपका अनुशासन नहीं, आतंक है। बच्चों पर हाथ उठाने का परिणाम उल्टा होता है। वे ढीठ बन सकते हैं। बच्चों को उनकी गलती पर टोकना, समझाना या सबक सिखाने तक ही ठीक है। मारपीट से बचें। थोड़ा धैर्य से काम लें तो बात बन सकती है। 

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