यह हमारा मोह है, भ्रम है कि केवल सिद्धांत और तत्त्व चर्चा के आधार पर हृदय बदलना चाहते हैं और हिंसा से अहिंसा की प्रतिष्ठापना करना चाहते हैं, किंतु अहिंसा की प्रतिष्ठा तब तक नहीं हो सकेगी जब तक चंचलता को कम करने का अभ्यास नहीं किया जायेगा।
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अहिंसा एक महान शक्ति है – आचार्य महाप्रज्ञ
जो व्यक्ति अहिंसा का साक्षात्कार कर लेता है, उसमें असीम शक्ति जाग जाती है, मरने की शक्ति जाग जाती है। मरने की शक्ति दुनियां में सबसे बड़ी शक्ति होती है। इससे बड़ी कोई शक्ति नहीं और जिस व्यक्ति में मरने की शक्ति आ गई वह सारी भौतिक शक्तियों से अपराजेय बन गया।
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मन एक महासागर है – आचार्य महाप्रज्ञ
मनोविज्ञान में मन और चित्त-दोनों में भेद नहीं किया गया। मन ऊपर का हिस्सा है, जो चित्त का स्पर्श पाकर चेतना जैसा प्रतीत होता है। चित्त हमारी भीतर की सारी चेतना का प्रतिनिधित्व करता है। अज्ञात मन, अवचेतन मन को चित्त कहा जा सकता है और ज्ञात मन को मन कहा जा सकता है।
