इसकी कहानी ऐसी है कि एक बार समस्त देवताओं के बीच यह विवाद हुआ कि धरती पर किस देवता की पूजा सारे देवताओं से पहले होना चाहिए। तभी सारे देवता खुद को सर्वश्रेष्ठ बताने लगे कि मैं बेहतर हों। तब नारद जी ने इस स्थिति को देखते हुए सभी देवगणों को भगवान शिव के पास जाने की सलाह दी।

जब सभी देवता भगवान शिव के पास गए, तब भगवान शिव ने इसे सुलझाने के लिए एक प्रतियोगिता को आयोजित किया। सभी देवताओं को कहा कि वे सभी अपने-अपने वाहनों पर बैठकर इस पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर आएं। इस प्रतियोगिता में जो भी सर्वप्रथम ब्रह्माण्ड की परिक्रमा कर उनके पास पहुंचेगा, उस देवता की सर्वप्रथम पूजा की जाएगी।

सभी देवता अपने वाहनों पर बैठकर निकल पड़े और गणेश जी भी इस प्रतियोगिता के हिस्सा थें, लेकिन, गणेश जी बाकी देवताओं की तरह ब्रह्माण्ड के चक्कर लगाने के बजाय अपने माता-पिता शिव-पार्वती की सात परिक्रमा लगाकर उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए।

जब सारे देवतागड़ अपनी परिक्रमा करके लौटे, तब भगवान शिव ने गणेश को प्रतियोगिता का विजेता बताया। सभी देवता यह निर्णय सुनकर आश्चर्य हो गएं और सभी देवतागड़ के द्वारा पूछे जाने पर बताया कि माता-पिता को समस्त ब्रह्माण्ड एवं समस्त लोक में सर्वोच्च स्थान दिया गया है, जोकि देवताओं व समस्त सृष्टि से भी सबसे ऊपर रखा गया है। तभी से गणेश जी को वरदान दिया गया कि समस्त देवताओं से पहले गणेश जी की पूजा होगी।

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