जिस तरह से वन का राजा शेर है, उसी तरह रोगों का राजा ज्वर को कहा गया है। इस रोगराज ज्वर के बारे में शास्त्रों में कई रोचक बातें भी लिखी हुई हैं। ज्वर की उत्पत्ति कैसे हुई इस बारे में सुश्रुत में लिखा है- कि ‘दक्ष के अपमान करने से महादेव को क्रोध हुआ। पैदा हुए इस क्रोध से जो श्वास निकली उसी से आठ तरह के ज्वर उत्पन्न हुए।’

चरक में लिखा है ‘जीव को जन्म के समय ज्वर रहता है और मरने के समय भी ज्वर रहता है। जन्मकाल में ज्वर रहने की वजह से ही प्राणी अपने पूर्व जन्म की बातों को भूल जाता है और यह ज्वर ही प्राणियों के प्राण हर लेता है।’

हरित संहिता में लिखा है ज्वर से मृत्यु होती है, विशेषकर ज्वर बिना मृत्यु नहीं होती।

ज्वर रोग कैसा होता है, साधारण रूप में होने वाले ज्वर में कौन-कौन से लक्षण उभरते हैं, सभी इस बात को जानते हैं। जिस रोग में शरीर गरम होता है, उसे ज्वर कहते हैं। ज्वर को आम बोलचाल की भाषा में बुखार, हिकमत में ताप तथा अंग्रेजी में फीवर कहते हैं।

यदि आयुर्वेद के नजरिए से समझा जाए तो ज्वर आने की वजह दोषों में विकृति पैदा होना होता है। जिन-जिन दोषों के प्रकोप से ज्वर आता है उन रोगों का उन्हीं दोषों के नाम से नामकरण किया गया है। लेकिन एलोपैथी में इस रोग के तीन कारण बताए जाते हैं। (1) स्वत: जात (आइडियो पैथिक) यह वायरस से होते हैं। (2) आनुषंगिक (सिम्टोमेटिक) किसी रोग विशेष के साथ लक्षण रूप में उत्पन्न ज्वर इसके अंतर्गत आते हैं। (3) अभिघातज (ट्रामेटिक)- चोट लग जाने से रस रक्त आदि जम जाता है। फिर वहां पर विष पैदा होकर उसका रक्त में शोषण होने से इस प्रकार का ज्वर उत्पन्न होता है। आइडियोपैथिक के भी दो प्रकार हैं- पहला अंक्रामक तथा दूसरा संक्रामक।

आजकल एक खास तरह के ज्वर का जोर देखा जाता है। कभी-कभी तो इसका जोर इतना अधिक होता है कि अस्पतालों, क्लीनिकों पर मरीजों की भीड़ सी लग जाती है। इस ज्वर का नाम है, वायरल फीवर। यहां इसी की जानकारी दी जा रही है। वायरल फीवर भी कुछ खास तरह के वायरस की वजह से फैलने वाला रोग बताया गया है। जो वायरस इस रोग के कारक होते हैं, वे किसी भी समय अपने अनुकूल वातावरण पाकर चारों ओर फैलकर अपना प्रकोप दिखाने लगते हैं। वायरल फीवर का किसी भी समय ऐसा जोर चलता है कि जिसे देखो वह इससे आक्रान्त नजर आता है। वायरल बुखार पैदा करने वाले विषाणु मुख्यत: ए और बी दो प्रकार के होते हैं। ए विषाणु विश्वव्यापी एवं अधिक संक्रामक हैं तथा अधिक दिनों तक रहने वाले बुखार पैदा करते हैं। इनके अलावा अन्य तरह के विषाणु जैसे सी, डी, ई और जी भी होते हैं, जो अलग-अलग तरह के लक्षण वाले बुखार एवं समस्याएं पैदा करते हैं।

वायरल फीवर क्या है और कैसे पनपता है?

वायरल बुखार अत्यन्त संक्रामक रोग है, जिससे कोई भी व्यक्ति किसी भी समय और कहीं भी ग्रस्त हो सकता है। वैसे इसकी चपेट में ज्यादातर बच्चे और वृद्ध आते हैं।

जैसा कि ऊपर बताया, इस रोग को पनपाने में कई तरह के वायरस जिम्मेदार होते हैं। ये वायरस सबसे पहले नाक फिर गले, स्वरयन्त्र और मुख्य श्वासनली पर हमला करके अन्दर पहुंचकर पलते-बढ़ते हुए व्यक्ति को रोगी बना डालते हैं। यही वायरस रोगी के खांसने, छींकने या नाक साफ करने पर वातावरण में फैलकर अन्यों को अपना निशाना बनाने लगते हैं। इस तरह से एक-एक तरह यह अनेकों को अपनी चपेट में ले लेता है।

वायरल फीवर के लक्षण?

वायरल बुखार के लक्षण मलेरिया के बुखार, टॉन्सिलाइटिस, फ्रेंजाइटिस, एक्यूट निमोनाइटिस और एक्यूट ब्रोंकाइटिस से काफी मिलते जुलते हैं, इसलिए गले, छाती, खून, थूक आदि की जांच और छाती का एक्स-रे करने से रोग का ठीक-ठाक पता लग जाता है।

वायरल फीवर होने पर बुखार ठंड देकर आता है फिर शरीर गरम होकर धीरे-धीरे तापमान 102 से 103 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच जाता है, जो बीच में उतरता नहीं है। बुखार निवारक दवाइयां लेने पर ही बुखार समय के लिए उतरता है। इसके अलावा निम्न लक्षण दिखाई देते हैं।

● चेहरा और आंखों की पुतलियां लाल हो जाती हैं।

● नब्ज तेज हो जाती है।

● हाथ-पैर, सिर और पीठ में दर्द होता है।

● नाक, आंख और गले में सूजन होने की वजह से नाक और आंखों से पानी गिरता है, गले में खराश हो जाती है।

● न तो भूख लगती है और ना ही कोई काम करने की इच्छा करती है। उल्टी की शिकायत होती है।

खान-पान का रखें ध्यान

वायरल बुखार तभी होता है जब शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है इसलिए रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए खान-पान का उचित ध्यान रखना चाहिए। अगर सेहतमंद ओर प्रोटीन युक्त खाना खाया जाए तो शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता खुद निॢमत हो जाती है। सादा, ताजा खाना ही खाएं क्योंकि हैवी फूड आसानी से पच नहीं सकते हैं। बचे हुए खाने को गर्म करके ही खाएं क्योंकि इससे सभी बैक्टीरिया समाप्त हो जाते हैं। खाने में अदरक, लहसुन, हींग, जीरा, काली मिर्च, हल्दी और धनिये का प्रयोग अवश्य करें क्योंकि इनमें पाए जाने वाले तत्त्व पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं और वायरल के कीटाणुओं से लड़ते हैं।

● मौसमी संतरा व नीबूं खाएं जिसमें विटामिन-सी और वीटा कैरोटींस होता है, जिससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

● वायरल फीवर होने पर ड्राई फ्रूट्स खूब खाने चाहिए। ड्राई फ्रूट्स में जिंक भरपूर मात्रा में पाया जाता है।

● लहसुन में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और खनिज तत्त्व पाए जाते हैं। इससे सर्दी, जुकाम, दर्द, सूजन और त्वचा से संबंधित बिमारियां नहीं होती हैं। लहसुन घी या तेल में तलकर चटनी के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।

● खूब पानी पियें। इससे डिहाइडे्रशन के अलावा शरीर पर हमला करने वाले माइक्रो आर्गेनिज्म को बाहर निकालने में मदद मिलती है। 

● तुलसी के पत्ते में खांसी, जुकाम, बुखार और सांस संबंधी रोगों से लड़ने की शक्ति है। बदलते मौसम में तुलसी की पत्तियों को उबालकर या चाय में डालकर पीने से नाक और गले के इंफेक्शन से बचाव होता है।

● वायरल बुखार में हरी और पत्तेदार सब्जियों का अधिक मात्रा में प्रयोग करें। क्योंकि हरी सब्जियों में पानी की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे डिहाइड्रेशन नहीं होता है।

● टमाटर, आलू और संतरा खाएं। इनमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है।

● वायरल में दही खाना बंद न करें क्योंकि दही खाने से बैक्टीरिया से लड़ने में सहायता मिलती है साथ ही यह पाचन क्रिया को सही रखता है। पेट खराब, आलसपन और बुखार को दूर करता है।

● वायरल में गाजर खाएं, इसमें केरोटीन पाया जाता है जिससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और कीटाणुओं से लड़ने में मदद मिलती है।

● अधिक मात्रा में केले और सेब का सेवन करें। इन दोनों ही में अधिक मात्रा में पोटैशियम पाई जाती है।

● वायरल फीवर के रोगी को सुपाच्य चीजें खाने को देनी चाहिए जैसे- दलिया, खिचड़ी, बिना चुपड़ी रोटी, दाल, चावल, सिंकी हुई डबल रोटी, फल, सूप आदि देना ठीक रहता है।

● घी-तेल आदि का सेवन इन दिनों नहीं करना चाहिए। ज्यों-ज्यों रोग उतार पर आता  जाता है, रोगी की भूख खुलती जाती है।

वायरल फीवर में बरतें सावधानी

जब रोगी को बुखार काफी तेज हो तब उसके पूरे बदन पर या बदन के ज्यादातर हिस्से पर पानी से भीगी पट्टियां रखनी ठीक रहती हैं। पानी से भीगी इन ठंडी पट्टियों से शरीर के अन्दर बढ़ रही गर्मी शान्त होने लगती है और रोगी राहत महसूस करता है।

जब रोगी को बुखार से निजात मिल जाए तब उसे भरपूर पानी, फल-सब्जियों और उनके रस लेने चाहिए ताकि बुखार जाने के बाद भी रह गई थकान और डिप्रेशन की स्थिति दूर हो सके। लेकिन इसके बावजूद भी रोगी में यह लक्षण बने रहते हैं तब डॉक्टर से परामर्श लेना उचित है।

इसके लिए कुछ खास सावधानियां बरतने की जरूरत है। जिन दिनों वायरल फीवर का जोर हो उन दिनों भीड़ वाली जगहों से दूर रहें। यदि बुखार की चपेट में आ ही जाएं तो घर में रहकर ही पूरा आराम करें ताकि आपसे यह और किसी को न लग सके।

वायरल विषाणु का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक प्रसार सांस के जरिए होता है। इस बुखार का मरीज जब खांसता है, तो इसके विषाणु पास के व्यक्ति के शरीर में सांस के जरिए और मुंह के रास्ते प्रवेश कर जाते हैं और एक-दो दिन में वह व्यक्ति भी बुखार से पीड़ित हो जाता है।

वायरल से होने वाले इन्फेक्शन

कॉमन कोल्ड या जुकाम

इसमें नाक बंद हो जाती है, छींकें आती हैं, खांसी हो जाती है, गला खराब रहता है और बुखार भी हो जाता है। इसके फैलने का कारण वातावरण में मौजूद वायरस है जो एक-दूसरे में सांस के जरिये, छींकने से या खांसने पर ड्रॉप्लेट्स द्वारा फैलता है। इसे रेस्पिरिटरी इन्फेक्शन का वायरस कहते हैं, जो जाड़े में ज्यादा फैलता है। 

● हैजा भी वायरस से फैलता है। यह किसी भी मौसम में हो सकता है। 

● डेंगू, मलेरिया, फ्लू, चिकनगुनिया, पीलिया, डायरिया और हेपेटाइटिस भी वायरस से फैलते हैं, जो साल में कभी भी हो सकते हैं।

● बच्चों में डायरिया फैलने की मुख्य वजह वायरल इन्फेक्शन ही है। इसे वायरल डायरिया कहते हैं। 

● सामान्य दर्द और बुखार से लेकर एंकेफ्लाइटिस और मेनिनजाइटिस तक वायरल इन्फेक्शन से हो सकता है। 

लोअर रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन 

कॉमन कोल्ड या वायरल तो दो-तीन दिन में खुद ठीक हो जाता है, लेकिन अगर यह लंबे समय तक रहे तो तेज खांसी, बुखार, नाक से गाढ़ा बलगम निकलता है व छाती में बलगम जमा होने लगता है। इससे सांस लेने में तकलीफ, बुखार, निमोनिया आदि दिक्कतें बढ़ने लगती हैं। इसे लोअर रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन कहा जाता है। 

बैक्टीरियल इन्फेक्शन

साइनोसाइटिस होने से मरीज की नाक, सिर, माथा जकड़ने लगता है और पूरा चेहरा दर्द करता है और उसे भारीपन महसूस होता है। कई बार नाक से गाढ़ा सा बलगम और साथ में खून आने लगता है। यह वायरल से बैक्टीरियल इन्फेक्शन कहलाता है। वायरल पहली स्टेज है और बैक्टीरियल इन्फेक्शन सेकंडरी, जिसमें मरीज को एंटीबैक्टीरियल दवाएं देना जरूरी हो जाता है। 

कारण

इस मौसम में सुबह-शाम वातावरण में पॉल्यूशन की एक परत छाई रहती है। इसी हवा में हम सांस लेते हैं जिसमें हजारों तरह के वायरस होते हैं। 

वायरल इन्फेक्शन का एलोपैथी इलाज 

अगर किसी को सिर्फ जुकाम हुआ है तो आमतौर पर उसे किसी खास इलाज की जरूरत नहीं होती। जुकाम के बारे में एक बड़ी मशहूर कहावत है इफ यू ट्रीट द कोल्ड, इट टेक्स वन वीक टाइम, इफ यू डोंट ट्रीट, इट टेक्स सेवन डेज टाइम। कहने का मतलब यह है कि अगर आप दवा लेंगे तो भी इसे ठीक होने में उतना ही टाइम लगेगा और नहीं लेंगे, तो भी। ठीक होने का समय आप कम नहीं कर सकते। 

दरअसल, हर बीमारी की कुछ फितरत होती है और वह ठीक होने में थोड़ा समय लेती ही है। उसके बाद वह खुद शरीर छोड़कर भागने लगती है। फिर भी अगर करना ही पड़े तो जुकाम में लक्षणों के आधार पर ट्रीटमेंट दिया जाता है। मरीज को तेज छींकें आ रही हैं तो उसे ऐसी दवा दी जाती है जिससे उसकी छींकें रूक जाएं। अगर मरीज की नाक बंद है तो नाक खोलने की दवा दी जाती है और अगर बुखार है तो पेरासीटामोल या क्रोसिन जैसी दवाएं डॉक्टर लिखते हैं। 

होम्योपैथी 

● गले में इन्फेक्शन है तो ब्रायोनिया, रस टॉक्स, जेल्सीमियम।

● लोअर रेस्पिरेटरी समस्या है तो ब्रायोनिया, कोस्टिकम, के साथ बायोकेमिकल मेडीसिन।

आयुर्वेद

● वायरल के इलाज में आयुर्वेद मौसम के मुताबिक खान-पान पर जोर देता है। 

● तुलसी की पत्तियों में कीटाणु मारने की क्षमता होती है। लिहाजा बदलते मौसम में सुबह खाली पेट दो-चार तुलसी की पत्तियां चबाएं। 

● अदरक गले की खराश जल्दी ठीक करता है। इसे नमक के साथ ऐसे ही चूस सकते हैं। 

● गिलोय, तुलसी की 8-9 पत्तियां, काली मिर्च के 4-5 दाने, दाल-चीनी 4-5, इतनी ही लौंग, वासा की थोड़ी सी पत्तियां और अदरक या सौंठ मिलाकर काढ़ा बना लें। इसे तब तक उबालें, जब तक पानी आधा न रह जाए। छानकर नमक या चीनी मिलाकर गुनगुना पी लें। इसे दिन में दो-तीन बार पीने से आराम मिलता है। काढ़ा पीकर फौरन घर के बाहर न निकलें। 

● वायरल बुखार में रात को सोते वक्त एक कप दूध में चुटकी भर हल्दी डालकर पिएं। गले में ज्यादा तकलीफ है तो संजीवनी वटी या मृत्युंजय रस की दो टैबलेट भी इसके साथ लेने से आराम मिलता है। 

● गले में इन्फेक्शन है तो सितोपलादि चूर्ण फायदेमंद है। इसे तीन ग्राम शहद में मिलाकर दिन में दो बार चाटें। खांसी में आराम मिलेगा। डायबिटीज के मरीज शहद की जगह अदरक या तुलसी का रस मिलाकर लें। वैसे गर्म पानी से भी इस चूर्ण को लेने से आराम मिल जाएगा। 

बच्चों में वायरल इन्फेक्शन 

आम भाषा में बोले जाने वाले कॉमन कोल्ड या जुकाम की शुरुआत बच्चों में नाक बहने, छींक, आंखों से पानी आने और हल्की खांसी से होती है। इसे वायरल भी कहते हैं। बड़े लोग तो अपनी बीमारी के बारे में बता सकते हैं लेकिन दूध पीता बच्चा बोल नहीं पाता। ऐसे बच्चे सांस लेते वक्त आवाजें करते हैं। ऐसा लगता है कि उनकी नाक में ब्लॉकेज है। बच्चा बेवजह रोने लगता है। उसे हल्का बुखार भी हो सकता है। दूसरी ओर ऐसे बच्चे जो बोल सकते हैं, उनमें भी वायरल के वही लक्षण होते हैं। नाक बंद होना, छींकें आना, गले में खराश और आंखों से पानी आना। जब नाक का रास्ता बंद होता है तो वही पानी आंखों के रास्ते बहने लगता है। कुछ बच्चों की नाक बंद होती है तो कुछ को बहुत छींक आती है। कुछ बच्चों को हल्का बुखार भी महसूस होता है। आप थर्मामीटर लेकर नापें तो बुखार पता भी नहीं चलता। इसे अंदरूनी बुखार या हरारत भी कहते हैं। सभी बच्चों में जुकाम के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। 

बचाव

वायरस दो तरह का होता है। एंडनिक और पेंडनिक। एंडनिक वायरस की वजह से होने वाला फ्लू किसी एक जगह पर दिखाई पड़ता है, जबकि पेंडनिक सब जगह देखा जा सकता है। जैसे स्वाइन फ्लू शुरू में मैक्सिको में हुआ, लेकिन महीने भर बाद भारत पहुंच गया। पेंडनिक वायरस दुनिया भर में एक महीने के भीतर ही फैल सकता है। यह वायरस अपनी शक्ल-सूरत बदल लेता है और एक नए वायरस की तरह दिखना शुरू हो जाता है। यह उन सब लोगों पर अटैक करता है, जो इससे पीड़ित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं। इससे बचाव के लिए डब्ल्यूएचओ साल में दो बार सितंबर और मार्च में एंटीफ्लू वैक्सीन रिलीज करता है। सितंबर में उत्तरी क्षेत्र (जहां हम रहते हैं) और मार्च में दक्षिणी क्षेत्र (ऑस्ट्रेलिया) में यह वैक्सीन रिलीज होता है। 

● यह वैक्सीन 600 से 900 रुपये के बीच उपलब्ध है, जिसे छह महीने के बच्चों से लेकर बुजुर्गों को दिया जा सकता है। छह महीने से कम उम्र के  बच्चों को यह साल में दो बार दिया जाता है, जबकि इससे ऊपर के लोगों को साल में केवल एक बार। ये वैक्सीन वैक्सीग्रिप, फ्लूरिक्स, इनफ्लूबैक जैसे नामों से उपलब्ध हैं। 

● कोशिश यह होनी चाहिए कि सर्दी न लगे। पूरे कपड़े पहनकर बाहर जाएं। 

● कोई खांस रहा हो तो रुमाल हाथ में रखें। खुद भी अगर खांस रहे हैं या छींक रहे हैं तो रुमाल ले लें। 

● कभी खाली पेट घर से बाहर न निकलें। खाली पेट शरीर को कमजोर करता है। 

● खाना मौसम के हिसाब से लें। अगर बाहर खाएं, तो सफाई का पूरा ध्यान रखें। 

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