साल भर से चौतरफा पसरी निराशा, नीरसता, उदासी और अंधकार को दूर भगाने के लिए दीपावली का शुभ त्यौहार हमारे दर पर खड़ा दस्तक दे रहा है। कोरोना काल में पड़ रही दीपावली और उसमें प्रज्वलित होने वाले दीप क्या वाकई हमारे घरों और मोहल्लों में रोशनी बिखेर पाएंगे, ये सवाल सभी के ज़हन में हैं। क्या फिर से उन चौखटों पर रौनक लौट पायेगी जिनके चिरागों को किसी की नज़र लग गई? क्या सुस्त और मंदा पड़ा व्यापार बाजार में रोशनी बिखेरने में कामयाब होगा? क्या बीमार शरीर और खस्ता जेब के बावजूद मिठाइयों में वही मिठास मिलेगी? इसीलिए यह दिवाली है पहले से कही ज़्यादा खास। आइए इस दिवाली हम सब थाम लें अपने हर दुखियारे पड़ोसी का हाथ।
संभावनाओं के दीप जगमगाएं
सभी जानते हैं की किस प्रकार कोरोना संक्रमण के कारण आये देश पर संकट के चलते लाखो लोग तबाह हो गए। किसी की नौकरी चली गई तो किसी की जान। जहां लोगो के व्यापार खत्म हो गए, वहीं तमाम तरह के संकटों से देशवासियों को जूझना पड़ा है। ऐसे में लम्बे समय बाद दीपावली का पावन त्यौहार एक बार फिर हम सबकी जि़ंदगियों में उजाला लेकर आ रहा है, और हमें चाहिए की हम जितना हो सके इस उजाले को ज़्यादा से ज़्यादा फैलाने में मदद करें।
अपनों के साथ तो हर वर्ष यह त्यौहार हम मनाते ही आये हैं लेकिन इस वर्ष उस से आगे बढ़कर कुछ करने की ज़रूरत है। साल 2020 की शुरुआत के साथ ही कोरोना वायरस के संक्रमण की आहट सुनाई देने लगी थी। मार्च में इस महामारी ने लोगों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया था और ये क्रम लगातार अब भी जारी है। पूरे विश्व के लिए चुनौती बने इस साल में केवल लोगों की जिंदगियां ही नहीं गई, बल्कि तमाम लोगों से उनका रोज़गार और परिवार तक छीन लिया। बेरोजगार होने पर देश के महानगरों से लाखों मज़दूरों को मजबूरी में अपने गांवों की ओर वापस लौटना पड़ा। लोगों को लॉकडाउन जैसी त्रासदी का सामना करना पड़ा। बावजूद, संक्रमण की रफ्तार नहीं थमी। लेकिन, अब वक्त आया गया है इस महामारी को जड़ से उखाड़ फेंकने का।
यह बात किसी से नहीं छुपी की त्यौहार की रौनक बच्चों से ही होती है, बच्चों के लिए दीपावली का मतलब जमकर मस्ती करना होता है। उसमें चाहे मिठाई खाना हो या फिर जमकर उछल-कूद करना हो। दीपावली के मौके पर सभी बच्चे यही करते हैं। लेकिन इस साल बहुत से बच्चों पर से बड़ों का साया उठ गया, कई घरो के आंगन सूने हो गए। यह दिवाली हर वर्ष जैसी नहीं, इसमें उदासी है, आंखें गम से बोझिल है। इसीलिए आज समाज को ज़रूरत है कि वो इस मौके पर अपने-अपने परिवारों और रिश्तेदारों के साथ-साथ ऐसे बच्चों को भी अपनी खुशियों में शामिल करें, जो इस त्यौहार अकेले हैं। बच्चों के नन्हे मन को बहलाने के लिए रंगीली मेकिंग और दीया सजाने और घर सजाने जैसे कार्यक्रम में शामिल करें। बच्चों से दीपावली को लेकर अपने अनुभव साझा करें। बच्चों को स्टेशनरी, पटाके, मिठाई जैसा सामान बांटे। इसके साथ ही आर्थिक रूप से वंचित बच्चों की जि़म्मेदारी भी कोई सम्पन्न व्यक्ति या संस्था ले सकती है, हम अपनी खुशियों को बांटेंगे तो खुशियां ज्यादा बढ़ेगी और ज़रूरतमंद बच्चों व लोगों को अपनेपन का एहसास करा सकते हैं ताकि उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिले।
सकारात्मक सोच का दीप जलाएं
कोरोना बीमारी ने लोगों को यह जानने का मौका दिया है कि जीवन में क्या ज्यादा मायने रखता है। यह वक्त ऐसा है जब लोगों को उनके जीवन में जो हो रहा है, उसका सामना करना चाहिए। इस काल ने हमें सिखा दिया है की दया, करुणा, उदारता और प्रेम के आदान-प्रदान पर आधारित जीवन ही असल जीवन है। दीपावली के त्यौहार का इंतज़ार हम पूरे साल करते हैं, पर आपदा के कारण हर तरफ नकारात्मक माहौल नजर आता है। बहुत से लोगों के मन में इन त्यौहारों को लेकर उत्साह नहीं है। उनके बोझिल मन में कई आशंकाएं और बहुत सारे सवाल भी हैं। जैसे लोगों से मिलना-जुलना नहीं हो पाएगा तो कैसी त्यौहारों की खुशियां, जब अपने और पड़ोस में लोगों को संक्रमण के कारण परेशानी हो तो ऐसे माहौल में त्योहार कैसे मनाएं, साफ-सफाई में मन नहीं लग रहा आदि। असल में यह सारी आशंकाएं एक तरह की मनोदशा है, जो त्यौहार के अवसर पर बदल भी सकती है। यह सही है कि इस समय बहुत सारे कार्यक्रमों का आयोजन नहीं हो रहा है, पर आपको अपना मूड ऑफ नहीं करना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि आपदा ने आजादी से कुछ करने की चाहत पर कुठाराघात किया है, पर यह आपके हौसले पर बिल्कुल भी भारी नहीं पड़ना चाहिए।
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