धर्म शास्त्रों के अनुसार मनुष्य को अपने जीवनकाल में तीन तरह के ऋण… देव-ऋण, गुरु-ऋण और पितृ-ऋण चुकाने होते हैं। वैसे व्यवहारिक रूप से तो माता-पिता का ऋण कोई भी व्यक्ति नहीं चुका सकता है, पर शास्त्रों में इसके लिए भी विधान रखा गया है। दरअसल, शास्त्रों में जहां जीवित रूप में माता-पिता के सेवा की बात कही गई है, वहीं मृत्यु के बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध का प्रावधान रखा गया है। जैसा कि भाद्रपद की पूर्णिमा एवं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक के समय में पितरों के श्राद्ध की परंपरा है, जोकि पितृ पक्ष के रूप में जाना जाती है। इस दौरान लोग जल, तिल और फूल अर्पित करते हुए पितरों का तर्पण करते हैं।
वैसे आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास ना तो श्राद्ध कर्म के लिए पर्याप्त समय है और ना ही इसकी सही जानकारी। जिसके चलते लोग श्राद्ध कर्म नहीं कर पाते हैं और इसके पुण्य से वंचित रह जाते हैं। ऐसे में आज हम आपको तर्पण की वो विधि बताने जा रहे हैं, जिसके जरिए अगर आपके पास पर्याप्त समय नहीं भी है तो भी आप अपने पितरों का तर्पण कर सकते हैं। असल में, हमने इस बारे में विख्यात धर्म शास्त्री और पंडित रमेश द्रिवेदी से बातचीत की। तो पंडित रमेश द्रिवेदी से जानते हैं तर्पण की संक्षेप विधि और मंत्र।
पंडित रमेश द्रिवेदी के अनुसार, अगर आपके पास दूसरे कर्म काण्ड के लिए समय नहीं है, तो आप जल का तर्पण कर श्राद्ध का पुण्य पा सकते हैं। इसके लिए आप पास स्थित किसी सरोवर जाइए और अगर आपके पास में कोई सरोवर और तालाब नहीं है तो आप किसी बर्तन में जल भर लें और उसमें से एक अंजुल जल लेकर भी तर्पण कर सकते हैं। जल के साथ ही अपने हाथों में कुश लें और दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करते हुए ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: मंत्र का जाप करें। एक पितृ के लिए आपको तीन बार ऐसा करना है। ऐसा करते वक्त आपको ये ध्यान करना है कि आपके पिता और पूवज जल ग्रहण कर रहे हैं। इस विधि और मंत्र के जरिए जहां आपके पूर्वजो का जल से तृप्ति प्राप्त होती है, वहीं उनकी आत्मा को शांति भी मिलती है। फलस्वरूप आपको उनका आशीर्वाद मिलता है। ऐसा कर आप श्राद्ध कर्म का पूरा लाभ पा सकते हैं।