छलनी से चांद का दीदार करने का चलन आज से नहीं बल्कि बरसों से होता आया है। हर जगह की अलग-अलग परंपराओं के हिसाब कहीं छलनी प्रयोग नहीं किया जाता है तो कहीं इसी से चांद और पति को देखकर व्रत खोलने की परंपरा है। लेकिन चलनी या छलनी से चांद देखने के पीछे एक खास वजह है।

करवाचौथ की एक पौराणिक कथा के अनुसार एक पतिव्रता स्त्री जिसका नाम वीरवती था इसने विवाह के पहले साल करवाचौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख के कारण इसकी हालत खराब होने लगी। भाइयों से बहन की यह स्थिति देखी नहीं जा रही थी। इसलिए चांद निकलने से पहले ही एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे दीया रखकर बहन से कहने लगे कि देखो चांद निकल आया है। बहन ने झूठा चांद देखकर व्रत खोल लिया। इससे वीरवती के पति की मृत्यु हो गई। वीरवती को जब झूठे चांद को देखकर व्रत खोलने के कारण पति की मृत्यु होने की सूचना मिली, तब वह बहुत दुःखी हो गई। वीरवती ने अपने पति के मृत शरीर को सुरक्षित अपने पास रखा और अगले वर्ष करवाचौथ के दिन नियम पूर्वक व्रत रखा जिससे करवा माता प्रसन्न हुईं। वीरवती का मृत पति जीवित हो उठा।

 

यही कारण था जिसको सुहागन स्त्रियां हमेशा याद रखती है। कहीं कोई छल से उनका व्रत तोड़ न दे, इसलिए स्वयं छलनी अपने हाथ में रखकर उगते हुए चांद को देखने की परंपरा शुरू हुई। करवा चौथ में छलनी लेकर चांद को देखना यह भी सिखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे प्रतिव्रत से डिगा न सके।

मार्केट में छाईं डिजाइनर छलनी

इस दिन महिलाएं दीए की लौ में चांद और अपने पिया के चेहरे का दीदार छलनी के माध्यम से करती हैं। लेकिन आजकल बाजार में साधारण छलनी की जगह डिजाइनर छलनी और करवें ने ले ली है।  वैलवेट, नैट वाले कपड़े या फिर राजस्थानी प्रिंट वाले कपड़े से डैकोरेट की हुई छलनी आपके उत्सव में चार-चांद लगा देती है। 

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