मातृत्व कई सारी जिम्मेदारियां लेकर आता है। एक मां होने के नाते बच्चे के जन्म से लेकर उसकी परवरिश का सबसे ज्यादा जिम्मा मां के कंधों पर ही टिका रहता है। बच्चे की परवरिश में पिता भी अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन जो जुड़ाव एक बच्चा अपनी मां के साथ महसूस करता है वो और किसी के साथ नहीं करता। ऐसे में बच्चे के मन की हर बात जानना और उसे सही परवरिश देना भी एक मां के लिए आसान काम नहीं है। ऐसे में बच्चे की परवरिश के दौरान मां कीं बातों का ध्यान रखें और ऐसा क्या करें जिससे बच्चे में अच्छे संस्कार आएं, इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम आपको बताते हैं।
3-5 साल की उम्र में बच्चे के दिमाग का विकास बहुत तेजी से होता है। ऐसे में यही वो समय है जब बच्चे के अंदर अच्छे संस्कार डाले जा सकते हैं। शुरुआत से ही बच्चे में कृतज्ञता का भाव जाग्रत करें।

पशु-पक्षियों,जानवरों पेड़-पौधों, हरियाली,पानी और प्रकृति से जुड़ी हर चीज के बारे में बताएं।इससे जुड़े उनके मन में उत्पन्न हुए सवालों के जवाब दें और उन्हें इन सबसे जुड़ी अच्छी बातें बताएं। उन्हें इन सब चीजों के लिए ईश्वर को धन्यवाद कहना सिखाएं। ऐसा करने से बच्चों के मन में कृतज्ञता का भाव जाग्रत होगा और वह संसार में मौजूद हर छोटी चीज की महत्ता समझेंगे।
10 साल तक के बच्चों के मन में सवालों का भंडार छुपा होता है। बच्चों के बार-बार सवाल पूछने से तंग आकर पेरेंट्स कई बार उनके ऐसे सवालों को भी नजरअंदाज कर देते हैं जिनके जवाब जानना बच्चों के लिए बेहद जरूरी है। ऐसे में मां-पिता की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह दिनभर में से कुछ घंटे सिर्फ बच्चे के लिए निकालें और उसकी हर बात को ध्यान से सुनकर जवाब दें। उसे बीच-बीच में किसी भी सवाल पर न टोकें और न ही उसके सवाल को सुनकर चिल्लाएं। बच्चे भावनात्मक रूप से मां से ज्यादा जुड़े रहते हैं ऐसे में अगर वह बच्चे से दोस्ताना व्यवहार बनाकर उसके मन की बात जानेंगी तो वो भी आपकी कही हर बात को सुनेगा और उसे नजरअंदाज नहीं करेगा।

इस उम्र में बच्चे को सही या गलत का फर्क सिखाना भी बेहद ज़रूरी है।ऐसे में मां की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। कोशिश करें कि बच्चे को किसी वास्तविक उदाहरण की मदद से अच्छी और बुरी आदतों के बारे में बताएं। जैसे अगर बेटे को समानता के अधिकार की सीख देना चाहती हैं तो उसके अंदर शुरुआत से ही घर के कामों को करने की आदत डालें। उसके अंदर यह बात कतई न घर करने दें कि यह काम सिर्फ महिलाओं के हैं। इससे समाज की कुरीतियों की धारा तो टूटेगी ही साथ ही आपका बच्चे में भी खुद के काम करने की आदत डलेगी।
बच्चों की पढ़ाई पर भी ध्यान दें। उन्हें ऐसे शिक्षा देने की कोशिश करें कि वो केवल किताबी कीड़ा न बनकर रह जाएं। उन्हें स्कूल की पढ़ाई के अलावा माएं जीवन के अच्छे मूल्यों की सीख भी दें। जैसे सच्चाई और ईमानदारी के लिए राजा हरीशचंद्र की कहानी सुनाएं।मां-बाप और बड़ों का सम्मान करने की भावना जगाने के लिए श्रवण कुमार की कहानी का भी सहारा ले सकती हैं।

यह भी पढ़ें